नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने देश के प्रसिद्ध कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में टाइगर सफारी के नाम पर 6000 पेड़ों के अवैध पातन और अवैध निर्माण के मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश सरकार से पूछा है कि क्यों नहीं इस प्रकरण की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी जाये?
प्रदेश सरकार को इस मामले में आगामी एक सितम्बर तक अदालत को जवाब देना है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ये निर्देश देहरादून निवासी अनु पंत की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश दिये।
मुख्य सचिव एसएस संधु की ओर से आज अदालत में अनुपालन रिपोर्ट सौंपी गयी। अदालत ने इसी साल छह जनवरी को एक आदेश जारी कर मुख्य सचिव को निर्देश दिये थे कि बतायें कि कौन कौन दोषी है और दोषियों के खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी है?
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी और स्निग्धा तिवारी की ओर से रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए शपथ पत्र को पूरी तरह से गुमराह करने वाला बताया गया। उन्होंने कहा कि सरकार इस प्रकरण में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत और गढ़वाल के तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक सुशांत पटनायक के साथ कई लोगों को बचाने में लगी है।
उन्होंने आगे कहा कि सीटीआर में टाइगर सफारी के नाम पर बड़ी संख्या में अवैध निर्माण हुआ है। इसके लिये 6000 पेड़ों की बलि दे दी गयी। प्रदेश शासन और वन महकमे की शह पर अवैध निर्माण हुआ है। टाइगर सफारी के लिये नियमों को ताक पर रखा गया है और केन्द्र सरकार की अनुमति नहीं ली गयी है।

पटनायक पर आरो है कि उन्होंने सीटीआर के सनेह में अवैध ढंग से रेस्ट हाउस का निर्माण किया है। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि केन्द्रीय अधिकार प्राप्त कमेटी (सेंट्रल एमपावर्ड कमेटी), राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और राज्य के आडिटर जनरल की जांच रिपोर्ट में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत को साफ साफ दोषी माना गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि रिपोर्ट में कहा गया है कि वन मंत्री की ओर से ही नियमों को ताक पर रख कर कालागढ़ के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) के पद पर किशन चंद की तैनाती की गयी। आरोप है कि सीटीआर में अवैध ढंग से कई जनरेटर सेट लगाये गये और एक जनरेटर सेट वन मंत्री के सुपुत्र के नाम से देहरादून में संचालित दून इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस में लगाया गया।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि यही नहीं तत्कालीन वन मंत्री की ओर से अपने निजी स्टाफ में दो लोगों की भर्ती की गयी ओर उन्हें सीटीआर के मद से लगभग 16 लाख रूपये वेतन के रूप में भुगतान किया गया।
यह भी कहा गया कि रिपोर्टों में कहा गया है कि एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) को भी दस लाख रूपये का अवैध ढंग से भुगतान किया गया। इस एनजीओ के पौड़ी जनपद के कोटद्वार में दुकाने मौजूद हैं।
अदालत ने इस प्रकरण को बेहद गंभीरता लेते हुए सरकार से पूछा कि दोषियों के खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी है लेकिन मुख्य स्थायी अधिवक्ता (सीएससी) चंद्र शेखर रावत के पास इसका कोई जवाब नहीं था। अंत में अदालत ने इस प्रकरण को सीबीआई को सौंपने के संकेत दिये और सरकार से जवाब देने को कहा। इस मामले में अगली सुनवाई आगामी एक सितम्बर को होगी।