प्रशासन का उतावला पन या सच छिपाने की आदत, मुसीबत न बन जाए कहीं…? चमन विहार कोरोना पाजिटिव प्रकरण! गलती दिल्ली अपोलो की और सजा पूरी चमनविहार की गली को क्यों?

प्रशासन का उतावला पन या सच छिपाने की आदत, मुसीबत न बन जाए कहीं…?

चमन विहार कोरोना पाजिटिव प्रकरण!

गलती दिल्ली अपोलो की और सजा पूरी चमनविहार की गली को क्यों?

(विशेष पड़ताल)
देहरादून। एक ओर पूरे देश कोरोना वायरस वैश्विक महामारी से विगत लगभग डेढ़ माह से प्रत्यक्ष रूप से जूझ रहा है। और वैसे ही देहरादून की जनता भी लाकडाउन का अनुपालन करती चली आरही है परन्तु खेद तो तब होता है जब “हम करें यकीन आप पर, और तोहमत पे तोहमत मुझ पर…!” क्यों?

प्रशासन और शासन की इस घालमेल की कार्य प्रणाली क्या तीन उँगलियाँ उसी पर नहीं उठ रहीं हैं और TSR सरकार की पारदर्शिता की नीति को सवालों के घेरे में नहीं खडा़ कर रही है?

अगर यहाँ हम केवल राजधानी दून के ही एक चमन विहार की गली नम्बर 11 के मामले को गम्भीरता से देखें तो उसमें प्रथम दृष्टया जितना दोषी दिल्ली का वह अपोलो अस्पताल नजर आयेगा उससे कहीं अधिक अब खुद की करनी और कुछ का कुछ बताये जाने से तथाआनन-फानन में या फिर उतावलेपन में अथवा अगर इसे अपरिपक्वता भी कह दिया जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, के अनुसार जिस तरह की कार्य प्रणाली और भूमिका निभाई गयी है, वह भी गम्भीर कार्यवाही का विषय बन गयी है।

ज्ञात हो कि गत 3 मई को चमन विहार की गली -11 को एक बुजुर्ग कैंसर पीढि़त के दिल्ली के अपोलो अस्पताल में कोरोना पाजिटिव की रिपोर्ट आने के बाद खुद इन्सियेटिव न लेकर कोविड -19 के निर्देशों का पलीता लगा कर देहरादून आने दिया गया (जबकि सूत्रों व उन परिजनों के अनुसार, उसने स्वयं अनुरोध भी किया था उसे नियमानुसार वहीं भर्ती करा इलाज कराया जाये, नहीं कराया गया और भगा दिया गया)। यही नहीं यहाँ के जिला प्रशासन और पुलिस तथा स्वास्थ विभाग द्वारा पहले उस घर विशेष को क्वारंटीन न करके पचास साठ परिवारों वाली पूरी गली को ही सील करके कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया जाना क्या उचित था?

क्या प्राथमिकता और वरीयता के आधार पर उस तथाकथित कोरोना पाजिटिव/ कोरोना कैरियर सहित एम्स ऋषिकेश में पुत्र व दून मेडिकल में पत्नी, वेटी सहित घर की कामवाली को आईशोलेट कर दिया जाना उचित था और यदि उचित था उन सभी की टेस्ट रिपोर्ट ओने और उसका खुलासा करने में देरी के पीछे के कारण??

उल्लेखनीय है जो रिपोर्ट हमारी पड़ताल में सामने आई है उसे अधिकारिक रूप से अब तक की भाँति उजागर हीं किया गया है? यही नहीं दिल्ली में पाजिटिव और यहाँ एम्स में निगेटिव से यकीन किस पर किया जाये यह तथ्य भी कम नहीं है?

इस प्रकरण में अपनाई जा रही ढुलमुल पालिसी और कुछ का कुछ की कार्य प्रणाली को अगर हम केवल इसी तथ्य से देंखे कि जिस बुजुर्ग खान साहब को दिल्ली में कोरोना पाजिटिव बताया गया और उसकी दुनिया हिला कर रख दी गयी थी (शुक्र रहा कि इस रिपोर्ट से कहीं कोई अप्रिय घटना नहीं घटी). को आईशोलेट के उपरान्त एम्स ऋषीकेश के द्वारा निगेटिव रिपोर्ट को क्यों अभी तक किस प्रयोजन से उजागर न करके छिपाया जाना कहाँ तक उचित है? हमारी पड़ताल में निजी श्रोंतों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार निगेटिव आई रिपोर्ट प्रस्तुत है तथा शेस तीनों परिजनों (वेटा, वेटी व पत्नी की रिपोर्ट भी निगेटिव ही बताई जा रही है) यही नहीं उस काम वाली राखी जिसे घर के बाहर से ही परिजन द्वारा यह कहकर एहितयातन लौटा दिया गया को भी आईशोलेशन में रखा जाना क्या किसी भी सीमा तक उचित है?
क्या हिन्दुस्तान में भी चीन की तरह संदिग्धों को भी गोली मार देने या चुपचाप दफना दो की पालिसी अपनाया जाना किसी भी तरह उचित है?
क्या प्रशासन और शासन की वर्तमान कार्यप्रणाली यकीन करने योग्य मानी जानी चाहिए?

क्या इन सभी सवालों सहित अन्य अनछुये सवालों पर तथा उस पीडि़त परिवार व गली वासियों की मनोस्थिति और दशा पर शासन को विचार नहीं करना चाहिए! वहीं दूसरी इस उतावले पन और दोष किसी का तथा अकारण सजा किसी का, को लेकर चिंतित है।

क्या इस कैंसर पीडि़त अवकाश प्राप्त बुजुर्ग का इलाज प्रदेश सरकार कराकर उसके माथे पर जबरन डाली गयी सिलवटों से दूर करने व सांत्वना स्वरुप करायेगी?

क्या TSR को अपनी पारदर्शिता की नीति अथवा इसके नाम परिवर्तन पर ध्यान नहीं देना चाहिए जो पारदर्शिता कम छिपाने का काम ज्याद करती है!

क्या जल्दी ही इस पूरे प्रकरण से जनहित में पर्दा नहीं उठना चाहिए!

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