पुण्यतिथि पर राष्ट्रयोगी दत्तोपंत ठेंगड़ी को किया याद

भरतीय मजदूर संघ द्वारा विशेष कार्यक्रम

पुण्यतिथि पर राष्ट्रयोगी दत्तोपंत ठेंगड़ी को किया याद

ऋषिकेश। भारतीय मजदूर संघ द्वारा दत्तोपंत ठेंगड़ी की स्मृति में विशेष कार्यक्रम कर मनाया गया। भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा दत्तोपंत ठेंगड़ी की स्मृति में दोपहर के समय आवश्यक खाद्य सामग्री का वितरण किया गया और सांध्य कालीन गंगा आरती में मैं शामिल होकर उनको स्मरण किया गया और उनके द्वारा किए गए सभी सराहनीय कार्य को दोहराहा गया और कार्यक्रम को बड़ी ही सादगी के साथ पूर्ण किया गया।

भरतीय मजदूर संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव विश्नोई ने बताया दत्तोपन्त ठेंगड़ी का जन्म दीपावली वाले दिन (10 नवम्बर, 1920) को ग्राम आर्वी, जिला वर्धा, महाराष्ट्र में हुआ था। वे बाल्यकाल से ही स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय रहे। 1935 में वे ‘वानरसेना’ के आर्वी तालुका के अध्यक्ष थे। जब उनका सम्पर्क डा. हेडगेवार से हुआ, तो संघ के विचार उनके मन में गहराई से बैठ गये।

उनके पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे; पर दत्तोपन्त एम.ए. तथा कानून की शिक्षा पूर्णकर 1941 में प्रचारक बन गये। शुरू में उन्हें केरल भेजा गया। वहाँ उन्होंने ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ का काम भी किया। केरल के बाद उन्हें बंगाल और फिर असम भी भेजा गया।

ठेंगड़ी ने संघ के द्वितीय सर संघचालक गुरु के कहने पर मजदूर क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ किया। इसके लिए उन्होंने इण्टक, शेतकरी कामगार फेडरेशन जैसे संगठनों में जाकर काम सीखा।साम्यवादी विचार के खोखलेपन को वे जानते थे। अतः उन्होंने ‘भारतीय मजदूर संघ’ नामक अराजनीतिक संगठन शुरू किया,जो आज देश का सबसे बड़ा मजदूर संगठन है।

ठेंगड़ी के प्रयास से श्रमिक और उद्योग जगत के नये रिश्ते शुरू हुए। कम्युनिस्टों के नारे थे ‘‘चाहे जो मजबूरी हो, माँग हमारी पूरी हो; दुनिया के मजदूरो एक हो; कमाने वाला खायेगा’’। मजदूर संघ ने कहा ‘‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम; मजदूरो दुनिया को एक करो; कमाने वाला खिलायेगा’’। इस सोच से मजदूर क्षेत्र का दृश्य बदल गया। अब 17 सितम्बर को श्रमिक दिवस के रूप में ‘विश्वकर्मा जयन्ती’ पूरे देश में मनाई जाती है। इससे पूर्व भारत में भी ‘मई दिवस’ ही मनाया जाता था।

उत्तराखंड की आशा कार्यकत्री संगठन की प्रदेश महामंत्री ललितेश विश्वकर्मा ने बताया की ठेंगड़ी 1951 से 1953 तक मध्य प्रदेश में ‘भारतीय जनसंघ’ के संगठन मन्त्री रहे,पर मजदूर क्षेत्र में आने के बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी। 1964 से 1976 तक दो बार वे राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होंने विश्व के अनेक देशों का प्रवास किया। वे हर स्थान पर मजदूर आन्दोलन के साथ-साथ वहाँ की सामाजिक स्थिति का अध्ययन भी करते थे। इसी कारण चीन और रूस जैसे कम्युनिस्ट देश भी उनसे श्रमिक समस्याओं पर परामर्श करते थे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच आदि की स्थापना में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही।

26 जून,1975 को देश में आपातकाल लगने पर ठेंगड़ी जी ने भूमिगत रहकर ‘लोक संघर्ष समिति’ के सचिव के नाते तानाशाही विरोधी आन्दोलन को संचालित किया। जनता पार्टी की सरकार बनने पर जब अन्य नेता कुर्सियों के लिए लड़ रहे थे; तब ठेंगड़ी जी ने मजदूर क्षेत्र में काम करना ही पसन्द किया।

2002 में राजग शासन द्वारा दिये जा रहे ‘पद्मभूषण’ अलंकरण को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि जब तक संघ के संस्थापक पूज्य डा. हेडगेवार और श्री गुरुजी को ‘भारत रत्न’ नहीं मिलता, तब तक वे कोई अलंकरण स्वीकार नहीं करेंगे। मजदूर संघ का काम बढ़ने पर लोग प्रायः उनकी जय के नारे लगा देते थे। इस पर उन्होंने यह नियम बनवाया कि कार्यक्रमों में केवल भारत माता और भारतीय मजदूर संघ की ही जय बोली जाएगी।

14 अक्तूबर, 2004 को उनका देहान्त हुआ। ठेंगड़ी अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने हिन्दी में 28,अंग्रेजी में 12 तथा मराठी में तीन पुस्तकें लिखीं। इनमें लक्ष्य और कार्य,एकात्म मानवदर्शन,ध्येयपथ, बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर,सप्तक्रम,हमारा अधिष्ठान,राष्ट्रीय श्रम दिवस, कम्युनिज्म अपनी ही कसौटी पर,संकेत रेखा,राष्ट्र,थर्ड वे आदि प्रमुख हैं।
कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष संजीव विश्नोई,जिला अध्यक्ष आदर्श सकलानी,ललितेश विश्वकर्मा,गंगा गुप्ता, अंजु गोयल,कमलेश गर्ग,रीना,नरेश बिश्नोई,अनीता चौहान, मनोज रस्तोगी रहे।

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