निजी अस्पतालों द्वारा भटकाये जा रहे कोविड मरीज और परेशान हो रहे तीमारदार! वाह रे, वाह! जनता को जगाता, खुद सोता प्रशासन!

जिसने बनाया कोरोना वारियर्स, उसी से ज्यादती ?

निर्धारित दरों पर ही निजी अस्पतालों को करना होगा कोविड मरीजों का ईलाज

कोताही व उल्लघंन पर होगी सख्त कार्यवाही : डा. आशीष श्रीवास्तव

फोन पर कुशलक्षेम से संतुष्ट कोरोना से भयभीत आला अधिकारियों के कारण हकीकत विपरीत ?

हमारी खबर पर जागा प्रशासन! शुक्रिया!

अटेण्डेंट, सहायक व  नर्सों की लापरवाही से परेशान मरीज, चिंतित घरवाले

क्या यह समय लाकडाऊन और स्थिति को नियंत्रित करने की लिए उपुक्त नहीं है?

देहरादून। कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के चलते राजधानी दून के कोविड अस्पतालों में सीमित सुविधाँओं से पाजिटिव एवं सदिंग्ध मरीजों को खासी दिक्कतों का तो सामना करना ही पड़ रहा है, वहीं चिंतित और परेशान मरीजों के परिजनों को दून अस्पताल के ड्यूटी पर तैनात अटेण्डेंट, सहायकों और नर्सों की लापरवाही से खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ पर स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी शायद यह समझ नहीं पा रहे हैं या फिर चूक कर रहे हैं कि यह वही जनता है जिसने इन्हें कोरोना वारियर्स से नवाजा! और अब उन्हीं के साथ ज्यादती क्या उचित है?

कोविड के अनेकों मरीजों के परिजनों ने बताया कि अस्पताल का स्टाफ और ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों व कर्मचारियों का व्यवहार बजाए और अच्छा होने के बद्तर होता जा रहा है तथा वेसुध कोरोना मरीज मल-मूत्र के प्रसाधन की अवस्था में कई-कई घंटे तक ऐसे ही पडा़ रहता है और डाईपर तक नहीं बदले जाते हैं, जिस कारण वेडसोल की सम्भावना बन रही है। यहीं नहीं इन्हीं सब अव्यवस्थाओं से उपजे आशंकाओं के चलते मरीज के परिजनों द्वारा लाया गया भोजन आदि सामान भी तुरंत मरीज तक न पहुँचा कर दो-दो और तीन-तीन घंटो तक ऐसे ही पडा़ रहने दिया जाता और काफी न-नकुर की जाती है फिर वरिष्ठ अधिकारियों को ही हस्तक्षेप करना पड़ता है।

ज्ञात हो कि हमारे द्वारा जनहित में 2/3 सितम्बर को इस समबंध में समाचार प्रकाशित कर शासन प्रशासन को जगाने का प्रयास किया गया था कि “निजी अस्पतालों द्वारा भटकाये जा रहे कोविड मरीज और परेशान हो रहे तीमारदार!”  “वाह रे, वाह! जनता को जगाता, खुद सोता प्रशासन!” जिसके परिणाम स्वरूप दून के जिलाधिकारी ने सख्त रुख अपनाते हुये कोविड-19 की गाईड के अन्तर्गत जिले के समस्त सूचीबद्ध निजी अस्पतालों के लिए नियमों का उल्लंघन न करने की हिदायत देते हुये अपने 4 सिम्बर के आदेश में स्पष्ट किया है कि निजी अस्पताल जो भी कोविड की सूची में दर्ज हैं वे मरीजों को इधर-उधर न भटका कर निर्धारित शुल्क पर ही अपने यहाँ ईलाज करें। अन्यथा उनके विरुद्ध आपदा अधिनियम के अन्तर्गत कडी से कडी कार्यवाही की जायेगी। हम जनहित में जिला प्रशासन के उठाये गये इस कदम की सराहना करते हुये अपेक्षा भी करते हैं कि व्यवस्थाओं को और कैसे सुद्ह्रण किया जाये, इस पर भी कोई ठोस व्यवस्था जबावदेही के साथ सुनिश्चित की जायेगी!

वहीं अगर सूत्रों की माने तो चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ आला अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों के खुद के कोरोना से भयभीत होने का अनुचित लाभ आँकडों और झूटी कुशलक्षेम बताकर सब ठीक ठीक चल रहा है, से वेखबर हैं जबकि जमीनी हकीकत इसके विपरीत ही नजर आ रही है? एक और बात भी प्रकाश में आ रही है कि यदि निजी चिकित्सालय राष्ट्रीय आपदा और वैश्वविक महामारी के समय अवसरवादी और पैसे कमाने की होड़ में न लग कर टरकाऊ आदत न अपनायें और मरीज सेवा निर्धारित दरों पर ही करें तो शायद इस संक्रामक से जल्दी छुटकारा पाया जा सकता है, परंतु स्वार्थी तत्व बाज आयें और जिम्मेदार अधिकारी अचानक सुरक्षात्मक तरीकों के साथ निकल कर मौका मुआयना बिना गाये बजाए करें तो जनता व परेशान पीडितों को राहत पहुँच सकती है वरना वह दिन दूर नहीं लगता है कि फुटपाथों और सड़कों पर कोरोना मरीज लेटे नजर आयेंगे!

उल्लेखनीय यह भी है कि प्रदेश में बढ़ते कोरोना संक्रमण पर सरकार को चाहिए कि यदि इन बढते मरीजों की संख्या पर कोई सकारात्मक कदम एक बार फिर, एक माह के लिए लाक डाऊन जैसे नहीं उठाये तो स्थिती भयावह हो सकती है जिस पर फिर काबू पाना नामुमकिन सा हो जायेगा! वैसे यहाव गौर तलब यह भी है कि खुद तो संक्रमण से बचने के लिए सरकारी दफ्तर, सचिवालय, न्यायलय एवं कलक्ट्रेट आदि बंद करते चले जा रहे हैं और सर्व सुविधा सम्पन्न राजनेता, जज,व आधिकारी जनता से दूरी बना रहे हैं वहीं जनता के हित को दृष्टिगत बताते हुये सभी बंधनों को खोलते चले आ रहे हैं जिसका परिणाम है कि कोरोना संक्रमण फैलता जा रहा है। क्या इस तरह निर्दोष व असहाय जनता को उसके हाल पर कोरोना की आग में छोडा जाना उचित है? क्या यह समय लाकडाऊन और स्थिति को नियंत्रित करने की लिए उपुक्त नहीं है?

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