राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों के सरक्षण के लिये जल्द बनायी जायेगी ठोस कार्ययोजना – Polkhol

राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों के सरक्षण के लिये जल्द बनायी जायेगी ठोस कार्ययोजना

नैनीताल। देश के अन्य टाइगर रिजर्व की तर्ज पर उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व (आरटीआर) में भी बाघों के संरक्षण के लिये एक ठोस कार्ययोजना तैयार की जायेगी। इसे दो माह के अदंर तैयार कर केन्द्र सरकार की संस्तुति के लिये भेजा जायेगा।

वन एवं पर्यावरण प्रमुख सचिव आर.के. सुधांशु की ओर से यह बात मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ के समक्ष रखी गयी। देहरादून निवासी अनु पंत की ओर से वन्य जीव संघर्ष को लेकर दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को युगलपीठ में सुनवाई हुई।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि राजाजी टाइगर रिजर्व 2015 में अस्तित्व में आ गया था, लेकिन राज्य सरकार की ओर से यहां वन्य जीवों और बाघों के संरक्षण के लिये कोई कार्ययोजना नहीं बनायी है। इससे प्रदेश में मानव वन्य जीव संघर्ष बढ़ रहे हैं।

याचिकाकर्ता की ओर से केरल के अन्नामलाई टाइगर रिजर्व, राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व और उप्र के दुधवा टाइगर रिजर्व का हवाला देते हुए कहा गया कि बाघों के संरक्षण के लिये यहां ठोस कार्ययोजना बनायी गयी है।

केरल के अन्नामलाई टाइगर रिजर्व की वेबसाइट पर आम लोगों के लिये भी सभी जानकारी उपलब्ध करायी गयी है। इसके अलावा मुआवजा भुगतान के लिये आसान आनलाइन प्रक्रिया उपलब्ध है।

सरकार की ओर से श्री सुधांशु अदालत में वर्चुअल पेश हुए। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से आरटीआर में बाघों के संरक्षण के लिये ठोस कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इसे दो महीने के अदंर केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेज दी जायेगी। केन्द्र सरकार की अनुमति के बाद इसे लागू कर दिया जायेगा।

उन्होंने आगे बताया कि सरकार राज्य में वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिये भी कई कदम उठा रही है। जिलों में पशु चिकित्सकों की नियुक्ति कर दी गयी है। वन्य जीव संघर्ष में मारे गये लोगों के परिजनों को मुआवजा भुगतान के लिये कई अहम कदम उठाये गये हैं।

प्रमुख सचिव ने कहा कि प्रदेश में पिछले दो सालों में मानव वन्य जीव संघर्ष में 61 प्रतिशत की कमी आयी है। अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तराखंड में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। अन्य राज्य भी उत्तराखंड के मॉडल को अपना रहे हैं।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी की ओर से प्रदेश में मौजूद 12 से अधिक हाथी एवं बाघ कोरिडोर की जानकारी दी गयी। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि ये कोरिडोर अतिक्रमण के भेंट चढ़ गये हैं। इनमें लालढांग, चिल्लरखाल, राजाजी, कार्बेट और बड़कोट आदि कोरिडोर शामिल हैं।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इससे जंगली जानवर आबादी क्षेत्र में प्रवेश कर मानव वन्य जीव संघर्ष को अंजाम दे रहे हैं। अदालत ने सरकार से अपने जवाबी हलफनामा में इन सुझावों पर भी सकारात्मक पहल करने के निर्देश दिये हैं।

यही नहीं अदालत ने आरटीआर में बाघों के संरक्षण के लिये तैयार की जा रही कार्ययोजना के प्रगति के संबंध में दो माह में जवाबी हलफनामा प्रस्तुत करने के निर्देश दिये हैं। इस मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *