पीजीआई के डॉक्टरों और फार्मा कम्पनियों के गठजोड़ का बड़ा खुलासा होने के बाद हडकंप मचा हुआ है. खबर दिखाए जाने के बाद पीजीआई के सबसे बड़े अधिकारी यानि निदेशक पर गाज गिरी है. स्वास्थ्य मंत्री की इस कार्रवाई से न सिर्फ भ्रष्टाचारी डॉक्टरों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं, बल्कि फार्मा कम्पनियों को भी डर सता रहा है कि अगर जांच हो गई तो उन पर निश्चित तौर पर कार्रवाई होगी.
पीजीआई के निदेशक के बाद 6 ओर डॉक्टरों का काला चिट्ठा खोला है. इन 6 डॉक्टरों को फार्मा कम्पनियों ने ऐश कराई है. हालांकि ऐसा नहीं है कि जिनके सबूत सामने आ रहे हैं, वही भ्रष्टाचारी हैं, ऐसे बहुत-से डॉक्टर्स हैं, जो इस धंधे में लिप्त हैं. पीजीआई प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल है, यहां मरीज सस्ते ईलाज के लिए आते हैं, लेकिन कुछ भ्रष्टाचारियों की वजह से उन्हें यहां सिर्फ दर्द ही मिलता है. हालांकि संस्थान के अन्दर अच्छे डॉक्टर्स भी हैं, जिनकी वजह से आज भी पीजीआई पर लोगों का भऱोसा कायम है.
दरअसल पीजीआई के डाक्टर फार्मा कम्पनियों के साथ अपने रिश्तों को सामान्य मानते हैं और उनकी दवाईयां लिखना और उनसे लाभ अर्जित करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. जब हमने संस्थान के निदेशक डा. नित्यानंद के बारे में खबर दिखाई तो स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने इसे काफी गंभीर अपराध मानते हुए तुरंत सस्पेंड करने के आदेश जारी कर दिए.
एक्शन से बौखलाए डा. नित्यानंद ने अपने बचाव में दलील दी कि ऐसे तो कई ओर डॉक्टर भी करते हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं की. सस्पेंड होने के बाद जनाब सीएम से मिलने पहुंच गए और सीएम को ऐसे कई डॉक्टरों की लिस्ट सौंप दी, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.
डा. नित्यानंद ने जो लिस्ट सौंपी है, उसमें डेंटल के वरिष्ट चिकित्सक डा.वीरेन्द्र सिंह और आर्थो के वरिष्ट चिकित्सक आरसी सिवाच के नाम शामिल हैं, जो दिसम्बर 2009 में सिंथेज मेडीकल कम्पनी के खर्चे पर स्विटजरलैंड गए थे. इसके अलावा पीजीआई के ही डॉ. राजसिंह, डॉ. राकेश गर्ग, डॉ. अमनप्रीत और डॉ. अमित बतरा के नाम शामिल हैं, जिनकी कोर्स फीस का 50 से लेकर 100 फीसदी तक इसी फार्मा कम्पनी ने 2012-2013 में वहन किया था. लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. हालांकि डॉक्टर वीरेन्द्र की जरूर विजिलैंस जांच की गई, लेकिन उसमें भी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई. जैसी मेरे ऊपर की गई है.
न्यूज18 के हाथ जो सबूत लगे हैं, उनमें मुताबिक डेंटल कालेज के प्रिंसिपल ने फार्मा कम्पनी सिंथेज को सितम्बर 2013 में एक पत्र लिखा गया कि हमारे संस्थान के उन डाक्टरों की सूची मुहैया कराई जाए, जिनको आपके स्पांसर किया है. कम्पनी की तरफ से 18 अक्टूबर 2013 को जो जवाब आया, वह काफी चौंकाने वाला था. इस पत्र में साफ तौर पर लिखा गया था कि हेल्थ यूनिवर्सिटी के कई डॉक्टरों को उन्होंने फायदा पहुंचाया है.
डेंटल विभाग के डा. वीरेन्द्र को दिसम्बर 2009 में कम्पनी के खर्च पर स्विटजरलैंड के डावोस में AOCMF कोर्स कराया, जिस पर 2,63,095 रूपए खर्च हुए. इसी तरह आर्थो विभाग के डा. आरसी सिवाच पर भी दिसम्बर 2009 में स्विटजरलैंड के डावोस में AO ट्रामा मास्टर कोर्स कराया, जिस पर 2,93,935 रूपए खर्च हुए. इसके अलावा 2012 में डा. राजसिंह, डा. राकेश गर्ग और डा. अमनप्रीत को भी स्पांसर किया, इसी तरह 2013 में डा. राजसिंह और डा. अमित बतरा की कम्पनी के खर्च पर कोर्स फीस स्पांसर की.
पीजीआई के डॉक्टरों के फार्मा कम्पनियों के साथ इस गठजोड को यहां के डॉक्टर सामान्य मानते थेय अब इस गठजोड़ पर एक्शन होना शुरू हुआ तो बौखलाहट भी शुरू हो गई और डॉक्टर एक-दूसरे की पोल-पट्टी खोलने में जुट गए. पीजीआई की हकीकत ये है कि यहां के कुछ डॉक्टर तो ऐसे हैं, जो फार्मा कम्पनियों से दिन भर घिरे रहते हैं. अब कार्रवाई होने लगी तो फार्मा एजेंटों से मिलने में भी परहेज बरतने लगे.
एक हकीकत ये भी है कि यहां के तकरीबन 250 डॉक्टर हर साल ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए छुट्टियों पर जाते हैं, अगर सभी की यात्रा की जांच कराई जाए तो कई डॉक्टर्स इस मामले में ओर फंस सकते हैं.