धामी राज में बैशाखियों पर चल रहे अधिकांश निगम व विभाग
शासन में बैठे आलाअफसरों का निकम्मापन या स्वार्थसिद्धि का अभाव अथवा टोटा!
देहरादून। ऊर्जा विभाग के पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) में लम्बे समय से रिक्त चले आ रहे निदेशक परिचालन के पद पर प्रभारी के रूप में यूजेवीएनएल के महाप्रबंधक, यमुना वैली जी.एस.बुदियाल को जिम्मा सौंपा जाना बताया जा रहा है जबकि अभी यूपीसीएल और पिटकुल में निदेशकों और प्रबंध निदेशक के अनेकों पद या तो रिक्त चल रहे या फिर काम चलाऊ व्यवस्था में प्रभारी के रूप में चले आ रहे हैं।
सूत्रों की अगर मानें तो आज प्रभारी निदेशक के रूप में बुदियाल ने कार्यभार भी ग्रहण कर लिया है। यह पद संजय मित्तल के कार्यकाल पूरे होने के पश्चात से खाली चल रहा था तथा निदेशक परियोजना का पद अनिल कुमार की एमडी, यूपीसीएल के पद पर नियुक्ति के पश्चात खाली हो गया था, उक्त पद पर प्रभारी के रूप में नीरज टम्टा की नियुक्ति हुई थी जिनकी दुखद मृत्यु के पश्चात से उक्त पद भी रिक्त हैं। निदेशक (वित्त) का पद भी सुरेन्द्र बब्बर के द्वारा महीनों तक पड़े रहे स्तीफे के पश्चात से प्रभारी व्यवस्था में यूजेवीएनएल के सुधाकर बडोनी के पास चला आ रहा है। इसी प्रकार यूपीसीएल में निदेशक परिचालन एमएल प्रसाद के सेवानिवृत्त के पश्चात किए गये विशेष विस्तार के पूर्ण होने के बाद प्रभारी व्यवस्था में ही चल रहा है। एमडी पिटकुल और मुख्य परियोजना अधिकारी, उरेडा का पद भी क्रमशः पीसी ध्यानी और राजीव गुप्ता के पास प्रभारी के रूप में है।
यूं तो उत्तराखंड पेयजल निगम में भी विगत एक जनवरी से अपर सचिव आईएएस रनवीर सिंह चौहान के पास प्रभारी के रूप में है। ऐसे ही पुलिस के मुखिया के रूप में पुलिस महानिदेशक का पद भी प्रभारी के रूप में चल रहा है। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग के चेयरमेन का पद भी आईएएस सुभाष कुमार के पश्चात से रिक्त चल रहा है।
क्या यह प्रभारी के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था कुशल व जबावदेही के लिहाज से उचित है या फिर समय पर पूर्णकालिक नियुक्ति ही विकास में ज्यादा उचित?
आखिर शासन में बैठे धामी के आला अफसर क्यों नहीं समय पर नियुक्तियों की प्रक्रिया पूरी करने में कतरा रहे है? और बैशाखियों पर कामचलाऊ व्यवस्था को अपनायें हुए हैं प्रदेश के विकास की गति और परियोजनाओं को प्रभावित करने वाला यह रवैया निकम्मापन नहीं? क्या समय पर नियुक्तियां ना होना किसी स्वार्थसिद्धि का अभाव है।
फिलहाल उल्लेखनीय यह है कि आज प्रभारी निदेशक परिचालन, पिटकुल की नियुक्ति के पीछे भी शासन के ऊर्जा विभाग की ही सैकड़ों करोड़ के एडीबी टेण्डर को लेकर ऊहापोह लग रही है!