सील तोड़कर अवैध रुप से किसकी शह पर चल रहा WIC क्लब !

हाईकोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए शासन – प्रशासन गरीबों के झोपडों पर तो अपने बोल्डजरों से कहर ढा रहा है लेकिन अमीरों की गगनचुंबी अट्टालिकाएं की तरफ आंखें मूंद कर बैठा हुआ है और कांग्रेसी नेता किशोर उपाध्याय प्रेस कांन्फ्रेंस कर इन गरीबों के मिसाहा बनने की कोशिश कर रहे हैं और सरकार पर इल्जाम लगा रहे हैं कि सरकार बड़े कारोबारियों की अवैध बिल्डिंगों और अतिक्रमण पर कार्यवाही नहीं कर रही हैं जबकि उनके खुद के भाई सचिन उपाध्याय नाले – खाले पर अतिक्रमण कर एक सील्ड इमारत में अवैध रुप से अपना कारोबार चला रहे हैं।

यदि आपको याद हो तो 28 अप्रैल 2011 को सभी अखबारों में एक खबर सुर्खियों में आई थी कि कांग्रेस के नेता किशोर उपाध्याय के भाई सचिन उपाध्याय और उनकी पत्नी नाजिया ने एमडीडीए के तीन अधिकारियों को बंधक बना लिया था। जिसके बाद पुलिस को कड़ी मशक्कत करके इन अधिकारियों को छुडाना पड़ा था।

दरअसल उस दिन एमडीडीए ने गैरकानूनी तरीके से चल रहे WIC क्लब को सील करने के लिए अपने तीन आधिकारियों को वहां भेजा था। इस क्लब का मालिक कांग्रेसी नेता का दबंग भाई सचिन उपाध्याय है। ये क्लब सील्ड होने के बावजूद अभी भी एमडीडीए की नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए देहरादून के सबसे पॉश इलाके 1112 राजपुर रोड़ से चल रहा है।

जीरो टॉलरेंस की सरकार द्वारा भी सचिन उपाध्याय को इतना संरक्षण प्राप्त हैं कि वह सरेआम गुड़ागर्दी करें या सरकारी जमीन पर कब्जा करें, सारा सिस्टम उनके आगे नतमस्तक हुआ है।

इसी कड़ी में अगर आगे की बात करें तो इन दिनों देहरादून के सड़कों पर एमडीडीए की जेसीबी ने ऐसा तांडव मचाया हुआ है कि मानो पूरा शहर खंडर हो गया हो। सड़क किनारे ये टूटी – फूटी दुकानें उन लोगों की थी, जो दो वक्त की रोटी लिए अपना छोटा – मोटा व्यवसाय चला रहे थे। शासन – प्रशासन को इन लोगों का अतिक्रमण तो दिखा लेकिन रियाहशी इलाको में चल रहे रसूखदारों के करोड़ों की बिल्डिंग और होटल नहीं दिखे। जो ना सिर्फ अवैध तरीके से अपना व्यवसाय कर रहे हैं बल्कि सरेआम एमडीडीए के नियमों की धज्जियां भी उड़ा रहे हैं जबकि हाईकोर्ट के सख्त आदेश दिया है कि आवासीय नक्शे पर कोई भी व्यवसायिक गतिविधि नहीं होगी।

पत्रकार मनमोहन लखेड़ा की पीआईएल पर फैसला सुनाते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने आवासीय नक्शों पर कमर्शियल निर्माण करने और फिर कंपाउंडिंग कराकर अवैध निर्माण को वैध कराने की प्रवृत्ति पर सवाल खड़े किए थे। इसके साथ ही कोर्ट ने आवासीय नक्शे पर कमर्शियल गतिविधि संचालित करने व बेसमेंट में पार्किंग का प्रयोग न करने पर समूचे भवन को सील करने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि सरकार को इस रीति को समाप्त कर देना चाहिए कि पहले कोई भी आवासीय नक्शे पर कमर्शियल निर्माण कर दे और फिर मामूली कंपाउंडिंग फीस अदा कर उसे वैध करा ले। इस प्रवृत्ति को कोर्ट ने कानून के विपरीत बताया है। साथ ही सरकार को आदेश दिया है कि वह बिल्डिंग बायलॉज में आवश्यक संशोधन भी करे, ताकि इस तरह के मामलों पर अंकुश लगाया जा सके।

हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद एमडीडीए का डंडा सिर्फ आम लोगों पर ही चला, रसूखदार और सत्ता के करीबी लोगों पर इसका भी कोई असर देखने को नहीं मिला। एमडीडीए ने कई प्रतिष्ठान को सील किया लेकिन उन्हें देहरादून के सबसे विवादित और चर्चित WIC क्लब नहीं दिखा जोकि 1112 राजपुर रोड़ पर अवैध तरीके से संचालित हो रहा है। इस क्लब का पूरा नाम है World Integrity Centre” (WIC), शायद आपने इसका नाम सुना होगा, क्योंकि इस क्लब में कई सारी बुक लॉन्च होती है, सेलेब्रिटी यहां आते हैं, कई शो या कार्यक्रमों मे नौकरशाह, रिटायर्ड जज, आला – अधिकारी एवं तमाम बड़े नेता यहां की सेवा का लुत्फ उठाते हैं तो ऐसे में उनका आशीर्वाद ना मिले, इसमें कोई शंका नहीं है।

 

जानिए कैसे अवैध है WIC

सूचना के अधिकार में मिली जानकारी के मुताबिक WIC को क्लब के रुप में मसूरी – देहरादून प्राधिकरण (एमडीडीए) से स्वीकृति नहीं मिली है। WIC क्लब 1112 राजपुर रोड़ से संचालित है। 1112 राजपुर रोड़ का स्वामित्व दो लोगों के पास है। एक राजेन्द्र नौटियाल के नाम है और दूसरा एसएम हॉस्पलिटी के नाम है। दोनों ही भवन आवासीय है।

आरटीआई में मिली जानकारी के मुताबिक एमडीडीए ने इस जगह को सुभाष चंद्र वर्मा के नाम पर आवासाई ईकाई के रुप में मंजूरी दी गई है। जिसे एसएम हॉस्पलिटी ने बाद में खरीद लिया था और वर्तमान समय में यह जमीन एसएम हॉस्पलिटी के नाम पर है। साथ ही राजेन्द्र नौटियाल ने भी अपने हिस्से की जमीन WIC क्लब को 2020 तक के लिए लीज पर दे रखी है। एमडीडीए के रिकॉर्ड में ये जमीन आज भी सील्ड़ है।

बता दें कि 2011 में एमडीडीए ने इन दोनों भवनों को अवैध करार देकर सील कर दिया था। इसके विरुद्ध सचिन उपाध्याय और नाजिया ने विभिन्न याचिकाएं दायर की, जोकि माननीय कमिश्नर कोर्ट व जिला न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई। न्यायालय ने सीलिंग और एमडीडीए की कार्यवाही को उचित ठहराया।

लेकिन 2012 फिर से कांग्रेस की वापसी हुई और इसी के साथ शुरू हुआ राजनैतिक लाभ और भाई – भतीजावाद संरक्षणवाद का खेल। किशोर उपाध्याय की आड़ में उनके भाई ने स्वत: ही बंद इमारत की सील तोड़कर अवैध रुप से क्लब का संचालन शुरू किया। साथ ही वहां पर एक आलीशान होटल की इमारत का निर्माण भी शुरू कर दिया लेकिन सत्ता के आगे नतमस्तक आधिकारियों ने ना सिर्फ अपनी आंखे मूंदें रखी बल्कि इस कल्ब की लाइफटाइम मेंबरशिप का लुत्फ भी उठाते रहें। इस बीच सचिन उपाध्याय ने एसएम हॉस्पलिटी भवन को कंपाउंडिंग के लिए आवेदन किया। एमडीडीए ने कंपाउंडिंग की दरखास्त को स्वीकार कर लिया किन्तु सचिन उपाध्याय से एक शपथ पत्र (एफीडेविड) लिया, जिसमें स्पष्ट रुप से उल्लेखित है कि यदि इस भवन का उपयोग आवासीय के अलावा किसी और उद्देश्य के लिए किया जाएगा तो इसका मानचित्र स्वत: ही निरस्त मान लिया जाए। शपथ पत्र स्वीकार करने के बाद एमडीडीए ने इमारत के अवैध हिस्सों के ध्वस्तीकरण के आदेश जारी किए किन्तु  एमडीडीए के किसी भी अधिकारी ने इतनी हिमाकत ना दिखाई कि वह इस इमारत की तरफ मुख भी करता।

इतना ही नहीं सचिन उपाध्याय ने एमडीडीए को दिए एफीडेविड को अंगूठा दिखाते हुए ना केवल आलीशान होटल बनाया बल्कि बेसमेंट से बार का संचालन भी कर रहे हैं।

बेसमेंट में चल रहा है बार, आबकारी महकमा है मेहरबान

हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार कमर्शिल भवन के बेसमेंट में पार्किंग की सुविधा होनी चाहिए लेकिन इस क्लब के बेसमेंट में बार चल रहा है। इतना ही नहीं यहां स्थित तीनों बार भी अवैध है, क्योंकि यहां सिर्फ एक बार को लाइसेंस मिला है, जिसके आधार पर दो और बार चलाए जा रहे हैं, वह भी निर्माणधीन बिल्डिंग के नीचे हैं। एक 15 फुट की तंग गली वाली रास्ते पर स्थित आवासीय भवन को बार लाइसेंस कैसे मिला, ये भी एक अंचभा है। जिस लाइसेंस के लिए लोगों की एड़ियां घिस जाती हैं और जो एक्साइज इंस्पेक्टर लाइसेंस देने के लिए आवेदनकर्ता को सारे नियम – कायदे पढ़ा लेते हैं, वो कैसे आंखें बंद करके, लालच में या सत्ता के दवाब में एक आवासीय भवन को बार का लाइसेंस दे देते हैं, ये समझ से परे है और एक्साइज डिपार्मेंट के अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता के बिना ये लाइसेंस मिलना असंभव है।

खाले पर कब्जा कर इनडोर स्विमिंग पुल का किया निर्माण

इतना ही नहीं हालत ये हैं कि सचिन उपाध्याय ने एमडीडीए और नगर निगम के आला – आधिकारियों के सामने सरेआम खाले पर कब्जा करके अत्याधुनिक इनडोर स्विमिंग पुल का निर्माण किया और उसके ऊपर एक पार्टी हॉल भी बना डाला। हैरत की बात ये हैं कि इन्हीं विभाग के तमाम अधिकारी इन तरण ताल का आनंद लेते हैं लेकिन कोई सवाल उठाने को तैयार नहीं है।

बड़ेबड़े आधिकारी इस क्लब में बिताते है समय

हैरानी की बात ये हैं कि इतने बड़े अवैध निर्माण और गैरकानूनी तरीके से चल रहे क्लब में तमाम आला आधिकारी अपनी समय व्यतीत करते नजर आते हैं, कोई रेस्तरां में डिनर करने आते हैं, तो कोई बार में जाम झलकाने लेकिन 2006 से अब तक किसी ने भी इतनी हिम्मत नहीं दिखाई कि वह इस क्लब के निर्माण पर सवाल उठा सकें या फिर कोई कार्यवाही करे। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी एमडीडीए ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की। जिस एमडीडीए ने पूरे शहर को उजाड़ दिया, उसे इतना बड़ा क्लब नजर नहीं आया।

 मेंबरशिप के नाम पर धोखाधड़ी और लूट

सचिन उपाध्याय ने ना सिर्फ नियम – कानूनों पर ताक पर रखकर अवैध तरीके से क्लब का संचालन किया बल्कि 13 सौ लोगों के साथ धोखधड़ी भी की है। WIC  क्लब में आज लगभग 1300 सदस्य है। जिन्होंने लाइफटाइम मेंबरशिप के नाम पर एक लाख से लेकर पांच लाख रुपए दिए हैं। जो सरासर धोखा है क्योंकि ये भवन आवासीय होने के कारण स्वत: ही अवैध है। साथ ही राजेन्द्र नौटियाल का भवन 2020 तक ही किराया पर मिला हुआ है। इसके अलावा क्लब का जो भाग एसएम हॉस्पलिटी के नाम पर है, वह आवासीय तो हैं ही, साथ ही इसके स्वामित्व पर भी विवाद चल रहा है। इस संदर्भ में सचिन और नाजिया पर धोखाधड़ी का मामला दिल्ली में दर्ज है और पुलिस तहकीकात जारी है। अब जिस क्लब की जमीन पर ही इतना विवाद हो, वह लाइफटाइम मेंबरशिप कैसे दे सकता है।

 यहां देखिए आरटीआई में मिली जानकारी की प्रमुख बातें

  1. एमडीडीए के मुताबिक WIC को एक क्लब के रुप में स्वीकृति नहीं मिली है।
  2. एमडीडीए के मुताबिक 111/2 राजपुर रोड़ को एक अवासाई ईकाई के लिए मंजूरी दी गई है।
  3. उत्तराखंड फायर सर्विस के मुताबिक उन्होंने इस क्लब को कोई एनओसी नहीं दी है।
  4. जिस आवासीय संपत्ति से क्लब संचालित है। उसका एक भाग सिर्फ 1 अप्रैल 2020 तक ही लीज पर मिला हुआ है। दूसरा भाग जो एसएम हॉस्पलिटी के नाम पर रजिस्ट्रट है, वो भी विवादित है। इस मामले पर सचिन उपाध्याय और नाजिया पर दिल्ली में धोखाधड़ी का मुकदमा भी चल रहा है।
  5. अनुबंध में स्पष्ट रुप से उल्लेखित है कि इस भवन का उपयोग सिर्फ आवासीय ईकाई के लिए ही किया जाएगा। अगर इससे इतर किसी और उद्देश्य के लिए इस भवन का इस्तेमाल किया जाता है तो इसका मानचित्र स्वत: ही निरस्त मान लिया जाएगा।

अब सवाल ये उठता है कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भी एमडीडीए ने अभी तक इस मामले में कोई कार्यवाही क्यों नहीं की… आखिर कौन है जो भाजपा सरकार में कांग्रेसी नेता के भाई को संरक्षण दे रहा है? आखिर ऐसा कौन सा कारण है कि जीरो टॉलेरेंस का गीत गुनगुनाने वाली भाजपा सरकार तमाम शिकायतों के बाद भी आंखें मूंदे हुए है ? या फिर एमडीडीए के आला – आधिकारियों तक क्या भाजपा के जीरो टॉलरेंस का मंत्र नहीं पहुंचा ?  कहीं ना कहीं सचिन उपाध्याय पर इतनी मेहरबानी सरकार की कथनी – करनी एवं मंशा पर सावलिया निशान लगा रही है।

( news source: dainik uttarakhand)

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