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क्या ऐसे ही बन गया ये आईएएस व आईपीएस दम्पत्ति सैंकड़ों बीघा नामी और बेनामी सम्पत्ति का स्वामी?
कब खत्म होगा इस चौदह वर्षीय वनवास अतिक्रमण का?
उल्टा चोर कोतवाल को डांट, खुद खेल रहा महाखेल और बार-बार झूठी शिकायतें कर भटका रहा शासन प्रशासन का ध्यान!
सहस्त्रधारा रोड स्थित धनौला में गोल्डन फारेस्ट (फिनकैप) की प्रतिबंधित जमीन पर हो रही धड़ल्ले से अवैध प्लाटिंग – फंसा कर लूटे जा रहे अनजान !
जीएमवीएन व वन विभाग की उदासीनता से कालीराव नदी बनी नाली और कब्जाई वन सम्पत्ति व करोड़ों की खनिज !
1995 में बिकी गोल्डन फिनकैप की जमीन का खेल हुआ शुरू 2006 से और भुनाना शुरू किया 2008 से, अब तक कर दिये करोड़ों के वारे न्यारे?
कैसे और किसके दबाव में हो रही हैं सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंधित, इनकी रजिस्ट्रियां?
कहीं की जमीन, कहीं पर जा रही है बेची,
खनन जुर्माने के साढ़े तीन करोड़ के सरकारी राजस्व को किसने लगाया चूना?
…आखिर क्यों कतरा जाते हैं इस प्रभावशाली आईएएस के दबाव में जिला प्रशासन व पीसीएस एवं राजस्व अधिकारी?
…इस राहुल, प्रशान्त और तलवार की तिकड़ी पर किसका है संरक्षण जिसके आगे धामी का धाकडपन बेअसर!
ऐसे ही तो बस गयी बस्ती गोल्डन की सैंकड़ों बीघा जमीन पर, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों की धज्जियां उडा कर!
मामला यह 10-12 बीघा जमीन का ही नहीं बल्कि खेल है 60-70 बीघा जमीन पर की जा रही अवैध प्लाटिंग का?
(ब्यूरोचीफ की अब तक की खास पड़ताल…)
देहरादून। जब नीरो बंशी बजाने में मस्त हो तो रोम तो जलेगा ही, ठीक ऐसा ही हो रहा है वर्तमान धामी सरकार के शासनकाल में तभी तो यहां शासन-प्रशासन और तहसील व थाने तक सभी अपनी-अपनी ढपली अपना -अपना राग गा – गा कर खेल रहे हैं विनाशकारी खेल और कर रहे हैं मनमानी। वैसे भी इन डिप्लोमेटिक अधिकारियों को पता है कि कैसे करो अपना उल्लू सीधा और कुछ का कुछ पाठ पढ़ा खुश कर दो खुशामदीद सरकार को! ऐसा ही एक मामला यहां हमारी अब तक पड़ताल में प्रकाश में आया है जिसमें यह साफ तौर पर दिखाई पड़ रहा है कि बाड़ ही खेत को खाने लग गयी है तो फिर तो भगवान ही मालिक है!
- हमारी पड़ताल के अनुसार हजारों लाखों लोगों की मेहनत की गाढ़ी कमाई को गोल्डन फारेस्ट व उसकी सहायक फिनकैप कम्पनियों ने तो लूटा ही लूटा पर जब उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय ने इस अरबों की रकम से बनाई गयी जमीन को खुर्द-बुर्द न किये जाने के उद्देश्य से इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया ताकि निवेशकों की रकम सुरक्षित रह सके। किन्तु ऐसा इन अधिकारियों और राजनेताओं को कहां गवारा? उन्होंने लूटा तो लूटा पर अब इन भू माफियाओं / लुटेरों से कौन बचायेगा। निवेशकों के लिए सुरक्षित यह हजारों बीघा जमीन! क्या सरकार व उसके शासन में बैठे आला अधिकारियों की सोच इसी लूट खसोट तक ही सीमित है या फिर भूमाफियाओं और भ्रष्टाचारियों की तरह ‘भाड़ में जाए जनता और अपना काम बनता’ वाली कहावत ही ठीक है।
- सूत्रों के अनुसार राजधानी दून में एक ऐसी तिकड़ी सक्रिय हैं जो अपने गुनाहों के प्रतिशोध ज्वाला में जलते हुए कहीं की जमीन कहीं पर बिक्री का महाखेल खेल रही है और इस तिकड़ी के सक्रियता के पीछे उत्तराखंड शासन में बैठे एक दबंग आईएएस व आईपीएस दम्पत्ति का संरक्षण बताया जा रहा है तभी तो इस रमन दम्पत्ति के इशारों पर जिला प्रशासन सहित दून पुलिस भी वैसा ही कृत्य कर रही है जैसा यह तिकड़ी चाहती है। बात यहीं तक सीमित नहीं है लैंड फ्राड समिति भी इनके तिलस्म से विमुख नहीं हो पा रही है और एक ही प्रकरण पर व एक पक्षीय जांचों पर ” Same Party-Same Matter” पर बार-बार एफआईंआर दर्ज कर इस तिकड़ी के गुनाहों और फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करने वाले का निरन्तर शोषण व उत्पीड़न करने पर आमादा नजर आ रही है जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि धामी की धाकड़ सरकार में अधिकारियों को कोई और जनहित व राजहित के काम ही नहीं रह गये हैं तभी तो सचिव व डीएम धामी सरकार की और दग रही TSR की तभी तो काम भी और सुनवाई भी उन्हीं के चेले चपाटों की हो रही है। कैसे हो रही हैं और किसके इशारों पर हो रहीं हैं प्रतिबंधित रजिस्ट्रियां?
- सूचना के अधिकार में भी सही जानकारी न उपलब्ध कराकर मामले को दबाने का प्रयास भी निरंतर जारी है। ताकि गायब अभिलेखों की न खुल सके पोल!
- ज्ञात हो कि इस तिगड़ी ने गोल्डन की बहती गंगा में करोड़ों की अवैध कमाई करने के लिए 1995 में सिंहवीर सिंह द्वारा मौजा धनौला, तहसील सदर, देहरादून की लगभग दस हजार वर्गमीटर जमीन को गोल्डन की सहायक कम्पनी गुंजन फिनकैप को बिक्रय की गयी जमीन को साजिश व षड्यंत्र के तहत अपने चहेते भरत सिंह को अवैध व अनुचित रूप से बिकवा कर 3-10-2006 में अपने व अपने परिजनों के नाम से क्रय करवा ली।
- मजेदार बात तो यह है कि उक्त जमीन मुख्य सहस्त्रधारा मार्ग से सैकड़ों मीटर दूर स्थित पहाड़ी में दर्ज राजस्व अभिलेख बताई जा रही है। किन्तु जब साहब मेहरबान तो गधा भी पहलवान के अनुसार इस तिगड़ी जिसमें अहलूवालिया पर्दे के पीछे का कलाकार व साझीदार है, की कूटनीतिक चाल के अन्तर्गत ग्राम समाज, नदी व वन सम्पदा को खुर्द-बुर्द कर, अवैध कब्जा कर मेन रोड के समीप भ्रष्टाचारी पहिए लगाकर घसीट लाए। इनके इस अवैध रूप से अतिक्रमण व खनन पर 2009 में तत्कालीन एसडीएम द्वारा पुष्टि भी की जा चुकी है तथा नायब तहसीलदार ( तहसील सदर) को अवैध कब्जा हटाने के आदेश भी किये जा चुके हैं परंतु इस भारी भरकम अतिक्रमण का 14 वर्षों का वनवास आज तक खत्म नहीं हुआ। इस वनवास के पीछे इसी आईएएस दम्पत्ति का संरक्षण ही इसका कारण बताया जा रहा है। दरअसल इस आईएएस दम्पत्ति की अहलूवालिया परिवार से पारिवारिक रिश्ते व सम्बंध भी बताये जा रहे हैं और यह भी बताया जा रहा उक्त दम्पत्ति की सैंकड़ों बीघा नामी बेनामी सम्पत्ति जुटाने में इस तिगड़ी की खास भूमिका रही है।
- उल्लेखनीय है कि जहां एक ओर इस तिगड़ी और आईएएस व आईपीएस दम्पत्ति के गठबंधन से झूठी व मनगढ़ंत बार बार की जा रही शिकायतों पर जिला प्रशासन व लैण्डफ्राड समिति दबाव में एकपक्षीय कार्यवाही के माध्यम से संविधान का सम्मान करने वाले इनके कभी दोस्त रहे (वर्तमान में प्रतिद्वंद्वी) को ऐन-केन-प्रकरेण अकारण ही झूठा फंसाकर जेल भिजवाने के अभियान को सफल बनाने की साज़िश को परवान चढ़ाने का है जब कि विधि सम्मत निष्पक्ष भूमिका निभानी चाहिये! उक्त पीढ़ा उस व्यथित व्यक्ति ने हमारी पड़ताल में व्यक्त की जिस पर हमारी खोजी टीम द्वारा पड़ताल में अब तक उक्त कारनामें उजागर हुये हैं जिनके अनुसार एक तीर से दो शिकार करने वाला तथाकथित गुनहगार यह तिगड़ी अपने काले कारनामों पर पर्दा डालते हुए सरकारी जमीन पर अवैध रूप से खुले आम प्लाटिंग करके पौ बारह करने में जुटी हुई है।
- यहां यह भी उल्लेखनीय है कि डीएम व एमडीडीए भी इस अवैध प्लाटिंग, खनन के साढ़े तीन करोड़ की बकाया व नदी एवं ग्राम समाज सहित गोल्डन, गुंजन फिनकैप की जमीन पर कार्यवाही से निरंतर कतरा रहे हैं और कभी किसी वहाने और फिर जांच पर जांच की आड़ लेकर लटकाने में व्यस्त नजर आ रहे हैं।
- देखना यहां गौर तलव होगा कि हमारी अब तक कई पड़ताल और प्रमाणिकता के साथ उजागर हुए इस महाखेल का पर्दाफाश पर धामी सरकार क्या कोई ठोस कार्यवाही करेगी और TSR के इशारों पर चलने वाले इन आला अफसरों व सरकारी अमले का तिलस्म तोड़ पाने में सफल होती है या फिर…..?