…और अब‌ 6.9% की बिजली दरों में वृद्धि ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ताओं पर! – Polkhol

…और अब‌ 6.9% की बिजली दरों में वृद्धि ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ताओं पर!

क्या विद्युत नियामक आयोग का यह आदेश उपभोक्ताओं व मतदाताओं से छलावा नहीं?

वाह रे वाह! 28 मार्च का आदेश, प्रभावी 1 अप्रैल से और घोषणा आज!?

अध्यक्ष की चुप्पी : विद्युत मीटर यूपीसीएल के पोल पर या घर के बाहर लगाये तो उसका खामियाजा उपभोक्ता पर क्यों?

उपभोक्ताओं की सिक्योरिटी का लाभ ले रहा यूपीसीएल और सरचार्ज व ब्याज की वसूली भी

(पोल खोल ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)
देहरादून। यूं तो आचार संहिता का अनुपालन करने के लिए सभी सरकारी विभाग, राजनेता आदि कटिबद्ध होते हैं ताकि मतदाताओं के साथ छलावा या प्रलोभन देकर अनुचित लाभ न उठाया जा सके परंतु यहां उत्तराखंड में‌ विद्युत नियामक आयोग ने इस लोक सभा चुनाव में आचार संहिता की आड़ लेकर मतदाताओं के साथ ऐसा छलावा किया है जो उस परिधी में शायद आता ही‌ नहीं हैं क्योंकि विद्युत टैरिफ पिटीशन पर सुनवाई की प्रक्रिया तो आदर्श आचार संहिता के प्रभावी होने से‌ पहले ही शुरू हो चुकी थी, यही नहीं नियामक आयोग की बिद्युत टैरिफ की पिटीशन पर सुनवाई एक न्यायिक प्रक्रिया की श्रेणी में आती है जिस पर आचार संहिता का प्रभाव शून्य होता है। हांलांकि उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग अपने अप्रत्यक्ष सरकार को सहयोग और मतदाताओं अर्थात उपभोक्ताओं को भ्रम में रख कर 28 मार्च 2024 के हस्ताक्षरित निर्णयादेश को महज केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग की गाईड लाईन का अनुपालन बताकर पल्ला झाड़ रहा है और इसी कारण लगभग एक माह बाद आज प्रेस कांफ्रेंस कर नियामक आयोग ने उक्त फैसला सुनाया। मजे की बात यहां यह भी है कि उक्त बढ़ी हुई दरों का निर्णय विगत एक अप्रैल से प्रभावी होगा जबकि व्यवहारिकता और सामाजिक न्याय के अनुसार आगामी एक मई से प्रभावी किया जाना चाहिए।
ज्ञात हो कि यूपीसीएल द्वारा टैरिफ में 27प्रतिशत की वृद्धि का प्रस्ताव दिया गया था जो हर वर्ष की भांति उसकी आदत में शुमार है कि मांगों चार गुना, दो गुना तो मिल ही जायेगा और होता भी वही है। टैरिफ पर नियामक आयोग की जनसुनवाई तो एक बहाना व दिखावा उसे करना तो वही है ऊर्जा प्रदेश की जनता व उपभोक्ताओं पर वृद्धि की तोहमत..! जबकि नियामक आयोग को चाहिए कि जनसुनवाई में आई आपत्तियों को गम्भीरता से ले और पिछले वर्षों में जारी आदेशों के अक्षरस: अनुपालन को सुनिश्चितता का परीक्षण और समीक्षा भी करें ना कि मुंह मियां मिट्ठू बन कर कम वृद्धि किये जाने की स्वयं तारीफ करें।
मजेदार बात यहां यह भी यूपीसीएल ने पिछले वर्ष भी टैरिफ के नियामक आयोग के निर्णय के बाद विद्युत दरों में वृद्धि कर उपभोक्ताओं से भारी भरकम वसूली की जिसे किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यह समय समय पर की गयी वृद्धि बिना उपभोक्ता की आपत्ति सुने ही मनमाने रूप से लागू कर दी गयीं थी।
ब्यूरोचीफ सुनील गुप्ता द्वारा प्रेस कांफ्रेंस में उठाये गये इस सवाल पर आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष एम.एल.प्रसाद चुप्पी साध गये कि जब यूपीसीएल ने उपभोक्ताओं के मीटर घरों के अन्दर से उतार कर अपने लाभ व योजना के कार्यान्वयन हेतु निगम के पोल अथवा घरों के बाहर लगवायें है तो उसके क्षतिग्रस्त का खामियाजा उपभोक्ताओं से क्यों वसूला जाता है? यहीं नहीं यहां मजेदार तथ्य यह भी है कि कनैक्शन के समय जो सिक्योरिटी राशि जमा कराई जाती है उस करोड़ों और अरबों की जमा धनराशि का लाभ यूपीसीएल उठाता है और यदि उपभोक्ता से बिल जमा करने में कुछ विलम्ब हो जाये तो ब्याज और सरचार्ज की वसूली उपभोक्ताओं से क्यों? क्या इसका समायोजन जमा सिक्योरिटी पर यूपीसीएल को मिलने वाले ब्याज और लाभांश से नहीं की जानी चाहिए? अर्थात यूपीसीएल की बल्ले-बल्ले और एक कहावत के अनुसार चित्त भी इनकी और पट्ट भी इनकी तथा किया इनके बाप की!
जनता व कुछ उपभोक्ताओं से आज आये विद्युत दरों पर फैसले पर यह भी बात सामने आई कि काश यह फैसला अपने निर्धारित समय अर्थात 28 मार्च को उजागर कर दिया जाता तो वे छल के शिकार न होते और इस बेतहाशा वृद्धि का प्रभाव 19 अप्रैल को मतदान में स्वत: ही देखने को मिलता!?
ज्ञात हो कि उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग के वर्तमान कार्यवाहक अध्यक्ष एम.एल.प्रसाद पूर्व में यूपीसीएल में निदेशक परिचालन के पद पर कार्यरत रहे हैं और उन्हें यूपीसीएल की कार्यप्रणाली व जगजाहिर भ्रष्टाचार के कारनामों की जानकारी भी रही ही होगी? क्या नियामक आयोग को स्व संज्ञान नहीं लेना चाहिए कि जिस यूपीसीएल को प्रोफिट मेकिंग होना चाहिए और बिजली दरों में वृद्धि की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए उसके पीछे के कारण क्या हैं जो उसे लासमेकिंग है और अपने कर्मों का फल‌ उपभोक्ताओं पर थोपता रहता है?
क्या चुनाव आयोग आचार संहिता की आड़ लिए जाने एवं उसके पीछे छिपे मन्तब्य पर संज्ञान लेगा और प्रदेश की धामी सरकार नियामक आयोग की इस कार्य प्रणाली व वृद्धि के निर्णय पर कोई प्रभावी कदम उठायेंगी और उपभोक्ताओं को राहत पहुंचाने की दिशा में कोई पहल करेगी या यूं ही जनता का हमदर्द होने का दिखावा करती रहेगी व ढोल पीटती रहेगी?
देखिए टैरिफ आदेश…

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