नैनीताल। उत्तराखंड के हरिद्वार में बेलडा ग्रामीणों के साथ कथित पुलिस अत्याचार के खिलाफ का मामला पुनः उच्च न्यायालय पहुंच गया है। न्यायालय ने फिलहाल पीड़ितों का मेडिकल परीक्षण के साथ ही उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिये हैं।
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने पीड़ितों का मेडिकल परीक्षण कराने का तथा उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिये हैं।
गौरतलब है कि दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग को लेकर कुल आठ याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। इनमें सात याचिकाकर्ता कथित रूप से पुलिस अत्याचार के शिकार हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि पुलिस ने राजनीतिक दबाव में उनके खिलाफ बर्बरता की है। उन्होंने 24 मई को प्रधान और जिला पंचायत सपना चौधरी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। पंकज प्रदर्शनकारियों में से एक था।
पंकज की 10 जून को एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से आगे कहा गया कि 11 और 12 जून की रात को पुलिस बेलडा गांव में घुस आयी और महिलाओं और बच्चों को बुरी तरह से पीटा। कुछ को हिरासत में ले लिया।
आगे कहा गया कि पुलिस अत्याचार के चलते याचिकाकर्ताओं में से एक सीमा नामक महिला का गर्भपात हो गया। याचिकाकर्ताओं की ओर से पुलिस की कार्यवाही को गलत और अवैध बताते हुए कहा गया कि उन्हें जान का खतरा है। पुलिस उन्हें धमकी दे रही है।
उनका मेडिकल परीक्षण भी नहीं कराया जा रहा है। याचिकर्ताओं की ओर से दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही के साथ ही घटना की न्यायिक जांच की मांग की गयी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से नैनीताल जिला अस्पताल में मेडिकल परीक्षण कराने की भी मांग की गयी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता सनप्रीत सिंह अजमानी और आलोक कुमार ने बताया कि अदालत ने याचिकाकर्ताओं का रूड़की में मेडिकल परीक्षण के साथ ही उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिये हैं।
इससे पहले भी यह मामला उच्च न्यायालय पहुंच गया था। कानून की छात्रा नगमा कुरैशी की शिकायत पर पुलिस ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए इस प्रकरण में जनहित याचिका दायर कर ली थी लेकिन हरिद्वार के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट के बाद जनहित याचिका को खारिज कर दिया था।