जब मैडम की तीन उँगलियां हुई अपनों की तरफ तो करा दिया आनन-फानन में एक्शन की जगह सिलेक्शन !

घूँघट में है ये घोटाला भी !

वाह रे, वाह! ऊर्जा विभाग वाह! यूपीसीएल बिजली खरीद फरोख्त प्रकरण!

जब मैडम की तीन उँगलियां हुई अपनों की तरफ तो करा दिया आनन-फानन में एक्शन की जगह सिलेक्शन !

छोटो पर सितम, बड़ों पर करम अपनो पर रहम, क्यों?

– पूर्व एमडी सहित दोनों निदेशकों पर एक्शन रुका क्यूँ? क्या जांच कमेटी सक्षम थी?

– लाला जी व पर कार्यवाही, क्या महज इसलिए नहीं कि लाला जी हैं अवैध कमाई की मशीन!

– क्या एमडी करा पाएंगे इन पर भी willful नेगलिजेंसी, लापरवाही एवं पद के दुरुपयोग की FIR?

– बिना नोड्यूज और नियम के विस्तार व दो साल का कॉन्ट्रैक्ट किसके कहने पर किसने दिया?

– क्या ये केवल काजू और बादाम खाने के लिए ही हैं?

– ऐसा क्या है कि बाकी आईएएस टिकते नहीं और ये हिलते नहीं?

– जब बड़े साहब लोंगों ने कहा तभी तो हुआ खेल!

(ब्यूरो चीफ, सुनील गुप्ता की खास पड़ताल)

देहरादून। भृष्टाचार का पर्याय बन चुका उत्तराखंड का ऊर्जा विभाग आखिर इस प्रदेश के मुखिया की नजरों से अछूता कैसे? यह बात अब लोंगों के गले में फँसने सी लगी है! आखिर क्या है बजह? क्या यही सचिव ऊर्जा वास्तव में कड़क व तेज तर्रार हैं या फिर कोई और मजबूरी?

ज्ञात हो कि विगत दिनों सचिव ऊर्जा के कड़े तेवर और एक्शन का समाचार फिर एक कैटेगिरी विशेष के तथाकथित बड़े चाटुकार पत्रकार व मीडिया में सुर्खी बन कर जनता को फिर भ्रमित करता हुआ देखा गया है जैसे कि वास्तव में सचिव ऊर्जा ने कोई बहुत बड़ा प्रदेश हित या जनहित का करिश्मा कर दिखाया होगा या फिर भृष्टाचार पर कोई बड़ा एक्शन किया होगा? पर ऐसा कुछ था नही, इसके पिछे भी फिर वही एक नौटंकी सामने आ रही है।

यह केवल उसी कॉरर्पोरेट मीडिया व प्रिंट मीडिया का कमाल है जो सच्चाई से कोसों दूर रहकर अपना उल्लू सीधा कर सरकारी पत्रकार की भूमिका निभा बड़े बड़े विज्ञापन बटोर, कमाई करने में जुटा रहता है।
यही वह मीडिया है जो ऊर्जा विभाग की वास्तविकता को छिपा, दिखावटी कड़े तेवरों को महज चाटुकारिता के लिए चार चांद लगा कर भोले भाले पाठको व दर्शकों को परोसता रहता है।

मजे की बात तो यहां यह भी रही कि मैडम भी फूले नही समा रही हैं कि जैसे उनकी चाल कामयाब हो गयी हो और खुद अपनों की फँसने की नौबत भी फिलहाल तो टल ही गयी ताकि दीवाली तो हो जाये और वाहवाही तो मिल ही गयी!
पूर्व एमडी सहित दोनों लाला निदेशकों पर रहम के पीछे कहीं कमाई का साधन भी बरकरार रखना तो नहीं?
हमेशा की भाँति यहाँ फिर एक लाडले मुख्य अभियन्ता पर कर्म कर बचा लिया?
वाह! एक तीर से चार-चार निशाने और सीएम की गुडबुक में आने का एक और मौका! गजब हैं आप! और आपकी कार्य प्रणाली! पर यह देवभूमि की जनता है, सब जानती है!

दरअसल जिसे एक्शन बताया जा रहा है वह एक्शन नहीं बल्कि सिलेक्शन है? तभी तो अभी से सवालिया (?) निशान लगने लगे हैं।

ज्ञात हो कि गत दिवस शोर मचा कि सचिव ऊर्जा के आदेश पर यूपीसीएल में केईआईपीएल कम्पनी की ओर 60 करोड की बकाया वसूली में देरी पर बड़ी कार्रवाई हुई, छह निलंबित, 12 को चार्जशीट, तीन को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

Press note of action

इस कार्यवाही में एक जनरल मैनेजर, दो अधीक्षण अभियंता, एक एक्सईएन, दो लेखा संवर्ग के अफसरों समेत कुल छह अफसर निलंबित हुए। 12 लोगों को चार्जशीट भी जारी की गई है। दो मुख्य अभियंता और एक महाप्रबंधक को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।
महाप्रबंधक वित्त मोहम्मद इकबाल (इनको 31 अक्टूबर को रिटायर होना है), अधीक्षण अभियंता बृजमोहन सिंह, सुनील वैद्य, एक्सईएन अर्जुन प्रताप, वरिष्ठ लेखाधिकारी राकेश और अवनीश निलंबित किए गए।

मुख्य अभियंता एके सिंह, गणेश सिंह, महाप्रबंधक अनिल मित्तल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। मुख्य अभियंता एसके टम्टा, रजनीश अग्रवाल, एक्सईएन प्रवेश कुमार, लेखाधिकारी एसके मेहता, एई मनीष पांडे, लेखाकार होशियार सिंह और निलंबित लोगों को चार्जशीट जारी की गई।

“सूत्र बता रहे हैं कि उक्त पूरे प्रकरण की जो जांच कमेटी भी उस स्तर की नहीं बनाई गई थी जिसमें आला कमान की दखलन्दाजी न होती तो FIR भी दर्ज हो चुकी होती और बड़े-बड़े चेहरे जेल में होते! यहाँ यह तथ्य भी महत्व पूर्ण लग रहा है कि जांच कमेटी (PGCIL) पीजीसीआईएल अथवा थर्ड पार्टी जैसी बड़े स्तर की होंनी चाहिए थी तभी निदेशक और एमडी स्तर की निष्पक्ष व वेखौफ़ जांच हो सकती थी कहीं ऐसा तो नही इस घोटाले को भी घूँघट में रख छोड़ा गया हो?”

सूत्रों की अगर यह भी माने की इस बिजली बिक्री प्रकरण में भी वही हुआ जैसा अभी तक होता रहा है और वे सभी दिग्गज और महारथी भी छोड़ दिये गए जो इसमें सीधे तौर पर प्रत्यक्ष रूप से दोषी व विलेन रहे हैं और उन्हीं के निर्देशों पर ये पूरी लीला एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत खाने कमाने के लिए रची गयी थी। फिर चाहे उसमें बिजली बिक्री के कॉन्ट्रैक्ट को बिना नियम और जाँच पड़ताल के एक्सटेंशन देने की बात रही हो या फिर एक साल की अवधि बाले कॉन्ट्रैक्ट की अवधि दो साल बढ़ाकर देने का मामला हो!

ज्ञात हो कि निगम में यदि पूर्व एमडी, निदेशक परिचालन, व निदेशक वित्त यदि चाहते और दयानतदारी से ड्यूटी को अंजाम देते तो उक्त फर्म को उसी समय आउटस्टैंडिंग पर आउटस्टैंडिंग की बढ़ती बकाया रकम से रोका जा सकता था जिसे बिजली खरीद पर निगम तीन दिनों के अंदर ही इन कृपालुओं के कारण भुगतान करता चला आ रहा था। एक हाथ दे, एक हाथ ले कि तर्ज पर वित्त विभाग ने ड्यूज क्यों नही समायोजित किये? भुगतान काटते भी कैसे जब साहब मेहरबान तो…?

ज्ञात हो कि ऊर्जा निगम की बिजली बिक्री के भुगतान पर दरियादिली की बजह कोई और नही “माले मुफ्त, दिले बेरहम” ये प्रबन्ध मण्डल ही था जिसमें पूर्व एमडी यूपीसीएल, दमदार व वेखौफ़ निदेशक परिचालन, निदेशक वित्त के साथ साथ एक एक्सटर्नल सदस्य के रूप में पिटकुल का अधिकारी भी बताया जा रहा है।

काश! ये कुर्सी और अवैध कमाई के नशे में गुलछर्रे न उड़ाते तो क्या बकाया होते हुए अगली बार का काम दिया जा सकता था या फिर डिफाल्टर को एक साल की जगह दो साल की अवधि बढ़ाकर काम दिया जा सकता था?
ज्ञात हो कि ये किसी छोटे अधिकारी या अधिकारियों के वश की बात तो नही हो सकती थी! इसमें जो मुख्य अभियंता व महा प्रबंधक परोक्ष रूप से सम्मिलित थे उन्हें केवल कारण बताओ नोटिस का दिया जाना भी खासी चर्चा में है।

उल्लेखनीय तो यह भी है कि क्या इन वर्षों की सालाना एनुअल रिपोर्ट में इन तथ्यों को बोर्ड और ऑडिटर जनरल से चालाकी से छिपाया गया या फिर किसी और कमाल का कमाल रहा!
क्या ये निदेशक मण्डल केवल काजू बादाम उड़ाने के लिए ही है?
क्या इस प्रकार के गम्भीर राधिक दुष्कृत्य व नेगलिजेंसी पर विभागीय कार्यवाही के साथ-साथ हकीकत में FIR होगी या फिर पहले के मामलों में FIR के आदेशों की तरह इस प्रकरण में भी कुछ दिनों बाद धूल में मिल जाएगा यह आदेश!…

Secy urja order
2nd page of order

पहले भी एक के बाद एक बड़े-बड़े लाखों और करोड़ों के घोटाले व कारनामे इस ऊर्जा विभाग के निगमों और उरेडा में उजागर तो हुए, परन्तु कहाँ कार्यवाही विहीन होकर, दफन होने के कराह रहे हैं?

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