उत्तराखंड सूचना आयोग एक ऐसी संभावित परेशानी से गुजर रहा है, जिसके चलते आने वाले दिनों में आयोग का काम ठप भी हो सकता है. दरअसल मामला सूचना आयोग में आयुक्तों की कमी का है. जिसे सरकार पिछले कई महीनों से दूर नहीं कर पाई है. अब स्थिति ये है कि अगले एक महीने में नियुक्ति प्रक्रिया के आगे न बढ़ने पर आम लोगों को आयोग में सूचना के अधिकार से ही महरूम होना पड़ सकता है.
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 आम लोगों को सरकारी सिस्टम में हर जानकारी पाने का हक देता है. इसमें सूचनाए ना मिलने या प्राप्त सूचना से इत्तेफाक ना रखने पर अधिनियम अपील करने का भी अधिकार देता है. राज्य के स्तर पर सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण अपील उत्तराखंड सूचना आयोग में होती है. जहां सूचना को स्पष्ट रूप से अपीलार्थी तक पहुंचाकर मामले को निस्तारित किया जाता है. लेकिन नई चिंता उत्तराखंड सूचना आयोग में इस पूरी व्यवस्था के चरमराने की है. जिसे समय रहते आयुक्तों की नियुक्ति के जरिए ही दूर किया जा सकता है.
उत्तराखंड सूचना आयोग में एक्ट के अनुसार एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्तों की नियुक्ति हो सकती हैं. हालांकि राज्य के इतिहास में अबतक साल 2010 के दौरान सबसे ज्यादा 6 आयुक्त आयोग में नियुक्त थे. जिसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त और पांच सूचना आयुक्त शामिल रहे. वैसे तो उत्तराखंड सूचना आयोग में अपील की संख्या को देखते हुए 10 सूचना आयुक्तों की आवश्यकता नहीं दिखाई देती. लेकिन अब जिस कदर रिक्त पदों की संख्या बढ़ी हैं, उसने आयोग के कामकाज पर सवाल उठने तय हैं.
फिलहाल उत्तराखंड सूचना आयोग में केवल दो आयुक्त ही अपील का निस्तारण कर रहे हैं. इसमें भी सूचना आयुक्त विपिन चंद्र की मार्च पहले सप्ताह में सेवाएं खत्म हो रही हैं. इसके बाद आयोग में केवल एक सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ही रह जाएंगे. परेशानी इस बात की है कि आयोग में अपील की प्रक्रिया को चलाने के लिए कम से कम एक मुख्य सूचना आयुक्त और एक आयुक्त का होना बेहद जरूरी है. हाई कोर्ट के निर्देशों के क्रम में CIC और एक सूचना आयुक्त के ना होने की स्थिति में आयोग में अपील नहीं सुनी जा सकती हैं. यानी मार्च महीने के पहले हफ्ते तक यदि सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त की नियुक्ति नहीं की जाती तो आयोग में अपील का काम पूरी तरह से ठप हो जाएगा. उधर इसी साल दिसंबर महीने में सूचना आयुक्त योगेश भट्ट भी अपना सेवाकाल खत्म कर रहे हैं.