यह कैसा “लीएन” जिसके नाम पर उडाई जा रही मौज, निजाम बदला है तो सूरत भी बदलेगी ही!

वाह रे, वाह,ऊर्जा विभाग वाह!

यह कैसा “लीएन” जिसके नाम पर उडाई जा रही मौज,

निजाम बदला है तो सूरत भी बदलेगी ही!

देश के सबसे बडे़ विभाग डीओपीटी की गाईड लाईन की भी धज्जियाँ

जायज और नाजायज रूप से इसी प्रदेश में कुर्सी कब्जाये बैठे रहते हैं यहाँ निदेशक और अधिकारी!

नियम एक, तो पैमाने अलग-अलग होंगे, क्यों?

नियम एक, पर प्रयोग और दुरुपयोग भी यहीं एक साथ किया जाता है, वह भी चेहरा देखकर यहाँ!

उरेडा में छिपे हैं बडे बडे गुल, जो हो जायेंगे शनै-शनै दफन!

देहरादून। प्रदेश ऊर्जा विभाग के तीनों निगमों और उरेडा में जब तब कहें या यूँ कहें कि एक के बाद एक निरंतर ऐसे मामले देखने को मिलते ही रहते है जो कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में या तो भ्रष्टाचारों और घोटालों से परिपूर्ण होतें हैं या फिर उनमें नियमों और कानूनों की जम कर, बेधड़क होकर धज्जियाँ उडा़यी जाती हैं अथवा फिर मनमर्जी से उसका प्रयोग तो कम दुरुपयोग अधिक देखने को मिलता है।

यही नहीं एक ही नियम कानून को इस आँख से कुछ और दूसरी आँख से कुछ, अपना पराया को देखकर और स्वार्थ सिद्धी के कारण चहेते के अनुसार तोलमोल के भाव के साथ ही यहाँ अभी तक अपनाया जाता रहा है।

मजे की बात तो यह है कि जिस प्रदेश के मुखिया जहाँ भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस और भय मुक्त सुशासन की दुहाई अक्सर देते नजर आते हों, वहीं उन्हीं के सीधे तौर पर आधीन अर्थात इस ऊर्जा विभाग का मंत्री कोई और नहीं बल्कि सीधे स्वयं मुख्यमंत्री TSR हैं, उसमें अगर ऐसा खुलेआम हो रहा है तो फिर यही कहना वाजिव होगा कि सरकार की कथनी और करनी में अन्तर साफ है, तथा इनकी चाल, चरित्र और चेहरा भिन्न भिन्न हैं!

ज्ञात हो कि हाल ही में ऊर्जा विभाग के पिटकुल और यूपीसीएल में रिक्त पडे़ पदों पर नियुक्ति हेतु जो प्रक्रिया और कार्यप्रणाली अपनाई गयी उसी का प्रारम्भिक तौर पर कई तरह के विवादों से नाता जुड़ चुका है! हम आज यहाँ फिर उस पर चर्चा न करके एक ऐसे खेले जा रहे खेल को उजागर करना उचित समझ रहें है जिससे बडी़ आसानी से अनुमान लगाया जा सकता कि नियमों और कानूनों के अनुपालन हेतु जिन आला अफसरों को ये जिम्मेदारियाँ दी गयीं है उन्हीं की निष्क्रियता और उदासीनता व लापरवाही अथवा जान कर अज्ञानता का ढोंग करके किस तरह मनचाहे रूप से “न खाता न बही, जो ये कर दें वही सही” मतलब साफ कि बिना किसी जबावदेही और जिम्मेदारी के साथ देश दुनिया में माने जाने वाली भारतीय प्रशासनिक सेवा को उत्तीर्ण कर चुके यदि कोई आईएएस अधिकारी ऐसा करता है, तो यह प्रश्न चिन्ह उसकी ट्रेनिंग या फिर योग्यता में कहीं न कहीं कमी को अवश्य झलकाता है,  जिससे फिर तथाकथित रूप से सम्बोधित ब्यूरोक्रेट्स की गुडविल और प्रतिष्ठा पर भी धब्बा सा ही लगता नजर आने लगता है।

ऐसे आला अफसर कहीं हो न हो, किन्तु हमारे इस नवयौवन की अवस्था में पदार्पण कर चुके इस देवभूमि उत्तराखंड के नजरिये से देंखे तो अवश्य उनकी काम करने की कार्यप्रणाली से देखे और पहचाने जा सकते हैं कि इस प्रदेश को अब तक किस स्तर पर पहुँच जाना चाहिए था! बल्कि यहाँ शायद उस उदाहरण का भी उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि यहाँ के ही एक आईएएस अधिकारी जो प्रमुख सचिव जैसे पद पर आसीन रह चुके थे, ऐसे तत्कालीन सरकार के लाडले आला अधिकारी पर माननीय उच्च न्यायलय ने एक ऐसी टिप्पणी की थी जो शर्मनाक तो थी ही साथ ही उसमें सरकार को दिए गये वह आदेश बडे़ ही नसीहत और सबक वाले थे कि उनसे यदि यह प्रदेश और शासन सबक लेलेता और उसको ध्यान में रखकर अपनी कार्प्रणाली में सुधार करता तो बात ही कुछ और होती। उस आदेश में यहाँ तक आदेश निर्देश भी दिए थे कि इस अधिकारी की ट्रेनिंग दोबारा कराई जाये…!

यूँ तो पिटकुल में निदेशक वित्त के पद पर विगत कुछ दिनों पूर्व हुये साक्षात्कार में चयनित अभ्यर्थी को लेकर तथा उसमें भी ऊर्जा विभाग की अपनाई गयी र्काय प्रणाली और कारगुजारी भी कुछ कम नहीं है और तथाकथित रूप से विवादित ही नजर आ रही है तथा अपने में कुछ रहस्यों को भी समेटे हुये है। जिस पर नये निजाम अर्थात मुख्य सचिव से ध्यान आपेक्षित है! क्योंकि इस खेल में जो खेल  कहानी दर्शा रहा है वह छोटी मोटी त्रुटि नहीं बल्कि जानबूझ कर पहले की तरह एक बार फिर किसी को अनुचित लाभ पहुँचाने के लिए खेला गया खेल  प्रतीत होता है? इस खेल के अन्तर्गत एक छोटी सी कारगुजारी को अगर लेंले तो एक ही नियुक्ति के दो-दो पत्र एक साक्षात्कार के बाद 17 जुलाई को 15 दि के समय अवधि ज्वाईनिंग के लिए और फिर उसी पत्र को दोबारा जानबूझ कर किसी साजिश के अन्तर्गत ही की गयी, को सुधारते हुये यह बताया गया जाना कि उहमें पिटकुल की जगह यूपीसीएल लिख गया अतः अब फिर ये संशोधित पत्र 30 जुलाई को पुनः 15 दिन का ज्वाईनिंग का समय देने के साथ साथ 17 अगस्त तक के लिए वैध करार दिया गया है। इस गम्भीर और असम्भव सी दिखने वाली गलती के पीछे दर असल सच्चाई कुछ और ही है! यहाँ स्मरण करा दूँ कि आईएमपी पावर ट्रांसफार्मर प्रकरण में भी एक पत्र बिना विभागीय मुखिया अर्थात इन्हीं सचिव महोदया की आँख में धूल झोंकते हुये काकस के इशारों और साँठगाँठ के चलते चुपचाप से जारी हुआ था जिसको भी हमारे सा. तीसरी आँख का तहलका द्वारा प्रमुखता से उजागर किया गया था किन्तु यहाँ तो गलत और गलती पर सजा नहीं, ईनाम का ही परम्परा ही दिखाई पड़ती है। देख लिया तो हँसी, वरना माल अपना तो है ही, की अक्सर झलक यहाँ मिलती रहती है! उसकी बजह साफ है कि मैडम की आँखों के ऐसे ही लोग तारे बने हुये हैं और बँटाधार प्रदेश का हो रहा तथा बदनाम बेचारे TSR हो रहे हैं! दर असल ये मामला त्रुटि का नहीं बल्कि गेंटिंग और सैटिंग को अमली जामा पहनाने के ही दृष्टि से ही नजर आ रहा है?

सूत्रों की अगर यहाँ माने तो इस ऊर्जा विभाग के तीनों निगमों में ‘ली-एन’ के नाम पर जो खेल खेला जा रहा है और उसकी आड़ में निर्धारित अवधि बीत जाने के उपरान्त भी अनुचित और अवैध तरीके से जीएम और चीफ इंजीनियर जैसे अधिकारी वापस अपने अपने मूल विभाग और मूल पद पर न ही वापस जाना चाहते हैं और न ही अवैध व अनुचित रूप से डाईरेक्टर (निदेशक) अथवा एमडी जैसे शानदार और जानदार कुर्सी को नियमानुसार छोड़ना ही चाहते हैं, यहीं नहीं इनकी कुर्सी से चिपके रहने और ऐन केन प्रकरेण, तिकड़म और शासन में बैठे आला अधिकारियों व सीएम आवास और भाजपा, आरएसएस जैसी ताकतवर शक्तियों में घुसपैठ के बलबूते ही लालसा और ललक वश अपना मोह नहीं भंग कर पा रहें हैं!

यही नहीं इनके इस दुष्कृत्यों से शासन के ऊर्जा विभाग में इन्हीं सब चीजों के देखने व अवैध, अनुचित कृत्यों को रोकने के लिए बैठाये गये अधिकारी व अनुभाग अधिकारी से लेकर अनुसचिव, अपर सचिव व सचिव स्तर के अधिकारी भी सहभागिता करते ही नजर आते हैं! बस, फिर शुरू हो जाता हैं यहीं से सारी तिकड़मबाजियों और विस्तार (एक्सटेंसन) के खेल और देखी अनदेखी किये जाने की कहानी अथवा रिक्ति प्रक्रिया शुरू ही तब जब पोस्ट खाली होने का अन्तिम दिन भी करीब आ गया हो या फिर अन्तिम दिन उस मूल नियुक्ति पत्र के अनुसार अवधि पूरी हो जाने पर जानबूझ कर किसी खेल को खेलने के लिए पिच तैयार की जाती है और बिसात विछाई जाती है! फिर उसी हिसाब से खेला जाता है।

उल्लेखनीय है कि ठीक यही क्रम वर्तमान में पिटकुल, यूपीसीएल व यूजेवीएनएल के ‘ली-एन’ LEIN पर चल रहे जीएम और चीफ इंजीनियर लेवल के अधिकारियों काविगत 24 जुलाई और 4 अगस्त को समापकत हो चुका परन्तु इनके द्वारा न ही पनी कोई वापसी अपने निगम में या फिर अपने मूल पद पर अभी तक कराई गयी क्योंकि इनमें से एक मुख्य अभियंता स्तर का यूपीसीएल काअधिकारी एक निदेशक की कुर्सी किसी भी हालत में न छोड़ कर अवैध व गैर कानूनी रूप से बिना अधिकार पदारूढ़ है और चिपका हुआ है जैसी फेवीकोल लगा हो! हाँला़कि उक्त महाशय से गत दिवस ही फिर एमडी पिटकुल का कार्य छीन कर तेज तर्रार कड़क छवि बाले आईएएस नीरज खैरवाल को ही दे दिया गया है। उक्त लाला जी के निदेशक पद पर नियुक्ति के तीन साल और उसके पश्चात एक साल का एक्सटेंशन तत्पश्चात Till further का आदेश भी किसी ठोस व उचित कारण के संजीवनी के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि पाँच वर्ष की अवधि भी पूरी हो ही गयी और शासन फिर भी आँखें मू़ँदे बैठा है।

ऐसा ही एक अन्य मामला पिटकुल के निदेशक वित्त की कुर्सी पर चिपके महाशय जी का है जिनका ली-एन भी 4 अगस्त को ही समाप्त हो चुका है तथा नियुक्ति के अधिकतम पाँच वर्ष भी पूरे हो चुके हैं, फिर भी वित्त जैसे मामलों का अवैध रूप से कार्य कर दबंगयी से किस प्रकार कर रहे हैं। क्या TSR सरकार व उनके शासन और इन सब पर निगरानी या लापरवाही सवालिया निशान नहीं लगाती? क्या इसमें दाल में कुछ काले की सम्भावना को नकारा जाना चाहिए! यह भी उल्लेखनीय है कि इन निगमों के अधिकारी लीएन पर जाते हैं तो free hand अर्थात कब तक के लिये उन्हें लीएन दिया जा रहा है कोई तिथी जानबूझ कर अनुचित लाभ और वहानेवाजी के लिए नहीं डाली जाती, जो कि किसी भी सूरत में लीएन के आदेश पारित होते समय उचित नहीं है।

विशेषज्ञों की बात अगर यहाँ माने तो जिस आर्टिकिल आफ एशोसियेशन की रूल 34 का प्रयोग शासन यहाँ करते देखा गया है वह भी किसी भी प्रकार से यथोचित नहीं है क्योंकि हर सट्टे विस्मिल्ला नहीं हुआ करता और हर परिस्थिति अथवा दुर्भावना से ग्रसित या अनुचित लाभ लेने की गरज इस आपात व्यवस्था का प्रयोग बार बार नहीं किया जाना चाहिए! इससे कानून का ह्रास ही नहीं बल्कि नियमों का अतिक्रमण माना जाना चाहिए!

शासन की इसी कृपा का परिणाम है कि सेवा नियमावली का भी दोहन धड़ल्ले से किया जा रहा है और ‘लीएन’ समाप्त होने की दशा में मूल पद पर वापसी न किये जाने से इन महान लोंगो की सर्विस भी ब्रेक नहीं की जा रही है जिसको लेकर भी तरह तरह की चर्चाँए व्याप्त हैं उनमें बैक डेट पर आर्डर करना और कराया जाना भी सम्भावित दिखाई दे रहा है।


सूत्रों के अनुसार भारत सरकार के DOPT डिपार्टमेंट आफ पर्सनल एण्ड ट्रेनिंग की लीएन की गाईड लाईन और निरदेश जो पूरे देश मे और करीब करीब अधिकांश प्रदेशों में मात्र दो+एक = तीन साल से ज्यादा नहीं हो सकती, किन्तु यहाँ उत्तराखंड में इसको लेकर भी तरह तरह की कयासबाजियाँ हैं।

खैर जो भी हो मूल नियुक्ति पत्र का भी तो मान सम्मान होना ही चाहिए! वहीं यदि यूपीसीएल के निवर्तमान एमडी वीसीके मिश्रा को केवल 60 वर्ष की अधिवर्षता के कारण नियुक्तिपत्र की शर्तें प्रभावी और उन्हें हटा दिया गया, किन्तु यहाँ अभी अन्यों के साथ भी नियमों और कानूनों का समानता के साथ और पारदर्शिता के साथ पालन होना चाहिए! सरकार का एमडी के पद से कुहासा हटाना और यह कदम व निर्णय बिल्कुल ठीक रहा, एमडी के पद पर दौड़ रहे और अनेकों समीकरणों के बल पर टकटकी लगाये कि कब छींका टूटे और कब किस्मत का पिटारा खुले, पर तब TSR व नये निजाम (सीएस) के शुरुआती सप्ताह में ही विराम लग गया और सराहनीय कदम के अन्तर्गत एक आईएएस वह भी कड़क को यूपीसीएल और पिटकुल के साथ साथ अपर सचिव ऊर्जा के पद पर नियुक्ति की सर्वत्र प्रशंसा की जा रही है। बताते चलें कि एमडी के इन दोनों फदों पर कई किले (चहेते और धनबल वाले तथा चापलूस) तो धाराशायी हुये ही साथ ही अब सम्भावना भी दिखने लगी है कि शायद अब भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों को भी उनकी सही जगह पहुँचाने में कोई गुरेज नहीं होगा!

यहाँ इस बात का उल्लेख करना भी उचित होगा कि अब यूपीसीएल में नियमानुसार खाली हो गये (मनमानी से अभी भी नहीं) के पद पर किसी नये साफ सुथरे को ही मौका मिल सकता है जैसा कि पिटकुल में निदेशक वित्त के पद पर भी लीएन समाप्ति एवं पाँच वर्ष की अवधि बिता चुके साहब भी कुछ मूड में नहीं लग रहे है! वेचारे ऐसा करे भी क्यों न अभी तक साहब कहलाने वाले इन साहबों को अब सर सर कहना पड़ सकता है।

ज्ञात हो कि अगर स्वच्छ और साफ छवि एवं अन्य योग्य को अवसर देने की परम्परा पर TSR सरकार ने ध्यान दिया तो ढोंगियों और छुपे चाटुकार, भेडि़यों और शासन में विद्यमान आस्तीन के साँपों को ठिकाने भी लगाना होगा! तभी पिटकुल, यूपीसीएल और यू जे वी एन एल सहित उरेडा में हुये भ्रष्टाचारों और करोडों करोंडो के घोटालों का ईमानदारी से पटाक्षेप हो सकेगा जिन्हें तथाकथित काॅकस और सरंक्षण ने कहीं न कहीं या तो ठिकाने लगा रखा है या फिर दफन करने की पूरी तैयारी चल रही है, पर सकारात्मक और परिणाम सामने आ सकेंगे!

ज्ञात हो कि उरेडा में भी सैकडों करोड़ की रूफ टाप ग्रिड कनेक्टिड सोलर पावर प्लांट योजना में खिलाये गये गुल और हुये बँदरबाँट तथा उस पर ऐन केन प्रकरेण कभी न्यायलय तो कभी जाँच पर जाँच का खेल खेल कर जिस तरह से अभी भी गुड लाईजनर और चापलूस कर्ताधर्ता द्वारा धन व बल पर जिस तरह का चूहा बिल्ली का खेल खेला गया है उसका भी पर्दाफाश करने और बडे़ बडे़ चेहरों को न बचाकर उजागर कर संदेशात्मक कार्यवाही की भी आवश्यकता प्रदेश हित और केन्द्र के हित में है।

मजे की बात तो यह भी है कि उरेडा में भी सेवा नियमावली की धज्जियाँ जिस तरह आला अधिकारियों के संरक्षण में उडाई जा चुकी है और अपात्र चौधरी बन बैठे  हैं, का मामला भी कुछ कम नहीं है, किन्तु इन पर ध्यान कोई दे तब…!

देखना गौर तलव होगा कि इन प्रकरणों पर सरकार और उसके शासन का क्या रुख होता है? वैसे “पोलखोल पोर्टल और “तीसरी आँख का तहलका” सहित तमाम मीडिया समय समय पर इसे जन हित और जनधन की वर्वादी को रोकने के लिए प्रमुखता से उठाता रहा है! हम polkhol.in में एवं अपने निर्भीक व निष्पक्ष समाचार पत्र “तीसरी आँख का तहलका” को सदैव जनपटल पर रखने में अपना फर्ज समझता है और वेवाकी से रखने में गुरेज भी नहीं करता !

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