पहले आन्तरिक, फिर आर्वीट्रेशन और अब मामला उच्च न्यायालय में?
तलवारें तो सालों से खूब खिंची पर नतीजा शून्य!
जन-धन की वर्बादी और कान्ट्रैक्टर के उत्पीड़न का खामियाजा अब भुगतेगा कौन?
गुटबाजी – शिथिलता – लापरवाही, दबाव भ या गुपचुप समझौता?
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)
देहरादून। उत्तराखंड ऊर्जा विभाग के चर्चित 2016-17 में हुए एक टेण्डर प्रकरण में जो upgradation of control & protection system… आदि कार्यों का था उक्त प्रकरण में टेण्डर पूलिग सहित अनेकों गम्भीर अनियमितताओं को लेकर पिटकुल के कुछ अधिकारियों के कान्ट्रैक्टर की ओर और कुछ का विरोध काफी गहमा गहमी के साथ लम्बे समय तक चलता रहा। नतीजतन मामला शासन तक पहुंचा और तत्पश्चात जांच कमेटियां एक के बाद एक गठित हुईं, फिर मामला जस्टिस बिष्ट के आर्वीट्रेशन में पहुंचा और जब वहां भी बात नहीं बनी तो जानकारी मिली है कि उक्त प्रकरण कामर्शियल कोर्ट व उच न्यायालय में विचाराधीन है? ज्ञात हो कि इसी दौरान पिटकुल के अधीक्षण अभियन्ता आर्या के द्वारा पुलिस थाना पटेल नगर में गत वर्ष एक एफआईआर संख्या 29/2023 अन्तर्गत धारा 420, 120-बी की पांच-छः लोगों के विरुद्ध नामजद दर्ज करा दी गयी। उक्त मामले में विवेचना अधिकारी उपनिरीक्षक द्वारा साक्ष्यों के अभाव में जुर्म साबित होने की दशा में अन्तिम रिपोर्ट (FR) लगाकर माननीय न्यायालय को भेजी जा चुकी है।
ज्ञात हो कि उक्त मामले की एफआईआर गत वर्ष 21 जनवरी 2023 को पिटकुल के अधीक्षण अभियंता (क्रय एवं अनुबंध) एस पी आर्या द्वारा दर्ज कराई गयी थी। उक्त टेण्डर लगभग 31 करोड़ का था। बताया जा रहा कि इस मामले में पिटकुल के ही अधिकारियों का एक गुट कान्ट्रैक्टर ईशान इंटरप्राइजेज के पक्ष में पुरजोर वकालत कर रहा था और दूसरा पक्ष इस मामले में अपने निगम के हित में लगा हुआ था। बताया तो यह भी जा रहा है कि एफआईआर दर्ज कराने वाले अधिकारी (वादी एफआईआर) की उदासीनता और अनमने मन से लिखाई गयी एफआईआर पर कुछ परिस्थितियों वश और कुछ गुप-चप दबाव के कारण समुचित पैरवी पुलिस विवेचना में नहीं की गई जिसका ही परिणाम रहा कि पुलिस द्वारा आरोप पत्र दाखिल न करके और पर्याप्त सबूत न पाये जाने के आधार पर अन्तिम रिपोर्ट लगा मामला नियमानुसार न्यायालय प्रेषित कर दिया गया। विधि अनुसार अब न्यायालय उक्त एफआर पर वादी एफआईआर को तलव करके उसका विवेचना पर पक्ष जानकर ही कोई निर्णय देगा और यदि न्यायालय चाहेगा कि मामले की विवेचना संदिग्ध है तो पुनः भी विवेचना करता सकता है।
देखिए सोशल मीडिया से प्राप्त एफआर…
सूत्रों की अगर यहां माने तो उक्त कान्ट्रैक्ट में चूंकि पिटकुल के ही एक बड़े गुट की संलिप्तता चर्चाओं में रही जिस कारण इस मामले में भिन्न-भिन्न समय पर उठा-पटक चलती रही तथा दोनों ही गुट एक कान्ट्रैक्टर के पक्ष में स्वार्थवश भावण्डा फूटने के भय से ऐन-केन-प्रकरेण जन-धन की वर्बादी पर लगा रहा वहीं दूसरी ओर दूसरा तथाकथित वफादार गुट अदृश्य डर के साये में पिटकुल हितों को दृष्टिगत इस पेड़ की डाल से उस डाल पर कुलांचे तो मारता दिखाई देता रहा परंतु लक्ष्य और योजना विहीन रह कर महारथियों के होते हुए जन-धन व समय की परवाह किये बगैर तीर चलाता रहा।
उल्लेखनीय तो यहां यह भी है कि इस मामले में सचिव स्तर भी कुछ खास भूमिका रही जिसकारण भी मामला ठंडा दिखाई पड़ रहा है।
उक्त पुलिस एफआर पर प्रभारी प्रंबंध निदेशक का कहना है कि विवेचना का वे विधिवत अध्ययन करेंगे और तत्पश्चात विधिक राय लेकर पिटकुल के हितों को ध्यान में रखते हुए ही उचित कार्यवाही करेंगे तथा यदि इसमें किसी की लापरवाही अथवा उदासीनता की बात सामने आयेगी तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जायेगी और किसी प्रकार की धांधलेबाजी वरदाश्त नहीं की जायेगी। चूंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है अतः अभी कुछ नहीं का जा सकता है माननीय न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।