पटना : चेक क्लोनिंग कर खाते से उड़ाये 11 लाख

पटना  सिटी : चेक क्लोनिंग कर रिटायर बैंककर्मी के ज्वाइंट एकाउंट से 10 लाख 90 हजार रुपये की निकासी का मामला सामने आया है. इस संबंध में आलमगंज थाने की पुलिस ने गिरोह से जुड़ी एक महिला को गिरफ्तार किया है और अन्य की तलाश में छापेमारी कर रही है.
आलमगंज थानाध्यक्ष ओम प्रकाश ने बताया कि बैंक ऑफ इंडिया की नूरानीबाग, गुलजारबाग स्थित  शाखा से सेवानिवृत्त  प्रबंधक राजेंद्र नगर निवासी बिंदु विकास व उनकी  सेवानिवृत्त  पत्नी प्रो इंदु प्रभा के संयुक्त खाते से चार चेकों के माध्यम से  दस लाख 90 हजार की राशि की निकासी बैंक ऑफ इंडिया की नूरानीबाग, गुलजारबाग  शाखा से की गयी है.
रिटायर्ड दंपति को जब इसकी  जानकारी मिली, तो उन्होंने बैंक में संपर्क साधा. तब बैंक की ओर से  प्राथमिकी दर्ज करायी गयी. दर्ज प्राथमिकी के बाद वरीय पुलिस अधीक्षक मनु  महाराज के निर्देश पर गठित टीम ने तफ्तीश की, तो पाया कि सुल्तानगंज थाना क्षेत्र  के चौधरी टोला निवासी विमला देवी के खाते में रुपये ट्रांसफर किये  गये हैं. इसके बाद पुलिस टीम ने महिला को गिरफ्तार कर लिया.
पूछताछ में  महिला ने पुलिस को बताया कि सहयोगी छोटू व सुजीत ने उसे फर्जी चेक दिया था.  क्लोनिंग चेक पर रिटायर बैंककर्मी की पत्नी के हस्ताक्षर थे. पुलिस ने बताया कि चेक क्लोनिंग  के माध्यम से लगातार तीन दिनों तक 28 अगस्त को दो लाख 40 हजार, 29 अगस्त को तीन  लाख व 30 अगस्त को तीन लाख रुपये एकाउंट में ट्रांसफर किये गये. फिर 15 सितंबर को दो लाख 50 हजार रुपये उसी एकाउंट में ट्रांसफर किये गये. पुलिस ने बताया कि जानकारी के बाद रिटायर बैंककर्मी  ने चेक डिटेल निकाला. जो चेक बुक नंबर का इस्तेमाल राशि निकालने  में हुआ है, वह उनके पास है. थानाध्यक्ष ने बताया कि बैंक प्रबंधक की ओर 29 सितंबर को दिये आवेदन के आलोक में  565/18 में कांड दर्ज किया गया.
डेनमार्क की दवा कंपनी से ठग लिये 800 डॉलर
पटना : पटना में संचालित नकली उत्पादों के खिलाफ काम करने वाली एक कंपनी पर डेनमार्क की एक दवा कंपनी को बेवकूफ बना कर आठ सौ डॉलर ठगने का मामला सोमवार को प्रकाश में आया है. उक्त कंपनी के संचालक पर आरोप है कि उसने डेनमार्क की कंपनी को उनके नकली उत्पाद पटना में बिक्री होने की जानकारी दी और उसे बंद करने के लिए पुलिस के साथ छापेमारी कराने की जानकारी दी.
कंपनी ने छापेमारी कराने को कहा, तो फिर फर्जी एफआईआर के कागजात तैयार कर लिये गये और उसमें जब्ती सूची का भी पन्ना जोड़ कर डेनमार्क की कंपनी को भेज दिया. इसके साथ ही कार्रवाई कराने के नाम पर आठ सौ डॉलर  कंपनी से ले लिया. इसके बाद फिर से केस में चार्जशीट होने की जानकारी देते हुए उसमें होने वाले खर्च की जानकारी दी गयी और पैसे मांगे गये. इस पर कंपनी प्रशासन को शक हुआ और डेनमार्क कंपनी के वरीय अधिवक्ता दिल्ली से पटना पहुंचे और पूरे मामले की छानबीन की. एफआईआर अगमकुआं थाने की थी. लेकिन एफआईआर नंबर 387/18 पर दूसरा केस अगमकुआं थाने में दर्ज है.
क्या है पूरा मामला         
डेनमार्क की कंपनी के अधिवक्ता के अनुसार नकली उत्पादों के खिलाफ काम करने वाली पटना की एक कंपनी ने संपर्क किया और नकली दवा बिकने की जानकारी दी. कंपनी को नकली दवा का सैंपल भी भेज दिया.
इसके बाद दवा विक्रेता पर कार्रवाई के नाम पर पैसे मांगे गये. कंपनी को एक एफआईआर का कागज, जब्ती सूची व छापेमारी के दौरान के फोटोग्राफ भेजे गये. इसके बाद कंपनी ने आठ सौ डॉलर का भुगतान कर दिया. इधर उसने फिर से कुछ और पैसे की मांग की और बताया कि केस में चार्जशीट होने वाला है. इस पर उन लोगों को शक हुआ और छानबीन की तो फर्जी एफआईआर की जानकारी मिली.
चौंक गये एसएसपी  
एसएसपी भी एक ही एफआईअार नंबर की दो कॉपी देख कर चौंक गये. एक कॉपी न्यायालय के आवेदन पर दर्ज प्राथमिकी की थी, जो सही थी और उक्त एफआईआर एक जून को ही अगमकुआं थाने में दर्ज कर ली गयी थी. लेकिन दूसरी एफआईआर कॉपी हाथ से लिखी गयी थी और उसमें आईपीसी की धारा के साथ ही थानाध्यक्ष के हस्ताक्षर व मुहर भी थे.

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