नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जोशीमठ आपदा मामले में उच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं किये जाने के मामले में मुख्य सचिव एस एस संधु को 22 सितम्बर को अदालत में वर्चुअली पेश होने के निर्देश दिए हैं।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अगुवाई वाली पीठ में उपपा के केन्द्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की अधिवक्ता स्निग्धा तिवारी की ओर से कहा गया कि प्रदेश सरकार ने इसी साल 12 जनवरी को एक आदेश जारी कर जोशीमठ के मामले का अध्ययन के लिए एक विशेषज्ञ कमेटी के गठन और कमेटी में स्वतंत्र सदस्यों को शामिल करने के निर्देश दिए थे।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि कमेटी इस मामले में दो महीने में रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में पेश करे लेकिन सरकार की ओर से आज तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। विशेषज्ञ कमेटी का गठन भी नहीं किया गया है। अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए मुख्य सचिव को वर्चुअली अदालत में पेश होने के निर्देश दिए हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) के तपोवन विष्णुगाढ़ हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर बांध परियोजना के चलते हजारों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है। ऐसा लगता है कि विष्णुगाड परियोजना को शुरू करने से पहले सम्यक अध्ययन नहीं किया गया और पूर्व रिपोर्टों का संज्ञान नहीं लिया गया।
प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि सेलंग से तपोवन तक सुरंग बनायी जा रही है जो कि जोशीमठ के नाजुक क्षेत्र से होकर गुजरती है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (उत्तराखंड स्पेश एप्लीकेशन सेंटर) के निदेशक एमपीएस बिष्ट व उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला की 25 मई, 2010 को प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया कि 24 दिसंबर, 2009 को एक टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) ने जोशीमठ के पास सेलेंग में एक जलभृत को पंक्चर कर दिया।
जिससे 700 से 800 लीटर भूजल प्रति सेकेंड के हिसाब से जमीन से बाहर निकलने लगा। इसकी भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रिसने वाला भूजल 20 से 30 लाख लोगों की प्रतिदिन प्यास बुझा सकता है।
इस भूजल का रिसाव समय के हिसाब से कम तो हुआ लेकिन इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लगी।
बड़ी मात्रा में अचानक हुए रिसाव से क्षेत्र में जमीनी धंसाव शुरू होने की संभावना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि सात फरवरी, 2021 को हिमनद फटने से चिपको आंदोलन की भूमि रैणी गांव में भीषण आपदा आयी थी। इसमें 204 लोगों की जान चली गयी थी।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि मिश्रा समिति की ओर से भी 1976 में जोशीमठ शहर के इलाके की पारिस्थितिकी की नाजुकता का अध्ययन किया गया। आठ अगस्त, 1976 की रिपोर्ट में कहा गया कि जोशीमठ शहर ठोस चट्टान के ऊपर पर नहीं बसा है। यह बालू व पथर पर बसा है।
समिति ने नगर में किसी प्रकार के निर्माण नहीं करने की सिफारिश की थी। समिति की ओर से कहा गया कि निर्माण से पहले जमीन की भार वहन क्षमता का अध्ययन किया जरूरी है।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत से यह भी मांग की गयी कि जोशीमठ के आपदाग्रस्त क्षेत्र का अध्ययन व आकलन के लिये एक स्वतंत्र जांच कमेटी का गठन किया जाये। जिसमें भू वैज्ञानिक, हाइड्रोलॉजिस्ट, आपदा प्रबंधन, सामाजिक विज्ञानी, भू विज्ञानी, पारिस्थितिकी विद्, भूस्खलन विशेषज्ञ, हाइड्रोलॉजिस्ट व ग्लेशियरों के जानकार शामिल हों। इसके बाद अदालत ने यह निर्देश दिए थे।