यूपीसीएल बनने चला था छब्बे, दुबे भी रहेंगा या नही? 13 को ही चार्जशीट और 22 को बख्शीश क्यों?

वाह रे, वाह ऊर्जा विभाग! वाह-वाह यूपीसीएल वाह!!

बनने चले थे छब्बे, दुबे भी रहेंगे या नही?

मैडम को खुश करने और कार्यवाही के नाम पर गले पड़ने वाला ढोंग आया सामने

जिटको प्रकरण में 22 को छोड़ 13 को चार्जशीट दे फिर अपने ही बुने जाल में फँसा निगम!

क्या होगी इस प्रकरण में पटाक्षेप हेतु अब समयवद्ध जुडीशियल अथवा थर्ड पार्टी जाँच?

कालीदास बन जिस डाल पर बैठा, उसी को काट डाला

और अब खुद साबित होगा, कि गलती खुद की थी!

हमारा द्वारा पहले ही “तीसरी आँख का तहलका” उजागर कर चुका था एक लाख रोजाना की पेनाल्टी जनधन पर क्यों?

और भी अनेकों ऐसे मामले हैं इन निगमों में जिन्हे जानबूझ कर साँठगाँठ के चलते हारा जाता है?

एमडी परिवर्तन से ठीक पहले लाला जी व चापलूस एक चीफ और भी खिला चुके हैं इस गुले गुलजार में!

रुड़की के चर्चित इंजीनियर वाला 50 लाख गवन का मामला आज भी तीन चार वर्षों से खटाई में क्यों?

सजा के बदले ईनाम देने वालों पर भी होगी कार्यवाही?

देहरादून। यह कोई नयी बात नहीं है कि ऊर्जा निगम ने कोई कार्यवाही की और अधिकारियों को चार्जशीट दी। ये एक ऐसा खेल है जिसमें इन निगमों का चालाक प्रबंधतंत्र एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत पहले कान्ट्रेक्ट अवार्ड करने में प्रीफिक्सिंग, फिर काम में कमीशनखोरी और फिर वफादारी और ईमानदारी का छलावा करके कान्ट्रेक्टर कम्पनी का भुगतान अथवा एलडी (पेनाल्टी) जैसी कार्यवाही करके अनुपयोगी, अनावश्यक विवाद की स्थिती खडी़कर उसमें भी साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे की कहावत को चरितार्थ करते हुये हारने तक की कवायद में हर स्तर पर लूटखसोट और जनधन की वर्वादी करने पर ये वेदर्द भ्रष्टाचारी और घोटालेवाज तल्लीन रहते हैं।

ज्ञात हो कि नये आईएएस एमडी के आने और परिवर्तन से ठीक पहले लाला जी व चापलूस एक चीफ के द्वारा अपने चहेते ठेकेदार किसी त्यागी को और लाडले अभियंताओं को बिना आवश्यकता मलाई खिलाने और खाने के लिए एबीसी केवल के चकराता व ऋषिकेश क्षेत्र में 11 करोड़ व 8 करोड़ के सारे नियम कानन बलाए ताक रख कर इस गुले गुलजार में गुल खिलाए जा चुके हैं? इस काम के आवंटन में एक चाटुकार और चापलूस मौका परस्त चीफ की भूमिका भी काफी संदिग्ध बताई जा रही है जो फहले वीसीके के ईर्दगिर्द साये की तरह चिपका रहता था और आज उसी चतुराई से एचआर की कुर्सी पर है।

वहीं 2016-17 में रुड़की का चर्चित इंजीनियर राकेश कुमार वाला 50 लाख गवन का मामला आज भी तीन चार वर्षों से खटाई में पडा़ है, क्यों? यही नहीं उक्त प्रकरण में दोषी साबित हो चुके मामले में आज तक एफ आई आर न खराकर सजा के बदले उसे प्रोन्नति और मलाईदार पोस्टिंग से नवाजा भी जा चुका है क्योंकि वह भी लाला जी का ही खासमखास है! क्या ऐसे ईनाम देने वालों पर भी होगी कोई कार्यवाही? इसी का परिणाम है कि आये दिन यूपीसीएल में गवन और घोटाले होते रहते हैं।

इनके असली खेल का मजा तो तब आता है जब मीडिया में मामले उजागर होतें हैं और चाहे अनचाहे ऊर्जा विभाग और सरकार को कार्यवाही करने का और काली हो चुकी पूरी चादर को उजला साबित कर दिखाना होता है! बस फिर क्या सचिव ऊर्जा और TSR सरकार या इनसे पूर्ववर्ती सरकारों का ढोल बजना शुरू हो जाता है और छल कपट से परिपूर्ण कार्यवाही का खेल ठीक ऐसे ही एकबार फिर शुरू हो जाता है।

ज्ञात हो कि यूपीसीएल के इस जिटको प्रकरण मे भी ऐसा ही खेल खेला गया है जिसमें टाइमपास और जनधन की वर्वादी पर पर्दा डालने हेतु आनन फानन में वाहवाही लूटने के लिए ऊर्जा विभाग एक बार फिर छब्बे बनने चला था दूबे ही रह गया आगे चल कर पता नहीं दूबे भी रहेगा या नहीं किन्तु यह अवश्य होगा कि महामूर्ख प्रख्यात कालीदास साबित होगा और जिस डाल पर बैठा है उसी को काटने वाला ही नजर आयेगा।

सूत्रों की और अब तक की तहकीकात पर हम आयें तो इस प्रकरण में कुल लगभग 35 अधिकारियों को चार्जशीट होनी थी किन्तु यहाँ भी बन्दरों ने खेत खाये और राहगीरों को लटकाया जाये की कहावत को चरितार्थ कर दिखाया गया है। सचिव ऊर्जा और जाते जाते कील ठोंक कर गये गये एमडी महोदय ने ऐसी जाँच कमेटी बनाई जिसे यही नहीं पता कि सेवा निवृत्त हों या सेवा में अगर दोषी हैं तो चार्शीट उन्हें भी दी जानी चाहिए, किन्तु यहाँ तो ये ऊर्जा निगम हैं जबतक रायता फैला न दें इन्हें चैन कहाँ?

2003 से 04 और 05 के इस प्रकरण में 18-20 बिजलीघरों के रेन्यूवेशन और कुछ नये बिजलीघर बनाने के काम को लगभग 28 करोड़ में अवार्ड किया गया था। मैसर्स जिटको और मैसर्स जोप पावर इन्फ्रा. के साथ यूपीसीएल के हुये अनुबंध स. 1304 व 1305 आदि के तहत काम कराया गया था। उक्त काम में लगभग दो करोड़ का कुछ काम कान्ट्रेक्ट के अलावा ठेकेदार कम्पनी से अधिकारियों द्वारा बिना विधिवत मंजूरी के करा तो लिया गया और चाँदी भी काट ली गयी किन्तु जब भुगतान की बारी आयी तो बगलें झाँकने की नौवत से प्रभावित और पीडि़त जिटको से कई वर्षों तक मिन्नतें और परेशान किये जाने का दौर चला न कि मामले को दूरदृष्टि से निपटाने का!

बताया जा रहा है नाम के जौहरी एमडी रहे का जौहर भी मामले की संजीदगी को परख न पाया और मामले में खुद विभागीय आर्वीट्रेटर गठित न करके लटकाये रखा गया परिणाम स्वरूप पीडि़त ठेकेदार कम्पनी ने विधि विधान के अनुसार उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त जस्टिस गुप्ता की पीठ वाला आर्वीट्रेशन गठित करा डाला।

उल्लेखनीय तो यह हैं कि आर्वीट्रेटर में मिलीभगत के चलते की गई पैरवी कमजोर कडी़ ही साबित हुई और यूपीसीएल पर 2 करोड़ की रकम लगभग 12-13 साल न दिये जाने के 105 करोड़ के दावे को 70 करोड़ और फिर बाद में सुनवाई के उपरांत 15 करोड असल तथा 15 करोड़ ब्याज मान लिया साथ ही जब तक ब्याज सहित रकम अदा नहीं की जाती तब तक की दशा में एक लाख रूपये प्रतिदिन का जुर्माना अदा करने के आदेश भी पारित किये गये।

सूत्रों की अगर यहाँ यह भी माने तो उक्त आर्वीट्रेटर के फैसले के विरूद्ध यूपीसीएल ने कामर्शियल कोर्ट (एडीजे) में अपील तो दायर कर दी है, परंतु शायद इन्हें यह एहसास नहीं कि विद्वान सेवानिवृत्त जस्टिस गुप्ता के आदेश पर इन्हें रिलीफ शायद ही मिल सकेगा? क्योंकि एक तरफ आर्वीट्रेटर के समक्ष अपने व अपने अधिकारियों को निर्दोष साबित करते हुये पाक साफ साबित करने का कथन किया गया और वहीं अब दूसरी ओर फैसला आने के बाद मीडिया में उछले इस प्रकरण पर अब जिन 13 लोंगो को जुलाई 2020 में चार्जशीट करने की संस्तुती की गयी है उनमें दो माह बाद सेवानिवृत्त होने वाले मौ. इकबाल (ततकालीन डीजीएम, वित्त) तथा आर एस वुर्फाल (तत्कालीन अधीक्षण अभियंता) को भी लपेटे में ले लिया गया है साथ ही तत्कालीन अधीक्षण अभियंता नरेश कुमार, अधिशासी अभियंता मोहित कुमार, डीएस खाती, आर सी मयाल, राहुल जैन, वी एस पँवार, अमित आनंद, युद्धवीर सिंह एवं सहायक अभियंता कंवल सिंह सहित एस के सैनी और भूपेन्द्र सिंह को अजब गजब के आरोपों के साथ आरोप पत्र थमा पीठ थपथपाई जा रही है। यही नहीं जिन 23 रिटायर्ड लोंगो को बख्शा गया हैं उनमें अधिकांश तो पूर्तया संलिप्त और दोषी भी दबी जुवान से बताये जा रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि उन्हीं को अभी भी मलाई और रेवडि़याँ यूपीसीएल बाद में उपभोक्ता फोरम्स में देकर मौज करा रहा है। जबकि नियमानुसार पाकसाफ छवि वालों को ही रिइम्प्लाई किया जाना चाहिए तथा सेवा निवृत्त के बाद भी आर्थिक क्षति और निगम के साथ गद्दारी जैसे राजद्रोह के मामलों में इन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए था। वहीं अब जिन 13 लोंगो को चार्जशीटिड किया गया है उनमें कुछ की तो प्रमोशनों को लेकर डीपीसी भी है, से वे वंचित रह जायें की भी एकक्षचाल यहाँ चली गयी बताई जा रही है। हाँलाकि इस प्रकरण में विशेषज्ञों की राय के अनुसार जिन 13 लोंगों को दिखावटी चार्जशीट दी गयीं हैं वे भी वैसी ही साबित होंगी जैसी पिटकुल में फैमस आई एम पी 80 एमवीए पावर ट्रांसफार्मर झाझरा प्रकरण में हुआ था। वहाँ भी 12-13 लोंगो को चार्जशीट दी गयी और बाद में टाँयटाँय फिस्स कर दिया गया सारा मामला। ठीक वैसे ही या कहें यहाँ तो आर्वीट्रेशन में इनके कालीदासों केवे कथन कि यूपीसीएल दोषी नहीं है कान्ट्रेक्टर ही दोषी है, तो अब कैसे ये सब दोषी? क्या परस्पर विरोधाभास का लाभ दोनों प क्षों को नहीं मिलेगा? एक ओर अपील में जिटको को ये 13 चार्जशीट्स यूपीसीएल को दोषी साबित करने में अमृत और दूसरी ओर इन बेचारे राहगीरों की भूमिका में रहे चार्जशीटिड कुछ निर्दोष अधिकारियों को आर्वीट्रेटर में किए गये कथन? असली मजा तो उसी कहावत के अनुसार बन्दर खा कर चले भी गये!

ज्ञात हो कि क्या राज सम्पत्ति और जनधन की वर्वादी की वसूली असली गुनहगारों की सम्पत्ति से होगी या फिर इस प्रकरण में भी कुछ दिनों बाद टाँयटाय फिस्स…!

क्या इस प्रकरण में पटाक्षेप हेतु अब समयवद्धता के साथ दूध का दूध और पानी का पानी के लिए कोई जुडीशियल अथवा थर्ड पार्टी जाँच अकरायेगी TSR सरकार?

देखना यहाँ अब गौर तलब होगा कि TSR सरकार और प्रदेश के ऊर्जा मंत्री खुद TSR इस तरह के ऊर्जा विभाग के खेलों पर किस तरह का कदम उठाते हैं या फिर अभी तक की ऊर्जा सचिवालय की दयनीय बनाई गयी भ्रष्टचार से लवालव स्थिति में कुछ कारगर बदलाव लाकर एक्शन के मूड में आते हैं! या फिर यूँ ही…!

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