अबोध बच्चों को कोरोना की आग में झोंकने की तैयारी में TSR सरकार ने नहीं स्थगित की परीक्षाएँ – Polkhol

अबोध बच्चों को कोरोना की आग में झोंकने की तैयारी में TSR सरकार ने नहीं स्थगित की परीक्षाएँ

अबोध बच्चों को कोरोना की आग में झोंकने की तैयारी में TSR सरकार ने नहीं स्थगित की अभी तक परीक्षाएँ!

10वीं और 12वीं की बची हुई परीक्षा के पीछे इनकी ना समझी या अपरिपक्वता?

22 से 25 जून तक कराई जाने वाली परीक्षाएँ अगर इतनी ही आवश्यक!

तो फिर खुद क्यों दुबके, वीडियो कान्फ्रेसिंग से चला रहे सरकार?

तो फिर बडे़ और समझदार छात्रों के कालिज और विश्वविद्यालय अगस्त तक बंद क्यों?

तो फिर, सरकारी, कार्यालय और सचिवालय में आवाजाही बंद क्यों?

तो फिर, विधान सभा सत्र और जनता मिलन कार्यक्रम स्थगित क्यों?

क्या महज परीक्षा ही एकमात्र ऐसे में विकल्प?

(सुनील गुप्ता, एडीटर इन चीफ द्वारा बच्चों के हित में दोबारा प्रकाशित )

(यही समाचार हमने 13 जून को जनहित में सरकार को जगाने के उद्देश्य से प्रकाशित किया था किन्तु इस सरकार के काँन पर कोई जूँ रेगी हो दिखाई नही दिया, इस लिए अबोध बच्चों और अभिभावकों के हित में पुनः संशोधित कर एक और प्रयास किया जा रहा है कि शायद TSR सरकार जाग जाये!)

देहरादून 15 जून, 2020। देश और प्रदेश में इस समय सिमटोमेटिक और एसिमटोमेटिक कोरोना फैल रहा है तथा कोरोना संक्रमण से मृत्यु की संख्या में भी निरंतर इजाफा हो रहा है। वहीं शासन द्वारा उत्तराखंड बोर्ड की बची हुई 10वीं एवं 12वीं के शेष दो-तीन पेपरों की परीक्षाएँ आगामी 22 से 25 जून तक कराये जाने की तिथी परिवर्तन की घोषणा अभी हाल ही में सचिव विद्यालयी शिक्षा द्वारा जिस कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप और उसीके फलस्वरूप सीएम की दो दिन की की गयी बंदी के कारण पहले 20 से 23 की बजाय 22 से 25 जून तो कर दिया गया।

TSR सरकार के इन तथाकथित नौरत्न आला अफसरों ने ऐसे में भी यह सोचने और विचारने की जरूरत नहीं समझी और न ही खुद प्रदेश के खैरख्वाह मुखिया ने ही उनके इस फरमान को स्व संज्ञान लेते हुये रद्द करने का निर्णय ही अभी तक लिया जो कि आने वाले समय में कितना घातक साबित हो सकता है और प्रदेश को एक बार फिर कोरोना की आग में झोंक सकता है, इस भयावह सम्भावना को कदापि नकारा नहीं जा सकता है।

क्या इन विद्वान आला अफसरों ने प्रदेश के वर्तमान हालातों को समझने की कोशिश की? एक ओर प्रदेश में बढ़ता कोरोना प्रकोप और दूसरी ओर ऐसे में इन 14 से 16-17 वर्ष की आयु के अबोध बच्चों को, जिन्हें भारतीय संविधान और Cr.PC में भी नासमझ ही माना और कहा गया है, स्कूल और परीक्षा केन्द्रों में भेज कर, परीक्षा देने जाने के लिए मजबूर किया जाना, कहाँ तक उचित है? क्या इसे किसी भी दशा में उचित ठहराया जा सकता है? क्या 90 प्रतिशत परीक्षा दे चुके इन बच्चों के लिए शेष परीक्षा देना ही एकमात्र विकल्प है? क्या इनकी परफार्मेंस और दी गयी परीक्षा के मूल्याँकन को ही पर्याप्त आधार मान कर इनका रिजल्ट घोषित नहीं किया जा सकता? जहाँ पूरे देश और प्रदेश के अनेकों क्षेत्र के लोंगो को छूट व राहत दी जारही हैं वहाँ इन बच्चों के लिए कोई राहत की गुजाँइस नहीं है?

मजे की और गौरतलब बात तो यह है कि खुद तो कोरोना के डर से जहाँ सरकारी आलाअफसर और राजनेता व मंत्री एवं मुख्यमंत्री और साँसद व विधायक अपने-अपने को सर्व सुविधा सम्पन्न आलीशान सरकारी आवासों तक ही सीमित किये हुये जान बचाते, हुये वीडियो कान्फ्रेसिंग और ई आफिस तक ही सीमित रखे हुये हैं! अच्छी बात है और होना भी यही चाहिए! एक एक जान कीमती है। परंतु जब प्रदेश में सरकार और राजकाज आनलाईन से चलाये जा रहे हों। अदालतें भी आनलाईन सुनवाई कर रही हों। वहीं इन बच्चो को आफलाईन अर्थात साक्षात व्यक्तिगत उपस्थिती के साथ परीक्षाएँ देने घरों से बाहर स्कूल जाकर गलवहियाँ करने के लिए भेज कर कोरोना महामारी की आग में झोंकने का एक नया खेल खेलने का जो ट्रायल बच्चों पर करना चाह रही है, क्या उचित है? क्या बच्चे तीन माह के अन्तराल बाद अपने साथियों से दूर रह पायेंगे? ये तो ना समझ है! इन्हे क्या पता कि इसका परिणाम क्या होगा!

ज्ञात हो कि पहले प्रवासियों के नाम पर झूटा प्रेम दिखाकर प्रदेश में कोरोना फैलवा चुकी सरकार की गलती को आज तक असल रूप में जनता ही भुगत रही है। और अब फिर अपने प्यारे-दुलारे बच्चों को न चाहते हुये इन बच्चों के अभिभावक सरकार के इस नासमझी या अपरिपक्वता पूर्ण फरमान के आगे मजबूर हो रहे है तथा यह कहते नजर आ रहे है कि स्कूल और प्रबंधक व अध्यापक कितना भी जतन कर लें, आपस में मिलने जुलने से और एक दूसरे के सम्पर्क में आने से इन नासमझ और अबोध बच्चों को वे रोक नहीं पायेंगे। और इसकी भी क्या गारंटी है कि उनके बच्चे स्कूल जाकर ऐसे समय में कोरोना संक्रमण की चपेट में नहीं आयेंगे और खुद संक्रमित होने के साथ-साथ कोरोना ट्रेकर बन अपने माँ बाप, भाई बहन को चपेट में नहीं लेंगे?

उल्लेखनीय तो यहाँ यह भी है एक ओर प्रधानमंत्री मोदी की वह अपील कि घर में रहें, सोशल डिस्टेंसिंग और दो गज की दूरी है जरूरी, जैसी मार्मिक, समयानुकूल और जन हितैषी अपील दूसरी ओर अबोध और नासमझ बच्चों की आंशिक बची खुची फरीक्षाएँ कराने का निर्णय, जरूर एक और नई मुसीबत बन कर सामने आ सकता है!

क्या इन विद्यालयों पर कारगर न हो पाने वाली शर्तें जबरदस्ती दिखावा स्वरूप थोप कर गेंद उनके पालने में डालने का जो अनूठा प्रयास सरकार द्वारा किया जा रहा है वह क्या धरातल पर सम्भव है, इसको लेकर भी संदेह है क्योंकि न ही स्कूलों के पास इतनी जगह है और न ही इतने साधन ही हैं। ऐसे में वैसा ही होगा जिसकी कल्पना बडी़ आसानी से की जा सकती है।

यहाँ यह स्मरण दिलाना भी उचित होगा कि देश के मानव संसाधन मंत्री व हरिद्वार सांसद डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने भी इस अपने गृह प्रदेश की ओर कोई ध्यान न देते हुये कोई सार्थक पहल की या प्रतिक्रिया अभी तक दी बल्कि इसी शिक्षा के क्रम में स्नातक और स्नातकोत्तर के छात्र छात्राओं के कालिज और महाविद्यालय तो अगस्त तक बंद कर दिये, किन्तु प्रदेश के भावी भविष्य इन बच्चों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।

अभिभावकों ने सरकार से अपील की है कोरोना महामारी के चलते बोर्ड की परीक्षाएँ फिलहाल हालात सुधरने से पहले न कराई जाएँ!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *