दो हजार का आँकडा़ केवल सुबह के ही दो घंटे में ही पार, दिन भर में आते हैं लाखों? – Polkhol

दो हजार का आँकडा़ केवल सुबह के ही दो घंटे में ही पार, दिन भर में आते हैं लाखों?

एक गम्भीर सवाल और चिंतन :

“जब तक नहीं दवाई, नहीं कोई ढिलाई : मोदी
…पर उत्तराखंड में अब केवल लुटाई”

ऐसे तो थमने से रहा, कोरोना कहर!

दो हजार का आँकडा़ केवल सुबह के ही दो घंटे में ही पार, दिन भर में आते हैं लाखों?

पुलिस व प्रशासन की केमिस्ट्री से ही लूट के साथ बिक्रम-आटो ढो-ढोकर ला रहे संक्रमण!

ये उत्तराखंड घुसने का टैक्स या तोहमत, क्या उचित?

बंद आलीशान कमरों में बैठ कर ऐसे ही जारी होते हैं यहाँ तुगलकी फरमान!

(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)

देहरादून। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण को लेकर उत्तराखंड सरकार प्रदेश की जनता को लेकर कितनी संजींदगी और फूलप्रूफ तरीके से काम कर रही है उसकी एक और बानगी कल तब सामने आई जब प्रदेश में शासन के निजाम यानि मुख्य सचिव का फरमान आया कि अब राज्य में प्रवेश लेने वाले दो हजार लोगों को दिखानी होगी 96 घंटे की कोरोना निगेटिव रिपोर्ट वरना कराना होगा बार्डर पर ही ऐंटीजेन टेस्ट के 800 और आरटीपीसीआर टेस्ट 2400 रुपये देकर कोविड टेस्ट।

उक्त एस ओ पी जारी तो कर दी गयी परंतु क्या उक्त फरमान व्यवहारिक और जन सामान्य पर स्वेच्छा से क्रियान्वित होने वाला है भी या फिर तुगलकी फरमान बन कर टैक्स जैसा ही साबित होगा? या फिर इसे यूँ मान लिया जाये कि बंद कमरे मैं बैठ कर अव्यवहारिक आदेश जारी कर देने मात्र से क्या कोरोना संक्रमण पर काबू पा लिया जायेगा या फिर इस आदेश की आड़ में एक नई किस्म की लूट-खसोट शुरू हो जायेगी? यही नहीं कहाँ का टेस्ट, किसका टेस्ट और कैसा टेस्ट से लुटेगें बेचारे दूसरे प्रदेश से यहाँ आने जाने वाले भारतवासी ही? बस फिर क्या तिकड़मी और अवैध कमाई करने वालों की पौ बारह ठीक इसी तरह से जैसे अभी तक प्रदेश की सीमाओं पर होती चली आ रही है कोरोना संक्रमण बिना रोकटोक के धड़ल्ले से 5 किमी के 50-50 और सौ-सौ रुपये प्रति सबारी के हिसाब से वेहिसाब भर कर राजधानी दून के बार्डर से ढो-ढोकर खुले आम पुलिस व प्रशासनिक टीमों के सामने ले लेकर हजारों की संख्या में एक एक बार्डर से लेकर आ रहे हैं। वहीं इसकी विपरीत जिला प्रशासन, पुलिस व स्वास्थय विभाग की टीमें रोजाना शाम को कागजी आँकडों भरा प्रेस नोट जारी करके अपनी पीठ आरामगाह में फ्री में मुहैया कोरोना किट के साथ थपथपाते देखे जा सकते हैं! फिर उनमें चाहे सीएम हों या डीएम अथवा आला अफसर हो या लाव लस्कर सबको अपनी जान की चिंता, भाड़ में जाये जनता!

ज्ञात हो कि गत दिवस प्रदेश की राजधानी के मात्र एक द्वार डाटकाली मन्दिर के पास बनी नयी टनल (सुरंग) के इस ओर उत्तराखंड और उस ओर उत्तरप्रदेश का नजारा देखा तो शासन और प्रशासन की सारी पोल अपने आप ही खुल गयी परिणामस्वरूप सार दावे और इंतजाम धाराशायी नजर आये।

ज्ञात हो कि जब प्रदेश के एक बार्डर पर यह हाल है है तो अन्य दो दर्जन से अधिक बार्डरों का क्या हाल होगा इसका अनुमान बडी़ आसानी से लगाया जा सकता और समझा जा सकता है कि जिस प्रदेश की जनता अनुशासनबद्ध और आदेशों को मानने में सबसे अग्रणी रहती हो वहाँ कोरोना कहर बजाये कम होने के निरंतर बढ़ कैसे रहा है।

बार्डर पार करके आने वाले रेले और मेले को देखकर ऐसा लग रहा था कि यहाँ कानून फ्री क्षेत्र है और सारे नियम कानून केवल चौपहिया वाहनधारकों के लिए ही शायद बने है दोपहिया, बिक्रम और पैदल चल कर आने वालों के लिए नहीं! शुक्र है वरना फिर घंटो लम्बी लम्बी कतारों को सम्हालेंगा कौन? क्या सरकार और स्थानीय प्रशासन की यह बद इंतजामी उचित है?

उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश बार्डर आशारोडी पर बनाई गयी चेक पोस्ट से लगभग एक किमी दूर टैनल के इधर और उधर सहारनपुर, मेरठ, रुड़की से आने सवारियों को भर-भर कर ला रही सरकारी व प्राइवेट बसें जिन हजारों की तादाद में लोंगो को लेकर आ रहीं हैं और वहाँ से फिर मँहगे बिक्रम पुलिस व प्रशासन की टीम की आँखों के सामने से राजधानी में प्रवेश करते चले आ रहे हैं।

क्या ऐसे ही होगी कोरोना की रोकथाम? क्या बिना गाये बजाये अचानक छापामारी के बिना व्यवस्थाओं का जायजा और पड़ताल और उन पर प्रभावी पकड़ के सब मुमकिन होगा? क्या भाषणों और संदेंशो मात्र से रुक पायेगा संक्रमण? या फिर बार्डर पर कोविड टेस्ट के नाम पर की जाने वाली कमाई से बचेगा और पनपेगा प्रदेश?

उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि 12 और 18 घंटे बाद तक मात्र 12 किमी दूर स्थित इस तथाकथित आनलाईन सुविधायुक्त चेकपोस्ट पर जब मुख्य सचिव के फरमान नहीं पहुँचते हैं तो दूर के बार्डरों पर कब…!

क्या हमारी सरकारें अब इतनी असहाय और असमर्थ हों गयी हैं कि प्रदेश के सभी बार्डरों पर प्रतिदिन कुल मिलाकर दो हजार लोंगो को तीन सौ और चार सौ रु. में थोक मूल्य पर मिलने वाले (MRP 1100/- तक प्रिंट) ऐटीजेन टेस्ट को मुफ्त मुहैया न कराकर बेचारे बक्त के मारे रोजी रोटी की तलाश में आने जाने वाली मजबूर इसी देश की जनता से कोविड टेस्ट के नाम पर आठ- आठ सौ और 24 सौ रुपये बसूलेगी? या प्राइवेट लैव पर लुटने के छोड़ देगी! क्या आयुष्मान जैसी योजनाओं में यह वैश्विक महामारी, बीमारी और कोविड टेस्ट को शामिल नहीं किया जाना चाहिए या फिर कोई और कारगर व्यवहारिक व स्वागत योग्य तरीका नहीं निकाला जाना चाहिए? क्या प्रधानमंत्री मोदी के उस कथन पर प्रदेश सरकारों को गौर नहीं फरमाना चाहिए कि, जबतक नहीं दवाई, तब तक नहीं ढिलाई” और केन्द्र सरकार की उस एस ओ पी कि राज्य सरकारें एक राज्य से दूसरे राज्य में आवागमन को न रोंके, पर थोपा जा रहा ये नया फरमान किसी तालिवानी तुगलकी फरमान से कम है? क्या यही है कोरोना कहर को रोकने का सही कदम? क्या यही है दो पडोसी राज्यों की केमिस्ट्री और जनता से व्यवहार?

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