उत्तराखंड के सबसे बड़े फ्रॉड में से एक माने जा रहे एलयूसीसी घोटाले को खोलना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. पुलिस विभाग मामले में सोसाइटी पर चौतरफा शिकंजा कसना चाहता है और इसीलिए सीबीसीआईडी की जांच के अलावा प्रकरण के दस्तावेज इनकम टैक्स और एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट को भी भेजे गए हैं. हालांकि राज्य में यह फ्रॉड कितने का हुआ है? इसकी एक निश्चित रकम सामने नहीं आई है. लेकिन माना जा रहा है कि यह रकम करोड़ों में हैं.
उत्तराखंड में पिछले लंबे समय से लोग एक बड़ी साजिश का शिकार हो रहे हैं. प्रदेश के कई जिलों में लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई को मामूली लालच के चक्कर में गवां दिया है. मामला एलयूसीसी यानी द लोनी अर्बन क्रेडिट सोसाइटी का है. जिसे प्रदेश में सबसे बड़े फ्रॉड में से एक माना जा रहा है. यह फ्रॉड एक दो नहीं बल्कि कई जिलों में होने की बात सामने आ रही है. हालांकि सभी शिकायतकर्ताओं के सामने आने के बाद ही इसकी असल स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस विभाग ने भी कार्रवाई तेज कर दी है. इस मामले में जांच सीबीसीआईडी को दी गई है. इस मामले में अब तक 8 मुकदमे विभिन्न जिलों में दर्ज किए जा चुके हैं. यह मुकदमे देहरादून, पौड़ी, उत्तरकाशी, टिहरी और रुद्रप्रयाग जिले में दर्ज हुए हैं.

जांच के दौरान यह बात सामने आई है कि आम लोगों को विभिन्न प्रलोभन और झांसा देकर धनराशि जमा करवाई गई और इसके बाद इस धनराशि का हड़प कर लिया गया. इसमें एक मामले में 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया गया है. प्रकरण को लेकर मामले के आरोपियों की संपत्ति की जानकारी जुटाई जा रही है. ताकि इन्हें नीलाम करने की विधिक कार्रवाई की जा सके.
आरोपियों के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर और ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी किया जा चुका है. इसमें आरोपियों के पासपोर्ट और दूसरे दस्तावेजों की जानकारी के लिए पासपोर्ट अधिकारी से भी संपर्क किया जा रहा है. खास बात यह है कि अभियोगों के संबंध में आवश्यक दस्तावेज आयकर विभाग और ईडी को भी उपलब्ध करा दिए गए हैं. साथ ही अब तक हुई कार्रवाई की भी जानकारी दी गई है. मामले में जिला पुलिस के स्तर पर भी विधि कार्रवाई की जा रही है.
उत्तराखंड में यह पहली बार नहीं है. जब आम लोगों की गाढ़ी कमाई पर डाका डाला गया. इससे पहले भी इसी तरह किटी के नाम पर लोगों से ठगी होती रही है. लेकिन इस बार मामला किसी एक जिले का नहीं है. बल्कि कई जिलों में सोसाइटी के नाम पर लोगों से लंबे समय तक पैसे जुटाए जाते रहे और बाद में जिम्मेदार लोग फरार हो गए.