ऐसे तो सफल होने से रहा लाकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग राजधानी दून में, साहब! डीआईजी की आक्रामकता का भी असर दिख नहीं रहा!!

ऐसे तो सफल होने से रहा लाकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग राजधानी दून में, साहब!

दिल्ली से देहरादून कैसे पहुँचा आॅडी कार में दम्पत्ती 10 दिन के मासूम के साथ

जब “पोलखोल” ने खोली पोल, तो जागी पुलिस, हुई फटाफट कार्यवाही वह भी अधूरी

तो 17 घंटे बाद हुये होम कोरंटीन – क्षेत्रवासियों की अटकी रहीं साँसे : कहीं वीआईपी वाला खेल तो नहीं

देहरादून। एक तरफ जहाँ सरकार व जनता कोरोना (कोविड-19) से फाईट कर रही है और लाकडाउन व सोशल डिस्टेंसिंग को सफल बनाने में कोरोना वारियर्स के साथ-साथ सरकार, पुलिस एवं प्रशासन पूरी तन्मयता से लगा हुआ है, वहीं कुछ सवालिया निशान भी पुलिस की कार्यप्रणाली पर लग रहे हैं।
हो न हो कहीं न कहीं इनमें सुधार और पारदर्शिता की आवश्यकता है।
ज्ञात हो कि आपके प्रिय “पोलखोल” वेव पोर्टल के ब्यूरो चीफ को जानकारी मिली कि दिल्ली/मोहन नगर से एक दम्पत्ति अपने नवजात मासूम शिशु के साथ आॅडी कार से उत्तराखंड की सीमा में प्रवेश करके राजधानी दून स्थित वाॅडीगाड की गली नम्बर तीन में बीती रात 11बजे अपने मकान में पहुँच गये।

कोरोना संक्रमण की आशंका से भयभीत क्षेत्र के लोगो व उसी मकान के किरायेदारों की साँसें आज पूरे दिन अटकी रही क्योंकि बाहर से आया उक्त ब्यक्ति कालोनी में स्वछन्द घूम रहा था। बात यहीं पर नहीं रुकी सरकार व स्वास्थ्य विभाग की ओर से सर्वे कर रही आशा कार्यकर्ताओं की टीम जब पहुँची तो उसके साथ भी पूछताछ पर अनुचित व्यवहार किया गया ओर कोई मेडिकल व अनुमति नहीं दिखाई, जिससे आशंकित आशाओं के कहने पर राजपुर पुलिस ने केवल पुरुष का ही मेडिकल दून चिकित्सालय में कराकर इतिश्री करना उचित समझ लिया। जबकि महिला व नवजात का भी परीक्षण कराया जाना चाहिए था।

इस प्रकरण को जनहित में गम्भीरता से लेते हुये जब पुलिस उप महानिरीक्षक एवं एसएसपी से करीब चार बजे ब्यूरो चीफ द्वारा जानकारी चाही गई तो डीआईजी महोदय की पीसी में व्यस्तता के कारण, उनके कहने पर रिवर्स काल में एसपी क्राईम ने हमसे वार्ता में जानकारी ले तो ली, पर अनभिज्ञता प्रकट करतेे हुये, देखने को कहा।

ज्ञात हो कि लगभग 16-17 घंटे बाद उक्त परिवार को होम कोरंटीन कर दिया गया, परन्तु क्या यह कार्यवाही केवल औपचारिकता को ही प्रदर्शित नहीं कर रही है? साथ ही आला अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान नहीं लगा रही है।

क्या पूरे कोरोना संदिग्ध परिवार व इस मकान व क्षेत्र को सील करके संपर्क में आये अनजान लोंगो को एहतियात के तौर पर तब तक कोरंटाइन नहीं कराया जाना चाहिए जबतक कि जाँच रिपोर्ट न आ जाये? यह भी ज्ञात हुआ है कि देर शाम उक्त मकान पर कोररंटीन का पम्फलेट अवश्य लगा दिया गया है। कहीं ये पूरा प्रकरण वीआईपी वाला खेल तो नहीं?

क्या इन तथ्यों की जाँच नहीं होना चाहिए कि उक्त दमपत्ती नवजात शिशु के साथ दिल्ली /मोहन नगर से बिना सरकारों की अनुमति के बार्डर पार करते हुये राजधानी दून में कैसे प्रवेश कर गये?

क्या महज प्रसूता चिकित्सक का डिसचार्ज लेटर आने के लिए पर्याप्त था? यदि कोई अनुमति थी भी, तो सर्वे के समय आशाओं को न दिखाना और दुर्व्यवहार उचित था?

इस सम्बन्ध में जब पुनः देर शाम डीआईजी साहब से जानकारी चाही गई तो उनके द्वारा जो बताया गया उससे लाकडाउन और सीमाएँ सील का प्रश्न चिन्ह नहीं हटा और उसमें कहीं न कहीं वीआईपी ट्रीटमेंट की झलक अथवा उन्हें भी कहीं भ्रम में रखे जाने की बात समझ में आ रही थी।

डीआईजी की आक्रामकता का भी असर दिख नहीं रहा!

यह प्रकरण ही नहीं सोशल डिस्टेंसिंग और डीआईजी साहब के दुकानों के लिए जारी आदेशों पर भी कुछ सवालिया निशान अभी भी निरन्तर लग रहे हैं जबकि 9 अप्रैल की डीआईजी अरूण मोहन जोशी की पुलिस की लापरवाही पर आक्रामक कार्यवाही से लग रहा था कि शायद इस कार्यवाही का कुछ असर दिखाई देगा।

परन्तु कचहरी के निकट व एसएसपी आफिस के बगल में प्रोवीजन स्टोर, चन्दर नगर की एक दुकान और एक भाजपा नेता की गांधी रोड स्थित दुकान ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह लगा दिये हैं।

(देखिए वीडियो…..जो स्वयं ही सब बयाँ कर रही है)

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