अवैध धार्मिक निर्माणों को ढहाने के खिलाफ दायर याचिका पर निर्णय सुरक्षित – Polkhol

अवैध धार्मिक निर्माणों को ढहाने के खिलाफ दायर याचिका पर निर्णय सुरक्षित

नैनीताल । उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सरकारी भूमि पर बने अवैध धार्मिक संरचनाओं (निर्माणों) के खिलाफ उत्तराखंड सरकार की ओर से चलाये जा रहे अभियान के विरूद्ध दायर जनहित याचिका पर बेहद सख्त रूख अख्तियार करते हुए बुधवार को निर्णय सुरक्षित रख लिया और याचिकाकर्ता पर भारी अर्थदंड लगाने के संकेत दिये हैं।

दरअसल हमजा राव व अन्य की ओर से एक जनहित याचिका के माध्यम से सरकारी भूमि पर बने अवैध धार्मिक निर्माणों के खिलाफ चलाये जा रहे प्रदेश सरकार के अभियान को चुनौती दी गयी है।

इस मामले की सुनवाई आज मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ में हुई।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि प्रदेश सरकार एकतरफा कार्यवाही कर रही है। एक धर्म विशेष की धार्मिक संरचनाओं को ध्वस्त किया जा रहा है। आगे कहा गया कि ये धार्मिक निर्माण वर्षों पुराने हैं और वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति हैं। याचिकाकर्ता की ओर से सरकार के इस कदम पर रोक लगाने और हटाये गये निर्माणों कें पुनर्निर्माण की मांग की गयी।

दूसरी ओर प्रदेश सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता (सीएससी) की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ताओं के आरोप निराधार हैं। उच्चतम न्यायालय के केन्द्र बनाम गुजरात सरकार मामले में वर्ष 2009 व 2018 में दिये गये निर्देशों के तहत कार्यवाही की जा रही है। उच्चतम न्यायालय की ओर से यह भी कहा गया कि जो राज्य सरकारें अवैध धार्मिक निर्माणों के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर रही हैं, उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही अमल में लायी जाये।

प्रदेश सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से जो फोटोग्राफ अदालत में पेश किये गये हैं, उनमें से अधिकांश एक ही धार्मिक संरचना से जुड़े हुए हैं।

सरकार की ओर से आगे कहा गया कि याचिकाकर्ताओं की ओर अदालत के समक्ष सही तथ्यों को पेश नहीं किया गया है। तथ्यों को छिपाया गया है। याचिकाकर्ता की ओर से ज्वालापुर, हरिद्वार में ढहायी गयी एक धार्मिक संरचना को लेकर पहले से दो याचिकायें दायर की गयी हैं। जिनमें याचिकाकर्ता को मुंह की खानी पड़ी है।

अदालत ने इस मामले में शुरू से सख्त रूख अख्तियार किया और अतिक्रमणकारियों को लैंड माफिया की संज्ञा दी। यही नहीं अदालत ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से कहा कि जनहित याचिका लोकप्रियता व सस्ता प्रचार पाने के लिये दायर की गयी है।

अंत में अदालत ने भारी अर्थदंड लगाने के साथ जनहित याचिका को खारिज करने के संकेत देते हुए याचिका पर निर्णय सुरक्षित रख लिया। अदालत के इस रूख के बाद अवैध धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ चल रहे अभियान में तेजी आ सकती है।

गौरतलब है कि राज्य सरकार की ओर से अभी तक इस अभियान के तहत पूरे प्रदेश में सरकारी भूमि पर काबिज सैकड़ों धार्मिक निर्माणों को ढहा दिया गया है।

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