नहीं रेंगी जूँ सचिव ऊर्जा के कानों और TSR शासन पर !

वाह रे, वाह! ऊर्जा विभाग !

नहीं रेंगी जूँ सचिव ऊर्जा के कानों और TSR शासन पर!

ली-एन के खेल पर विराम क्यों नहीं?

DOPT की गाईड लाईन न मान, कर, कर रही मनमानी

नतीजा : किसी को ढक्कन, किसी को मक्खन

अगर यही पारदर्शिता, तो मुँह छिपाने और चुप्पी पर खडे़ होंगे ही सवाल!

ये पत्रकार हैं :  जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे ‘पोलखोल’ 

पिटकुल : नव नियुक्त निदेशक वित्त सुरेन्द्र बब्बर 24 तक कर सकते हैं ज्वाईन?

यूपीसीएल : फिर निदेशक परिचालन की कुर्सी पर नियम विरुद्ध लाला जी कैसे?

आईएएस एमडी डा. खैरवाल पुरानी अनुचित गतिविधियों से अनजान क्यों?

(एडीटर इन चीफ, सुनील गुप्ता)

देहरादून। एक ओर जहाँ प्रदेश के मुखिया TSR और उनके नये निजाम-ए-शासन के विगत कुछ दिनों से भ्रष्टाचार और घोटालेवाजों एवं मनमानी करने वालों पर तेवर सख्त और बदलते नजर आ रहें हैं वहीं ऊर्जा विभाग के आगे उनके कडे़ तेवर उतने ही बौने साबित नजर आ रहें है।

ऊर्जा विभाग के यूपीसीएल और पिटकुल में एमडी के पदों पर सख्त स्वभाव और कडी़ कार्यप्रणाली के पक्षधर माने जाने वाले आईएएस डाॅ.नीरज खैरवाल की एकाएक नियुक्ति से भ्रष्टाचार का पर्याय बने दोनों प्रबन्ध निदेशकों और घोटालेवाज तन्त्र को जहाँ करारा हाई वोल्टेज झटका झटका लगा था वहीं अभी भी यूपीसीएल के निदेशक परिचालन और निदेशक एच आर की कुर्सी पर नाजायज रूप से बैठे मैडम के लाडले चीफ इंजीनियर पूरे TSR सरकार की दोहरी नीति बता कर ढकोसला साबित कर रही है।

ज्ञात हो कि विगत 25 जुलाई को लाला जी के और बंगाली बाबू के 4 अगस्त को क्रमशः यूपीसीएल और पिटकुल के निदेशकों के पद पर नियुक्ति के उसी प्रकार पहले तीन और फिर अधिकतम दो वर्ष का एक्सटेंशन अर्थात नियुक्तिपत्र की शर्तों के मुताविक अधिकतम पाँच वर्ष भी पूरे हो चुके हैं परंतु इन महानहस्तियों का कुर्सी पर अभी भी बना रहना, कहीं न कहीं दाल में कुछ काले की झलक दिखा रहा है या फिर आर्टीकिल आफ एशोसियेशन के रूल 34 एफ का स्वार्थवश दुरुपयोग और देश के सबसे बडे़ विभाग डीओपीटी (Department of personal and training) के ली-एन सम्बन्धी निर्देशों की खुले आम धज्जियाँ उडा़ना ही मान लिया जाये जबकि देश के आधिकांश राज्यों में ली-एन फ्रीहैण्ड न होकर मात्र दो और विवशता वश तीन वर्ष तक ही वैध है। तीन वर्ष के तत्काल बाद मूल विभाग में मूल पद पर वापसी न करने पर सेवायें स्वतः ही समाप्त होजाती है परन्तु ये ऊर्जा विभाग है यहाँ सब ऐसे ही चलता है! अपने चहेतों को नियम विरुद्ध मक्खन और अनचाहों को कानून का पाठ पढा़ ढक्कन रख धूल चटाना भी मैडम को बखूवी आता है, जो दिखाई भी साक्षात पड़ ही रहा है!

ज्ञात हो कि जब वर्तमान एमडी और अपर सचिव ऊर्जा डा. खैरवाल से ली-एन और अवैध रूप से यूपीसीएल व पिटकुल में विराजमान चल रहे दोनों निदेशकों के बारे में जानकारी चाही गयी तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की!

सूत्रों की अगर माने तो अब बंगाली बाबू की पिटकुल से विदाई पर शासन की मोहर लग चुकी है क्योंकि गत15 जुलाई को हुये साक्षात्कार में नये निदेशक वित्त का चयन हो चुका है। इस पद पर दिल्ली ट्रांसको लि. से दो साल के ली-एन पर आ रहे सुरेन्द्र बब्बर सम्भवतः 24 अगस्त को ज्वाईनिंग देने वाले हैं, वैसे तो उनके नियुक्ति पत्र जारी होने में भी खासा नाटक और नौटंकी ऊर्जा अनुभाग करने से इस बार भी नहीं चूका, जैसा कि उसका जब तब प्रयास पहले भी कुछ गम्भीर मामलों में रहा है। सूत्रों की अगर यहाँ माने तो यह गल्ती नहीं वरन कोर्ट जाने का मौका देने का नाटक बताया जा रहा है..?

गौर थलब है कि यदि आर्टिकिल आफ एशोसियेशन में प्रदत्त व्यवस्था है तो फिर उसका प्रयोग दो मुँहे साँप की तरह क्यों? फिर निदेशक रहे आशीष कुमार, एम के जैन, एस एन वर्मा और वीसीके मिश्रा और अब अमिताभ मैत्रा के साथ ही भेदभाव के रूप में ढक्कन का प्रयोग और नियम की दुहाई क्यों?

हाँलाकि हम पहले भी इन तथ्यों और खेले जा रहे खेल के बारे में पर्दाफाश कर आगाह करा चुके हैं परन्तु इनके कानों पर अभी तक कोई जूँ नही रेंगी!

नये निदेशक बब्बर को संशोधित आदेश 30 जुलाई 2020 के अनुसार 17 अग अत तक ज्वाईनिंग देनी थी किन्तु उनके द्वारा शायद 24 तक ज्वाईनिंग का अनुरोध किया गया है।

मजे कि बात तो जो TSR पारदर्शिता की बात करती है उसी का ऊर्जा विभाग अनेकों बार गोपनीयता के नाम पर सेंशर जैसी तानाशाह व तालिवानी फरमान इन निगमों में जारी कर चुकी है ताकि इनके और इनके सिपहसालारों के द्वारा जनधन की वर्वादी और काले कारनामें जनता में उजागर न हों सकें? हमारे ब्यूरो चीफ द्वारा प्रत्येक समाचार के प्रकाशन से पूर्व ऊर्जा विभाग और इन निगमों के आला अधिकारियों का पक्ष जानने हेतु सम्पर्क का प्रयास किया जाता है, परन्तु शायद यहाँ पारदर्शिता नहीं बल्कि “घूघँट की आड़ में गुल” की कहावत की तरह मुँह छिपाना ही पसंद किया जाता है तभी बात करना नही चाहते और फोन काल नहीं उठाते या फिर टालमटोल करवा देते हैं।

उल्लेखनीय यहाँ यह है कि अब क्या यूजेवीएनएल में लीएन व सेवा नियमावली के समय पर वापसी न करने वाले महाशय जी को जीएम फाइनेंस की कुर्सी वर्तमान में बैठे अधिकारी से मिल पायेगी या फिर जन्मेंगा एक नया विवाद, किस्सा कुर्सी का…!

इसी प्रकार क्या यूपीसीएल में दो-दो चीफ इंजीनियर निदेशकों के पदों से विदा किये जायेंगे अथवा फिर वही कहावत “न खाता, न वही जो ये कर दें वहु सही” चरितार्थ होगी और ऐसे ही तथाकथित भ्रष्टाचार को बरकरार रखा जायेगा? आखिर ऐसा इनमें ही क्या है जो मोह भंग नहीं हो पा रहा?

क्या प्रदेश के मुखिया और मुख्य सचिव इस ओर ध्यान देकर स्वार्थी मनमानी पर अंकुश लगायेंगे और स्वच्छ शासन, भ्रष्टाचार मुक्त शासन पर एक बखर फिर मोहर लगायेंगे या फिर यूँ ही…!

पाठकों के संज्ञान और इनकी कारगुजारी के आंकलन हेतु जारी इन्हीं के पत्र…

संशोधन तब जब चाल न चली… क्या? तो फिर पिटकुल में नियुक्ति का पत्र होना था जारी, तो उत्तराखंड पावर कारपोरेशन क्यों लिखा?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अब पढिये एक्सटेंशन के आदेश …

चहेतों को मक्खन…

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