ऊर्जा के बिना कैसे….? ऐसे ही चलता है रामभरोसे काम यहाँ? एक नही 8-8 पद खाली फिर भी हीलाहवाली??

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ऊर्जा के बिना कैसे….?
ऐसे ही चलता है रामभरोसे काम यहाँ?
एक नही 8-8 पद खाली फिर भी हीलाहवाली??
देहरादून। उत्तराखंड की गुड गवर्नेंस बाली भृष्टाचार पर जीरो टॉलरेन्स की सरकार के ऊर्जा विभाग का निकम्मापन कहा जाए या फिर यूँ मान लिया जाए कि आदेशों का क्या वो तो फ़ाइल पर होते ही रहते हैं और यहां भी हो ही जायेंगे? काम चलते रहना चाहिए , भले ही ….!
ऊर्जा विभाग का ये कोई नया समाचार या नई बात नही है, जब एक निदेशक के रिटायर होने से पद खाली हो रहा हो! ऐसे तो अनेकों पद इसके तीनों निगमों में काफी समय से खाली पड़े हैं उनपर भी काम चल ही रहा है।
ज्ञात हो कि कल 30 नवम्बर को यूपीसीएल के निदेशक परियोजना का पद भी एम के जैन के सेवाकाल 60वर्ष पूरे हो जाने के कारण रिक्त हो चुका है परंतु उक्त महत्वपूर्ण पद पर अभी न ही कोई विस्तार हुआ और ना ही किसी को इसका जिम्मा सौंपा गया। जबकि नियमानुसार समय रहते ही शासन द्वारा रिक्तियां गजट कर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए थी और नए निदेशकों की नियुक्ति की जानी चाहिए! पर यहां भी तो खेल कुछ और ही खेला जाना है, सीएम प्रदेश से बाहर हैं ये तो एक बहाना है, उनका क्या उन्हें तो आना जाना है ही!
सूत्रों की अगर मानें तो यूजेवीएनएल में -3, पिटकुल में-3 और यूपीसीएल में-2 पद पूर्ण रूप से काफी समय पूर्व ही खाली हो चुके जिनपर वैकल्पिक व्यवस्था चल रही है और लॉटरी उनकी अपने आप ही और खाने कमाने की निकल गयी ।
ऐसी प्रकार राज्य विद्युत नियामक आयोग में 2 पद माननीय सर्वोच्च न्यायालय के छाते के नीचे अनुपालन की बाट जोहते जोहते थक चुके हैं और हॉल ही में इसी प्रकार तीनो निगमों में अभी जल्दी ही कुछ पद समय पूरा हो जाने के कारण और रिक्त हो जाएंगे तथा नियामक आयोग के अध्यक्ष का भी पद खाली हो जाएगा!
मजे की बात तो यह भी है कि आदेश पर आदेश करने में महारथ हासिल कर चुकी सचिव ऊर्जा को यही याद नही रहपाता की वे जो आदेश अब करने जा रही हैं उससे पहले उनोहने क्या आदेश किया था? क्या पहले बाले आदेश का पालन हुआ या नहीँ या फिर अपने ही आदेश को वे इस नए आदेश से कहीं बाईपास तो नही कर रही हैं? ऐसा एक आदेश अभी हाल ही में लगभग 14-15 दिनों पूर्व किया गया था जो ज्वलंत उदाहरण है जिसमें तीनों निगमों के प्रबंध निदेशकों को दस दिनों में समस्त लंवित जाँचे व कार्यवाहियों का व्यक्तिगत तौर पर सुनिश्चित करने के साथ साथ जवाबदेही का किया गया था, पर क्या उक्त आदेश का पालन हुआ या फिर वह भी हवा में एक बुलबुला बनाकर उड़ा दिया गया?
ज्ञात हो कि पिटकुल में दो निदेशक वित्त व मानव संसाधन के निदेशक till further order के सहारे चल रहे हैं तथा एकपरियोजना का पद पिछले करीब डेढ़ साल से पचड़ों में उलझ होने के कारण कभी विस्तार पर तो कभी dwell चार्ज के रूप मे काम चलाऊ सरकार की तरह चल ही रहा है।
इसी प्रकार यूपीसीएल में वित्त, मानव संसाधन व परियोजना का पद इधर उधर झांकता नज़र आ रहा है तथा यूजेवीएनएल में भी वित्त, परियोजना एवं ओएंडएम के साथ साथ मानव संसाधन का पद भी आदेशों की प्रतीक्षा में पलके बिछाए वाट जोह रहा है!
यहां अगर चर्चाओं की मानें तो यूपीसीएल के गत दिवस रिक्त हुए पद पर भी सीएम के तथाकथित कुछ खासमखास कहलाने वाले एक मुख्य अभियन्ता की बैकडोर से बैटिंग जारी बतायी जा रही है, देखना है कि उक्त महाशय सफल होते हैं या फिर एमके जैन को ही मिलता है सेवा विस्तार? वैसे तो उक्त महान अभियन्ता महोदय खासे चेर्चाओं में रहने के आदी हो चुके हैं और विभाग की छवि को चार चांद लगाकर जब-तब चमका भी चुके हैं फिर चाहे उनमें ढाई लाख का माल 62 लाख में खरीदे जाने का प्रकरण हो या फिर ट्रांसफर घोटाला और एडवांस बुकिंग का खेल हो? वैसे भी ये मान्यवर ऊर्जा विभाग को ऊर्जा पहुचाने मे माहिर तो है ही!!

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