…और अब खुद ही प्रहार कर रहे TSR भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेन्स की नीति पर : गजब गुपचुप नियुक्ति उसकी, जिस पर आरोप घोटालों ही घोटालों के…!
(सुनील गुप्ता, ब्यूरो चीफ की खास पड़ताल)
देहरादून। TSR सरकार का एक ऐसा गजब का गुपचुप फैसला प्रकाश में आया है जिसने उन्हीं की अपनी तीन उँगलियाँ अपनी ही ओर खुद उठा ली हैं। TSR की भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति पर उन्हीं के द्वारा खुद ही धत्ता बताया जाना उनके दोहरे चेहरे को तो उजागर कर ही रहा है साथ ही ऐसा भी इंगित करता नजर आ रहा है कि ‘कोविड-19’ में वारे न्यारे करने में इससे बढि़या और एक्सपर्ट महारथी कहाँ मिलेगा? और इसी चर्चा को वैसे भी नकाराजाना पारदर्शिता के खिलाफ होगा। चर्चाओं में गूँज रही बजहों में से वह कौन सी बजह सही होगी। गोया कि सचिव स्वास्थय को लायक न समझा जाना या उनके ऊपर सलाहकार के रूप में तथाकथित चौकीदार का बिठाया जाना अथवा फिर प्रमुख सचिव ऊर्जा व गृह के पद पर दबंगीय से रहे महारथी एक्सपर्ट के रूप में की गयी यह नियुक्ति है! खैर ये तो बक्त ही बतायेगा कि वह कौन सी इतनी अरजेंसी थी कि लॉकडाउन के दौरान एक रिटायर्ड आईएएस अफसर का दूसरी बार ‘पुनर्वास’ कर दिया गया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार ने उन्हें पहले जो तोहफा दिया था, वह उन्हें रास नहीं आया लिहाजा अब उन्हें राज्य में टेलीमेडिसिन सेवा के विस्तार के लिये सलाहकार नियुक्त किया गया है। यह काम इतने गुपचुप तरीके से किया गया कि इसका शासनादेश जिसे पब्लिक डौमेन में न लाकर छिपाने की कोशिश तो बहुत की गयी परन्तु राज “पोलखोल” की “तीसरी आँख…” से बच न सका। मजे की बात तो यह भी है कि शासन के अधिकारी भी इस नियुक्ति पर कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं। जिस आईएएस को अब तक स्वास्थ्य विभाग का अपर मुख्य सचिव या शीघ्र ही राज्य का मुख्य सचिव भी बनना तय ही था, अगर स्तीफा न हुआ होता। हालाँकि उस समय का स्तीफा भी अनेकों राज आज भी अपने में समेटे हुये हैं, जो न ही अभी दफन हुये हैं और न ही चादर सफेद हुई है। ज्ञात हो कि जिसने राजकीय सेवक के रूप में राज्य की सेवा करना मुनासिब नहीं समझा तो फिर वह अवैतनिक सलाकार के तौर पर वो यहां क्यों ‘सेवा’ करना चाहता है? स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से भी पंवार के ‘तार’ जुड़े बताए जा रहे हैं। कुछ आईएएस भी उनकी इस नियुक्ति से खफा नजर आ रहे हैं। जबकी इस समय वास्तविकता तो यह है कि स्वास्थ्य विभाग को ‘सलाहकार’ से ज्यादा इस समय ‘चिकित्सकों’ की दरकार है। स्मरण हो कि अगस्त 2017 में उत्तराखण्ड के पॉवरफुल इस नौकरशाह ने TSR शासन में एक जिम्मेदार आईएएस के नाते सेवानिवृत्ति की आयु पूरी होने से 9 साल पहले ही वीआरएस लेकर सबको चौंका दिया था। कहा गया कि उन्होंने स्वेच्छा से यह निर्णय लिया है। बाद में छनकर आई जानकारी से पता चला कि वीआरएस दिलवाया गया था क्योंकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में जांच चल रही थी। इतना ही नहीं सीवीसी (सेंट्रल विजिलेंस कमीशन) या पीएमओ के रडार पर थे, ये महारथी और ऊर्जा विभाग के एक से बढ़कर एक हुये घोटालों में घेरे में आ चुके थे। उनके वीआरएस लेने के बाद से अभी तक भी जांच की फाइलों का मूवमेंट रुका पड़ा है। ऐसा लगता है कि रिटायर्ड आईएएस अफसरों के पुनर्वास का ‘ठेका’ उत्तराखण्ड सरकार ने ही ले रखा है तभी तो उस वक्त वीआरएस के तुरंत बाद ही उन्हें नया पद क्रियेट कर सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी एण्ड गुड गवर्नेंस (सीपीपीजीजी) का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बना दिया गया था। हालांकि रिटायरमेंट के बाद स्थितियां बदलीं तो इन महाशय की अन्य आईएएस अफसरों के साथ ट्यूनिंग नहीं बैठी जिससे सीपीपीजीजी की बैठकें लगातार तीन बार टलती चली गईं। और तो और उनको ऑफिस, वाहन आदि सुख-सुविधाओं से भी लम्बे समय तक ‘पैदल’ भी रखा गया। ऐसे में इन महाशय ने सचिवालय का रुख ही करना बंद कर दिया था और थोडे़ अरसे बाद सुनने में आया कि महाशय सीपीपीजीजी से वह ‘क्विट’ कर चुके हैं। उसके बाद लगभग दो साल तक ये महाशय उत्तराखण्ड में परिदृश्य से गायब रहे और कभी विदेश और कभी कुछ की चर्चाओं को समेटे रहे। एकाएक TSR सरकार के द्वारा बडे़ ही गुपचुप लॉकडाउन में इन महाशय को फिर से महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का सौंपा जाना शासन के अन्दर और बाहर भूचाल ले आया है। हमारी पड़ताल में इन महाशय को टेलीमेडिसिन सेवा के विस्तार के लिये सलाहकार नियुक्त किया गया है वह भी अवैतनिक रहते हुये इस जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। क्या उन्हें नए सिरे से एक मुकुट पहनाये जाने और सुख सुविधाएं देकर और उनकी चर्चित काबलियत का लाभ लिया जाना ही है। हाल ही में स्वास्थ्य महानिदेशालय भवन में उनका स्मार्ट ऑफिस भी तैयार किया गया है, जिसकी साज-सज्जा में ही लाखों रुपये खर्च किये जा चुके हैं। सवाल यहाँ यह भी है कि बात-बात पर प्रेस रिलीज जारी करने वाली सरकार ने डा. उमाकान्त पंवार की पुनर्नियुक्ति की सूचना सार्वजनिक क्यों नहीं की गयी? उक्त छिपाये-दबाये गये पत्र को प्रकाशित किया जाना लाजमी सा हो गया है ताकि जनता खुद TSR की कार्यप्रणाली का अध्यन करे! साथ ही इस सरकार की छिपाऊ पारदर्शिता और भ्रष्टाचाऋ पर जीरो टालरेंस की नीति का मतलब समझे! क्या ऐसे समय में यह नियुक्ति किसी कोरोना वम से कम है!