नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बदरीनाथ मंदिर समिति की ओर से महालक्ष्मी मंदिर का अधिकार डिमरी पंचायत को सौंपे जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए में मुख्य सचिव (सीएस) एसएस संधु और संस्कृति सचिव को जवाब पेश करने के लिये अंतिम मोहलत देते हुए दो सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं।
साथ ही कहा है कि जवाब पेश न कर पाने की स्थिति में सीएस और सचिव व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होंगे। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ में हरिद्वार निवासी राकेश कौशिक की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता गोपाल के वर्मा ने अदालत को बताया कि बदरीनाथ मंदिर समिति ने बिना प्रदेश सरकार की अनुमति के महालक्ष्मी मंदिर का हस्तांतरण 35000 रुपये वार्षिक किराये पर डिमरी पंचायत को 35000 रुपये वार्षिक किराए को कर दिया। यही नहीं चरणामृत बेचने की अनुमति भी दे दी जो कि गलत है।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि पांच वर्ष की समयावधि बीतने के बावजूद सीएस की ओर से अभी तक जवाबी हलफनामा भी पेश नहीं किया गया है। अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए मुख्य सचिव को जवाब देने के लिए अंतिम मोहलत प्रदान करते हुए दो सप्ताह में जवाब देने को कहा है। साथ ही जवाब नहीं देने की एवज में अगली तिथि पर व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने के भी निर्देश दिये।
अदालत ने सचिव संस्कृति को भी नोटिस भेजा है और जवाब पेश करने को कहा है। याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि समिति का यह कदम नियमावली के विपरीत है। याचिकाकर्ता की ओर से इस पर रोक लगाने की मांग की गई।