...और अब नहीं रहे पिटकुल के मुख्य अभियंता अनिल कुमार…?
पिटकुल के मुख्य अभियंता व यूपीसीएल के निदेशक (परियोजना) रहे अजय का भी पता नहीं : संशय बरकरार…?
…जब धाकड़ सरकार के आला अफसर ही उड़ाने लगें हों नियमों की धड़ल्ले से धज्जियाँ?
बैक डेटिंग और बैड बैटिंग के खेल, खेल रहे सचिवालय के ये चमत्कारी आला अफसर?
वित्तीय अनिमतिताओं और सेवा नियमावली को खुद ही दिखा रहे ठेंगा? तो कैसे होगा अन्यों पर नियंत्रण!
क्या इन विशेष योग्यता रखने वाले एकमात्र एक्सपर्ट की डिग्रियों की भी कर ली गयी जांच व पड़ताल?
कर्मठ अधिकारियों का काम करना हुआ दूभर : कौन खोले मुंह !!
कैसे कराओगे बैक डेट में समायोजन और नियमितता, जनाब : असलियत छिपाये जाने के पीछे की मंशा…!
क्या धाकड सरकार के धाकड़ मुखिया अपने शासन में इस तरह की कार्यप्रणाली पसंद करेंगे या फिर इस पर लगाम लगाकर जनता में छवि खराब करने वाले आला अफसरों को कोई सबक सिखायेँगे या शह—
(पोलखोल – तहलका ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता का एक और खुलासा)
देहरादून। अगर धाकड़ सरकार सुर्खियों में न रहे तो वह धाकड कैसे कहलायेगी फिर चाहे नियमों को ताक पर रखकर “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” और “समरथ को नहीं दोष गुसाईं” की परिपाटी को ही बनाए रखना पड़े! या फिर अपने लाडलें आलाअफसरों के कन्धों पर ही बंदूक क्यों न चलानी पड़े! दूसरी ओर ऐसा भी चर्चा निरन्तर विद्यमान है कि यूपीसीएल में इस ऐतिहासिक पोस्टिंग के पीछे की कहानी तो असल में कुछ और ही है “एक्सपर्ट” बताना तो मात्र एक बहाना है। यहाँ यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि जब शासन और सरकार को यह अधिकार है कि वह जिसकी चाहे नियुक्ति कर सकती है तो फिर इस नियुक्ति को छिपाये रखने और खामखाह में विस्मय और सशपेंस बनाए रखना क्या जरूरी था, क्या इससे वित्तीय नियमों का उल्लंघन नहीं?
मजे की बात तो यहाँ यह भी है कि और तो और इन महाशय मुख्य अभियंता के नियोक्ता पिटकुल को ही नहीं लगभग दो महीने बीत जाने तक यही नहीं पता की उसका कर्मचारी मुख्य अभियंता है कहाँ और किस स्थिति में है तो विद्युत नियामाक आयोग सहित उन सभी सम्बंधित विभागों व संस्थानों को कैसे पता होगा?
देखिए आरटीआई में प्राप्त प्रतिक्षित आदेश…!

यहाँ ये भी काबिले तारीफ है कि देर आए दुरुस्त आये या फिर कैसे भी आए और पटाक्षेप तो हुआ उस बहुप्रतीक्षित आदेश का जिसको लेकर तरह तरह की चर्चाएं व्याप्त थी भले ही यह आदेश आधी हकीकत आधा फंसाना ही क्यों न हो! अभी एक आदेश इसी तरह का प्रतीक्षा में है देखना है कि कब होता है उसका भी पटाक्षेप या फिर पिटकुल में मुख्य अभियंता के रूप में छोटे साहब की वापसी?
ज्ञात हो कि पिटकुल से नियमानुसार अधिवर्षता आयु पूरी करने के उपरांत माननीय सेवानिवृत्त हो चुके हैं तथा उनका धारणाधिकार (Lein) समाप्त हो चुका है तब शासन के ऊर्जा सचिव के द्वारा जारी 09 अक्टूबर, 2024 प्रदर्शित तिथी का कार्यालय आदेश सं. 663/1(2)/2024-25/2017-TC (E file-76741) जो कि वमुश्किल तमाम हमें आरटीआई के अन्तर्गत प्राप्त हुआ अपने आप में ही आधी हकीकत आधा फसाना बना हुआ है! गौर फरमाने वाला तथ्य उक्त पत्र में यह है कि जब सेवानियमावली के अनुसार महाशय सेवानिवृत्त ही हो गये और अब उनका अपने नियोक्ता पिटकुल से कोई अधिकारिक वास्ता ही नहीं रहा तो ऐसे में ” दिनांक 31-10-2024 से दो वर्ष के सेवा विस्तार ” कुछ फसाने तो नहीं उत्पन्न करके सम्बंधित विभागों और सस्थानों के लिए परेशानियों का सबब तो नहीं साबित होगा?
पोल खोलती इनकी सारी हकीकत की आरटीआई में नियोक्ता पिटकुल से प्राप्त जानकारी व सवाल सूचना….!






“एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा” वाली कहावत के अनुसार आनन-फानन में यूपीसीएल के एमडी पद पर जिन कारणों और खूबियों की बजह से जनाब की नियुक्ति का किया जाना बताया गया है उसकी भी विधिवत औपचारिकताएं और जांच पड़ताल की गयी या फिर यूं ही “समरथ को नहीं दोष..!”
विशेषज्ञों की और आरटीआई से प्राप्त सूचनाओं की अगर यहाँ माने तो अनिल कुमार, मुख्य अभियंता (स्तर-1) अब पिटकुल में नहीं रहे। वे केवल यूपीसीएल के एमडी हीं हैं और इस प्रकार यदि यह आदेश बैक डेट मैं जारी किया गया है ताऊ किंचित मात्र भी उचित नही हो सकता।
बात यहाँ अभी पिटकुल के मुख्य अभियंता व यूपीसीएल के निदेशक (परियोजना) रहे अजय के बारे में अभी भी संशय बरकरार बनाए हुए है क्योंकि उनका भी नियोक्ता पिटकुल ही है और पिटकुल से आरटीआई में प्राप्त जानकारी के अनुसार नियमानुसार उनका धारणाधिकार (Lien) भी गत16 दिसम्बर को समाप्त हो चुका तथा यूपीसीएल में निदेशक (परियोजना) के पद पर नियुक्ति की अवधि भी 16 दिसम्बर, 2024 को पूरी हो चुकी है किन्तु उत्तराखंड शासन की कार्य करने की गजब की कार्यप्रणाली से उक्त पर भी संशय बरकरार है और ना ही नियोक्ता पिटकुल को पता कि उसका मुख्य अभियंता अजय कुमार अग्रवाल है कहाँ, क्योंकि उसने नियमानुसार अभीतक अपने मूँ निगम पिटकुल में वापसी ही नहीं की है?
क्या शासन और सरकार की यह कार्यप्रणाली और बैकडेट में कोई आदेश जारी करना अपने आप में ही ‘बैड बैटिंग’ का खेल नहीं समझा जाना चाहिए! जबकि शासन और सरकार तो अपने आपमें सक्षम है तो फिर ये गलत संदेश अन्य विभागों और अधिकारियों को कि बैक डेटिंग और बैड बैटिंग भी उचित है? पार्दर्शिता की बात और आरटीआई एक्ट के दुरूपयोग व मनमाने दुस्साहस की बात करना तो मात्र अतिशियोक्ति ही होगी।
देखना यहाँ गौर तलव होगा कि क्या धाकड सरकार के धाकड़ मुखिया अपने शासन पर इस तरह की कार्यप्रणाली पर लगाम लगाकर जनता में छवि खराब करने वाले आला अफसरों को कोई सबक सिखाते हैं या शह प्रदान करते है?