दून पुलिस की मित्रता का लाभ फ्राडिया बैंक मैनेजर को

दून पुलिस की अपराधियों से मित्रता का लाभ उठा रहा फ्राडिया बैंक मैनेजर (?)

जब लोन मंजूर ही नहीं हुआ तो साढे़ 4 लाख का कर्जा कैसे?

शराब माफिया व रिश्तेदार को भी लुटाया बैंक का डेढ़ करोड़?

बताया 50 हजार, निकाला डेढ़ लाख?

बडे़ भाई का फाईनेंस का धंधा भी खूब चला बैंक के सहारे?

फिर भी पुलिस की मेहरबानियाँ, संदेह के घेरे में!

एसटीएफ का मिला था खूव संरक्षण? तभी डाल रहे पर्दा!

डीआईजी साहब, अब तो सुन लो इस बेचारे की फरियाद!

काश! मेरा भी कोई सिफारिशी होता दरबार में!

देहरादून। उत्तराखंड में अपराधी और अपराध के ग्राफ बढ़ने की बजह कोई और नहीं बल्कि पुलिस का अप्रत्यक्ष संरक्षण और अन्दरखाने गुपचुप सिफारिशों के तले रह कर कार्य करने की प्रणाली ही है।

ऐसा ही ये अनूठा और संजीदा बैंक फ्राड का मामला विगत लगभग 65 दिनों से है जो केवल और केवल बडे़ दरबारों की सिफारिशों के तले दबने के कगार पर है या फिर बैंक मैनेजर के द्वारा ठगे जा चुके पीडितों को अब माननीय उच्च न्यायलय की शरण ही लेनी पडेगी वरना फ्राड के चलते न लिया गया लाँखों का लोन भुगतना पडे़गा अथवा पुलिस के दवाब में आकर समझौता करने को मजबूर होना पडे़गा! उक्त कथन उन अनेंकों पीडितों के हैं, जो पुलिस के चक्कर काट काट कर और उल्टे एक अभियुक्त की तरह डाँट खा खा कर, थक चुके हैं! और दून पुलिस है कि तमाम दस्तावेजी साक्षात प्रमाण होते हुये भी मानने को तैयार नहीं है।

सूत्रों की अगर यहाँ माने तो उक्त तथाकथित नामजद बैंक मैनेजर के परिजन ऊँची पहुँचवाले हैं जिस कारण बेचारी कोतवाली पुलिस बीच में फँस कर रह गयी है और अभियुक्तगणों के विरुद्ध कार्यवाही करने में शायद हिचक रही है।

ज्ञात हो कि राजपुर रोड के राज प्लाजा स्थित कारपोरेशन बैंक के मैनेजर व सहायक स्टाफ व मैनेजर के भाई के विरुद्ध एक एफ आई आर 23 दिन वाद शहर कोतवाली में दर्ज हुई थी जिसमें वादी द्वारा आरोप थे के उसके व उसके परिजनों के खातों से तत्कालीन एक स्थानीय सालावाला निवासी बैंक मैनेजर द्वारा लगभग 40 लाख से अधिक की धनराशि बिना उसके हस्ताक्षरों और चेकों के अनाधिकृत व फर्जी तरीकों से बैंक के नियमों के विपरीत वाउचरों, एनईएफटी आदि से हड़प ली गयी। यही नहीं बैंक स्टाफ द्वारा उसे निरंतर अंधेरे में रखा गया।

ज्ञात हो कि दून पुलिस चौकी धारा और एसटीएफ उक्त तथाकथित बैंक फ्राडिये मैनेजर को बचाने में लगी हुई थी और निरंतर अप्रत्क्ष रूप से वादी पर समझौता करने का अनुचित दवाब बना रही थी जिसकी उसने लिखित शिकायत भी की थी तब मजबूरन अनचाहे मन से एफ आई आर तो दर्ज कर ली वह भी साधारण और मामूली धाराओं में ताकि इसका लाभ चहेते को मिल जाये और वह न्यायलय से अरेस्ट स्टे जैसी कुछ कृपा ग्रहण कर ले।

मजेदार बात तो यह है कि उक्त प्रकरण का आभियुक्त खुलेआम एफ आई आर दर्ज होने के पन्द्रह दिनों बाद तक भी पुलिस विवेचक के ईर्दगिर्द घूमता रहा और फिर सीना चौडा करके बैंगलौर अपनी ड्यूटी पर चला गया। दूसरी ओर विवेचक व सीओ साहब फरियादी पीडित को ही डाँटने डपटने में रहे कि तीन साल से कहाँ थे।

पीडित शर्मा का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि उनके साथ हुई धोखाधडी और फ्राड के मामले में पुलिस कोई कार्यवाही अभियुक्तगणों के विरुद्ध करेगी भी, शायद उन्हें भी अब न्यायलय की ही शरण में न्याय पाने जाना ही पडेगा। क्योंकि पुलिस सिफारिशों के दवाब में रहकर ही शायद उन पर समझौते का दवाब बना रही है और उल्टे उन्हें ही अनर्गल बातों से परेशान कर रही है जबकि सारे सबूत, दस्तावेजी प्रमाणों सहित पुलिस के पास उपलब्ध हैं। ऐसे ही शर्मा के ही एक परिजन के एक खाते से भी  50-50 हजार डेढ़ लाख निकाल लिए इसी मैनेजर ने।

सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि उक्त फ्राड बैंक मैनेजर के कुछ और कारनामें भी उजागर हो रहे हैं जिनके अनुसार उसकी किसी शराब माफिया के साथ दोस्ती या अप्रत्यक्ष पार्टनर्शिप रही है तभी तो उक्त शराब माफिया की तीन तीन फर्मों और नौकर के नाम पर 50-50 लाख के तीन लोन अर्थात डेढ़ करोड का सरासर बैंक को नियम विरुद्ध चूना व धोखा दिया गया। इसके अतिरिक्त मोहल्ले के ही एक पडो़सी बेचारे इलैक्ट्रीशियन से मुद्रा लोन के नाम पर सारे दस्तावेज तो प्रार्थना पत्र के साथ ले लिये थे और कुछ दिनों बाद यह कह कर टरका दिया गया था कि उसका लोन मंजूर नहीं हुआ। बाद में पता चला कि उसके नाम से चुपचाप लोन दर्शा कर साढे़ 4 लाख रुपये बैंक से हड़प लिये गये। उक्त पीडित पडो़सी के द्वारा भी पुलिस को शिकायत दी जा चुकी है, परंतु उसकी भी एफआईआर अभी तक दर्ज नहीं हुई है।

बताया तो यह भी जा रहा है कि उक्त बैंक मैनेजर ने बैंकिंग नियमों का जमकर दोहन किया और दुरुपयोग करते हुये अपने बडे़ भाई के कमेटी/फाईनेंस के धंधे के लिए 10 लाख की लोन लिमिट भी बनाई यही नहीं अपने ऋषिकेश के किसी रिशते के भांजे के विरुद्ध लोन दिया है जबकि बैंक नियम यह है कि लोन लिमिट तो दूर अपनी ब्रांच में खाता तक नहीं खोला जा सकता है?

क्या ऐसे संगीन अपराधों पर पुलिस की उक्त कार्यप्रणाली सवालिया निशान नहीं लगाती और तेज तरार्र पुलिस अधिकारियों की कथनी और करनी के अन्तर को नहीं दर्शाती? क्या पुलिस इस बैंक से जुडे़ गम्भीर अपराधिक कृत्यों एवं वित्तीय हेराफेरी पर कुछ कारगर कदम उठायेगी या फिर यूँ ही ढोल पीट पीट कर अपराध और अपराधियों को अप्रत्यक्ष संरक्षण देती रहेगी?

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