हादसों को निमंत्रण देता प्रेमनगर बाजार : लापरवाही प्रशासन, कैंट बोर्ड की

हादसों को निमंत्रण देता प्रेमनगर बाजार : लापरवाही प्रशासन, कैंट बोर्ड की

क्या इन्हें केवल गिराना ही आता है, सवाँरना नहीं?

राजधानी को अतिक्रमण के नाम पर खंडहर बनाने में महारथी प्रशासन!

क्नाट प्लेस सहित चकराता रोड भी है खतरे से भरपूर!

…तो फिर गिराने से पहले स़वारने की व्यवस्था का इंतजाम क्यों नहीं?

2011 दिसम्बर में रिडेवलपमेंट प्लान के नाम पर घंटाघर से कृष्णा पैलेस तक तोडे गये थे भवन!

अब लापरवाही और उदासीनता क्यों?

देहरादून। राजधानी दून के प्रेमनगर कैण्ट क्षेत्र में लगभग 11 माह पूर्व मानीय उच्चन्यायलय के आदेश के अनुपालन में जहाँ शासन व प्रशासन की फुर्ती और दुरूस्ती तोड़ने और अतिक्रमण को ध्वस्त करने में दिखाई पडी़ वहीं इनकी लापरवाही और उदासीनता तथा माननीय उच्च नयायलय के आदेश की सरासर अवमानना साफ नजर आ रही है कि उसी आदेश में अतिक्रमण के साथ साथ सँवारे जाने के भी आदेश थे…!

शाबाशी योग्य काम किया था प्रशासन और वाहवाही भी खूव लूटी थी तथा नेताओं की नेतागीरी भी चमकवा कर उनकी गुडबुक में आने के लिए वार्ताओं के दौर के नाम पर व्यापारियों को मौका देकर इंसाफ की दुहाई भी लेली थी, परंतु क्या यह सब ऐसे ही इसी प्रकार होना था जैसा राजधानी दून का केन्द्र घंटाघर से चकराता रोड पर आज से लगभग एक दशक पूर्व 2011 दिसम्बर में एमडीडीए की रिडेवलपमेंट योजना के तहत हुआ था और चकराता रोड के भवनों को भारी लाव लश्कर के साथ तोड़ डाला गया और खंडहर में तबदील कर तत्कालीन सरकार व अधिकारियों ने पीठ थपथपा जनता से वाहवाही लूट ली थी। तत्पश्चात माननीय उच्चन्यायलय और कोर्ट कमिश्नर राजेन्द्र कोटियाल की सख्ती के चलते तब न ही किसी नेता और विधायक की चली और न ही मेयर व साँसद की यहाँ तक तत्कालीन सीएम ने भी अपने हाथ खडे़ कर दिये थे।

मजे की बात तो यहाँ भी यह रही थी कि आधा अधूरा अनुपालन तब भी किया गया था जो आज भी अवमानना की परिधी में स्टैण्ड करता है!

यही नहीं उसके पश्चात जब शासन और प्रशासन ने चाहा तो हाई कोर्ट का हौआ दिखाकर अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया और जब चाह वहानेबाजी कर रोक दिया। हालाँकि इसी कडी़ में पत्रकार मनमोहन लखेडा़ के द्वारा दायर की गयी जनहित याचिका में न्यायमूर्ति राजीव शर्मा का आदेश भी खूब चर्चा में रहा और दमखम दिखाई दिया ऐसे जैसे कि मानो अब राजधानी दून की सूरत बदल ही जायेगी, परंतु फिर वही टाँय टाँय फिस्स…!

दर असल अदालतें करें भी तो क्या पालन और लागू तो कार्यपालिका ने करना होता है जिसे विधायिका को भी मैनेज करके चलना पड़ता है। भाड़ में गयी जनता और व्यापारी या पुनर्वास की वाट जोहते बेचारे…!

आपको यहाँ स्मरण दिलां दूँ कि ये आधा अधूरा दिखावटी अतिक्रमण हटाओ अभियान शहर में राजपुर रोड, धर्मपुर, रायपुर रोड, सहारनपुर रोड और जीएम एस रोड सहित करनपुर व गाँधी रोड, पलटनबाजार, चकरातारोड आदि पर जिस तेजी से चला था उसी तरह एकाएक गुम भी होगया। राजनैतिक नेताओं और सत्ताधारी मंत्रियों और नेताओं ने भी खूब खेल खेले और भाषणबाजी की थी।

ज्ञात हो कि प्रेमनगर कैण्ट क्षेत्र में फिर दो भवन जो उस समय गिरने और हादसों के लिए छोड़ दिये गये थे, कल भरभराकर गिर गयेये लोंगो की किस्मत थी कि वे चपेट में नहीं आये वरना कैण्ट बोर्ड और प्रशासन ने तो कोई कोरकसर अपनी उदासीनता औऋ लापरवाही के चलते छोडी़ नहीं है। मरेगी तो जनता, भुगतेगी तो जनता इनका क्या ज्यादा से ज्यादा कोई चपेट में आयेगा तो मुआवजे की पहल कर जन धन से ही राहत राशि और जाँचों का एक और खेल खेलने का मौका!

उल्लेखनीय तो सबसे ज्यादा यहाँ यह है कि 2007 से 2011 तक एमडीडीए द्वारा बडे़ बडे़ सपनों और करोंडों लाखों के जनधन की वरवादी करके चकरातारोड रीडेवलपमेंट योजना बनाकर देश विदेश की सबसे उच्चस्तरीय की प्रशासनिक अकादमी से क्वालीफाईड आईएएस अफसरों और विशेषज्ञों की टीम द्वारा किये गये वे सभी योजनाएँ और कार्य धूल फाँते ही नजर आ रहे हैं और बहाना हाईकोर्ट का या फिर इधर – उधर के…!

जिस रिडेवलपमेंप प्लान के अन्तर्गत घंटाघर से चकराता रोड को तोडा़ गया था उसे तोड़ भी दिया गया और सड़क चौडी़करण भी हो गया, पर क्या इतना ही था उस योजना में तो फिर कहाँ गये वह सात सौ करोड़ की योजना जिससे इस क्षेत्र को स्वीटजरलैण्ड के सपने तब दिखा वसे वसाये लोंगो को उजाड़ दिया गया था? तब सडे़ दमखम से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के नाम पर खेल खेल तत्कालीन अधिकारियों और एमडीडीए ने इस डाल से ऊस डाल कुलाँचे भरी थी, परन्तु वह अब कहाँ गुम हो गयी और यदि नहीं ही करना था तो ढोल क्यों पीटे गये और क्यों की गयी जनधन की भारी वरवादी आदि आदि! कौन जिम्मेदार है इस डूबती बहुआयामी योजना का? क्या उसी प्रकार अब एक नये खेल के अन्तर्गत स्मार्ट सिटी योजना भी ऐसे ही क्रियान्वित की जायेगी?

ज्ञात हो कि प्रेमनगर जैसी लापरवाही क्नाट प्लेस पर हवा में लटकते व झूलते एल आई सी भवनों पृ रही तो वह दिन दूर नहीं जब कोई हादसा न हो! अगर शासन, प्रशासन और सरकार सँवार नहीं सकती तो उसे उजाड़ने से पहले सँवारने की भी व्यवस्था सुनिश्चित कर लेना चाहिए!

क्या उस बहुआयामी योजना को पुनर्रजीवित करने की दिशा में कोई सार्थक पहल खर उजडे़ चमन को फिर सँवारने की कोई कदम उठायेगी और न्यायलय में तेजी से पैरवी कर पटाक्षेप करेगी साथ ही हादसों को निमंत्रण देरहे भवनों को हटा जनता को चैन पहुँचायेगी सरकार!

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