ना नियम की चिंता, न फिक्र कोई धन-धान्य की ! जय बोलो बलवान की…!!
नियमों को पलीता और सरकारी धन की वर्वादी को मूकदर्शक बने देख रहे नमामि गंगे परियोजना के अधिकारी!
निजी स्वार्थ पूर्ति व नेता जी को ओब्लाईज करने के लिए नहीं ली जा रही उपलब्ध सरकारी जमीन?
एसडीएम (सदर) साहब ने दिए थे, कम्परेटिव प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश
स्थलीय निरीक्षण में मिली लावारिस पड़ी साढ़े चार बीघा सरकारी जमीन!
क्या डीएम साहब को अंधेरे में रख उड़ाई जायेंगी वित्त मंत्री के आदेशों की धज्जियां?
देहरादून। प्रदेश के विकास में जहां डबल इंजन सरकारें जीतोड़ मेहनत में लगी हुई हैं तथा योजनाओं और परियोजनाओं के क्रियान्वयन में कम पूंजी में समय सीमा के अन्दर ज्यादा काम तथा उपलब्ध अधिक से अधिक सरकारी भूमि का सदुपयोग भी इन योजनाओं में करने को प्रयासरत हैं वहीं राज्य के कुछ विभाग केन्द्र द्वारा वित्त पोषित योजनाओं में दोनों हाथों से लूट मचाकर स्वार्थ सिद्धि में लगे हुए हैं।
ऐसा ही एक मामला प्रदेश की राजधानी देहारादून का प्रकाश में आया है सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सपेराबस्ती मोथरोवाला में सीवरट्रीटमेंट प्लांट की परियोजना को साकार करने में ही धामी की कथित धाकड़ सरकार के राज्य में लूट खसोटऔर चहेते अयोग्य भू स्वामी को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए एवं नेताजी के अनावश्यक दबाव में उन्हें खुश करने की पूरी जुगत में पेयजल निगम के अधिकारियों के साथ साथ कुछ अन्य स्वार्थी अधिकारी भी लगे हुये दिखाई पड़ रहें हैं जो येन केन प्रक्रेण इस प्रयास में हैं कि जैसे भी हो अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता और सरकार!
इस बात का प्रमाण तब देखने को मिला जब जिलाधिकारी महोदया की अध्यक्षता वाली बनी इस कमेटी के अंतर्गत एक प्रशासनिक सदस्य के रूप में एसडीएम (सदर) के नेतृत्व में किए गये विगत सप्ताह 18 अक्टूबर को संयुक्त स्थलीय निरीक्षण में मोथरोवाला 15 एमएलडी एसटीपी के लिए निजी भूमि में आयें सभी प्रस्तावों से सम्बंधित भूमि का स्थलीय निरीक्षण तो कराया गया परंतु उक्त त्रिसदस्यीय समिति के कुछ अधिकारियों के द्वारा इसआईएएस एसडीएम साहब को एक सोची-समझी साजिश के तहत उस अनुपयुक्त व अपरियाप्त नेताजी की भूमि के सम्बंध में भ्रमित व गुमराह करने का पूरा प्रयास किया गया। स्थलीय निरीक्षण में इन अधिकारियों के द्वारा पोल खुलने के डर से वास्तविक स्थिति से पूर्णरूप से अवगत न कराकर तथ्यों को छिपाया गया क्योंकि उक्त भूमि के इर्द-गिर्द आवासीय मकान व बच्चों का एक स्कूल है तथा नेताजी की भूमि मानदंडों के विरुद्ध है और एक मुश्त न होकर सड़क के दोनों ओर है तथा उक्त भूमि से सूखी नदी में जाने का कोई रास्ता भी नहीं है।
मजे की बात यहां यह भी देखने को मिली कि एसडीएम (सदर) महोदय की नजर जब वहां एक सरकारी लावारिस भूमि जो लगभग साढ़े चार बीघा बताई जा रही है, पर पड़ी और उन्होने पटवारी, अधिशासी अभियंता पेय जल निगम व राजस्व उपनिरीक्षक सहित सहायक सदस्यों को कम्परेटिव रिपोर्ट बनाने के निर्देश दिए ताकि सरकारी भूमि का सदुपयोग हो ताकि लगभग साढ़े चार करोड़ के जन-धन की भी बचत भी हो सके, सभी इधर उधर बगलें झाकते नजर आए!
एसडीएम साहब के द्वारा किए जाने वाले संयुक्त स्थलीय निरीक्षण में पेय जल निर्माण एवं विकास निगम एवं नमामि गंगे परियोजना के अधिकारी व राजस्व उपनिरीक्षक उपस्थित थे तथा एक निजी भूमि स्वामी के साथसाथ नेताजी का लाईजनर भी वहां उपस्थित था।
बताया जा रहा है कि उक्त सीवर ट्रीटमेंट प्लांट हेतु क्रय की जाने वाली भूमि खरीद की योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार और सरकारी धन के दुरुपयोग व काली कमाई के चक्कर में एक पूर्व दर्जाधारी मंत्री रहे नेताजी व किसी विधायक के दबाव में सारे नियमों को बलाए ताक रखते हुए अनुपयुक्त भूमि को क्रय किये जाने के षड्यंत्र का भंडाफोड़ समाचार के द्वारा किया जा चुका था जिसके परिणामस्वरूप शासन द्वारा उक्त कदम उठाया गया और कठोर व कडक प्रशासनिक अधिकारी के रूप मैं जाने जानी वाली डीएम मैडम की अध्यक्षता में समिति गठित की गयी।
उल्लेखनीय तथ्य यहां यह भी बताया जा रहा है कि पेय जल निगम के हाल ही में सेवानिवृत्त हुए एक अधिशासी अभियंता के द्वारा सांठ-गांठ के तहत नेताजी की नियम विरुद्ध अनुपयुक्त व अपर्याप्त भूमि को क्रय करने के लिए नियमों को भी मनमाने ढंग से बदल दिया गया था जबकि वहां पर एक निजी भूमि स्वामी की पर्याप्त व उपयुक्त जमीन जो सीधे सूखी नदी से जुड़ी है का प्रस्ताव कम दरों पर भूमि देने का जल निगम को सबसे पहलेप्राप्त हो चुका था किन्तु जल निगम के उक्त अधिशासी अभियंता के द्वारा जाते जाते आए गोपनीय प्रस्ताव कि गोपनियता भी गुपचुप तरीके से लीक करके चहेते नेताजी को बता, उनसे मामूली कम दरें लिखा, हेराफेरी की जा रही थी तभी भंडाफोड़ हो गया। किन्तु उक्त सेवानिवृत्त अधिकारी के इशारों पर ही अब भी सारा खेल खेला जा रहा है?
ज्ञात हो कि इस हेराफेरी और गोलमाल से इस 78 करोड़ की महत्वपूर्ण परियोजना को ग्रहण लगता नजर आ रहा है क्योंकि एसटीपी लगने में अनावश्यक बिलम्व हो रहा है तथा सम्बंधित कुछ अधिकारी अभी भी अपनी स्वार्थी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं और ऐन-केन-प्रकरेण उसी साजिश को अमलीजामा पहनाने व जिला अधिकारी की मुहर लगवाने की जुगत में लगे हुए हैं?
देखना यहां गौरतलब होगा कि जिलाधिकारी दून के समक्ष निष्पक्ष सही व कम्परेटिव रिपोर्ट आती है या फिर वही साजिश युक्त संयुक्त आख्या जो एसडीएम (सदर) के माध्यम से आएगी, उसी पर मैडम की मुहर लगती है और वित्त व शहरी विकास मंत्री के आदेशों को ठेंगा दिखाते हुये नियमों की धज्जिया उड़ाई जाती हैं?
क्या उस गोलमाल की बिसात बिछाने वाले सेवानिवृत्त हुए अधिशासी अभियंता के विरुद्ध भी परियोजना को पलीता लगाने पर शासन प्रशासन कोई कार्यवाही करेगा या फिर बहती गंगा में वह भी हाथ धोएगा….?