दून पुलिस भी मुम्बई पुलिस की तर्ज पर अग्रसर ! – Polkhol

दून पुलिस भी मुम्बई पुलिस की तर्ज पर अग्रसर !

वाह रे वाह, चरमराता और कराहता प्रजातन्त्र ! आपात काल -2 की और ?

कार्यपालिका व विधायिका से जूझता और लड़ता चौथा स्तम्भ मीडिया व पत्रकार

दून पुलिस भी मुम्बई की तर्ज पर अग्रसर !

निर्भीक पत्रकार व एडीटर सुनील गुप्ता को अर्नब गोस्वामी की तरह फंसाने की साजिश में डीआईजी जोशी

TSR सरकार का भी उद्धव की तरह चुप्पी व मौन संगरक्षण?

IPC की संगीन धाराओं के प्रयोग दुरुपयोग दोनों ही पुलिस के हाथ में क्यों?

दून मित्र पुलिस फ्रॉडिया बैंक मैनेजर पर मेहरबान : खातेदारों के खातों से लांखों करोड़ों की रकम उड़ाने व फर्जीबाड़े में हल्की फुल्की धाराओं में रफादफा करने की फिराक में! !

भंडाफोड करने बाले पत्रकार व पीढ़ित के विरुद्ध झूठे मामले में भी संगीन धाराये को थोप अनुचित लाभ उठाने की ललक में !

(सुनील गुप्ता)

देहरादून। रिपब्लिक भारत के एडीटर अर्नब गोस्वामी पर आखिर पुलिसिया कहर ढाने में तानाशाह उद्धव सरकार भले ही कुछ समय के लिए खुश हो ले, परन्तु उनकी यह मीडिया का गला घोंटने बाली कार्यप्रणाली कब तक चल पाएगी ये तो समय ही बताएगा !

मजेदार बात तो यह है कि अंग्रेजों की तरह फूट डालो राज करो कि नीति की शिकार लुटियन्स मीडिया भी हो गयी है और आखिर आज मीडिया व पत्रकारों दो फाड़ करने में ये सफल हो ही गये हैं। जबकि गलतफहमी की शिकार यह अलग थलग चुप खड़ी तमाशा देख रही लुटियंस मीडिया शायद यह भूल कर रही है कि बक्त के साथ-साथ ये अवसरवादी भी उन्हें तोड़ने में देर नही लगाएंगे।
आज पूरे देश में अर्नब गोस्वामी की एकाएक की गई गिरफ्तारी और उसके तरीके पर जहां बबाल मचा हुआ है और सक्षम केन्द्र सरकार व न्यायपालिका अपने को कानून में जकड़े हुए असहाय सी समझ केवल बातों और भाषणों से रेत में किश्ती चलाने का जो प्रयास कर रही वह भी कुछ कम तार्किक नहीं है!
पत्रकारिता, मीडिया के इस तथाकथित चौथे स्तम्भ पर फिर हुए गला घोंटू हमले की जितनी भी निंदा और भर्त्सना की जाए कम है। चूँकि में खुद एक बेखौफ और वेबाक़ी से पत्रकारिता करने का पक्षधर हूँ इसी  लिए ठीक यही रवैया उत्तराखण्ड की राजधानी दून में मेरे साथ वर्तमान डीआईजी व एसएसपी अरुण मोहन जोशी द्वारा अपनाया जा रहा है और TSR सरकार व उसका शासन भंडाफोड़ू पत्रकार का दमन व उत्पीड़न करने बाली ऐसी ही घड़ी का चुपचाप इंतज़ार कर तमाशा देखते नजर आ रही है।

वैसे कहने को तो हम प्रजातन्त्र में हैं परन्तु क्या हम वास्तव में आज़ादी के साथ एक नागरिक व चौथे स्तम्भ के अंग के रूप में रहने के अधिकारी हैं! क्या आज कार्यपालिका और विधायिका उस ब्रिटिश तानाशाह हिटलर बाली मानसिकता से अपने को अलग कर पाए हैं?
वह तो शुक्र है कि अभी इन तानाशाहों के शिकंजे से न्यायपालिका किसी हद तक अछूती है, वरना…!
हालाँकि न्यायपालिका को भी अब अपनी आँख पर बंधी उस पट्टी को हटाने के लिए और “प्रत्यक्षम किम प्रमाणम” का फार्मूला अपनाने और फैसला “ऑन स्पॉट” पर शायद विचार करना पड़ सकता है।

ज्ञात हो कि जिस तरह से दमन और उत्पीड़न व शोषण का खेल वर्तमान में अधिकांश स्वार्थी सत्ता लोलुप व संविधान का दुरुपयोग करते हुए उनका साथ देते कार्यपालिका के ये ब्यूरोक्रेट्स आईएएस और आईपीएस आला अधिकारियों ने कार्यप्रणाली अपना रखी है वह किसी की निगाह से बची हुई नही है।

ऐसा लगने लगा है कि जैसे प्रजातंत्र बेचारा कहीं असहाय की तरह कोने में दुबक पड़ा है पुलिस रक्षक की जगह भक्षक बन कर अत्याचार, दमन और उत्पीड़न कर डंडे व झूठे मामले थोप कर जबरदस्ती कभी न चलने बाली बॉल न्यायपालिका के पाले में डालकर किसी निर्दोष की जिंदगी से खेलती है और जमाने को चुप रहने की नसीहत देकर तमाशा देखती रहती है। क्या झूठे और मनमाने केस बदनीयती से जानबूझकर थोपने बाली इस पुलिस व आला अधिकारियों की कोई जबाबदेही आज देखने को मिल रही है क्या? इनकी मनमानी से त्रस्त शोषित व पीढ़ित किससे वसूले अपनी बर्बादी का क्लेम? क्या कोई कानून या शिकंजा है इन पर?

उल्लेखनीय है मुम्बई पुलिस की तर्ज पर चल रही दून पुलिस भी TSR सरकार व भ्रष्ट अधिकारियों के इशारों पर अपनी निगाह में खटकते मुझ पत्रकार पर झूठे झूठे केस जबरन थोप कर शिकार बनाने की फिराक में लगे हुए दिखाई पड़ रहे हैं। यही डीआईजी है जिसके द्वारा पहले भी कई पत्रकारों को निरर्थक, आधारहीन व औचित्यहीन मामलों में फंसाकर उनका दमन व उत्पीड़न किया जा चुका है। हालाँकि उनमें माननीय उच्च न्यायलय से इनके मुँह पर तमाचा भी लग चुका है, पर क्या कोई सबक लिया होगा, दिखाई तो नही पड़ रहा है?

ज्ञात हो कि दून पुलिस के असंवैधानिक कृत्यों व तरीकों के साथ पत्रकार राजेश शर्मा और सेमवाल की, की गई गिरफ्तारी के विरुद्ध पक्ष पत्रकारों व संघर्ष समिति के साथ खड़े होने और डीआईजी से बेवाकी से बात करने पर मेरे विरुद्ध जिस प्रकार की दमनात्मक, उत्पीड़न व शोषण की कार्यवाही और रवैया विगत लगभग तीन माह सेअख्तयार किया जा रहा है और उस पर आला अधिकारियों सहित TSR सरकार व शासन की चुप्पी भी अपने आपमें ही किसी षड्यन्त्र व साजिश को दर्शा रही है! इनकी इस साजिश में कई कई साल पुराने निस्तारित हो चुके मामलों को मुम्बई की तर्ज पर फिर थोपकर लपेटने की साजिश को जबरदस्ती अंजाम देने में लगी हई है। इन सभी हालातों और निरंकुश पुलिस पर चुप्पी क्या उद्धव सरकार की चुप्पी और 1975 के आपातकाल की याद को ताजा नही कर रही है? क्या पूरे पत्रकार जगत को अपने आप में इस पर चिंतन और जाग्रत होने का यह सही समय नही है। जिस तरह से आज जनता व पत्रकारों को सड़कों पर आकर अत्यचार और तानाशाही के विरुद्ध मुखर हो रही है।

एक तीर से दो नहीं, तीन शिकार और रस्सी को साँप बनाने की कबायद में है पुलिस

सूत्रों की अगर यहां माने तो दून पुलिस अपने इस डीआईजी के नेतृत्व में में जिस गम्भीर बैंक फ्रॉड के उक्त प्रकरण की आड़ में साजिशन योजित कराए गयी डेढ़ माह बाद  पेशबन्दी के तहत दर्ज कराई गई FIR पर एक तीर से दो शिकारों के गले में फंदा और तीसरे चहेते को बचाने के लिए लगी हुई है और  फ्रॉडिया बैंक मैनेजर सहित उसके गिरोह पर खातेदारों के खातों से लगभग 50 लाख की रकम के गम्भीर फर्जीबाड़े के मामले पर हल्की फुल्की धाराओं के प्रयोग कर उसे अनुचित लाभ पहुंचाने का मकड़ जाल फैला कर का भंडाफोड़ करने बाले पत्रकार को ही फँसने का जो प्रयास कर रही है वह भी जग जाहिर है और मुम्बई पुलिस पर चलने की तैयारी मात्र ही है ! सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इन दोनों मामलों की FIR में पुलिस की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध दिखाई दे रही है। यही नहीं पुलिस एक अन्य पुराने निस्तारित मामले में भी फिर उसे नए सिरे से निराधार रूप से रस्सी का सांप बनाकर साजिश को मूर्त रूप देने की कबायद करने में भी लगी हुई है।

क्या यह भी यहाँ शर्म की बात नहीं है आज उन तमाशबीन दुबके पत्रकारों और मीडिया  के लिए जो आपसी मतभेदों और क्षणिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए अलग-थलग दिखाई पड़ रहे हैं तथा पत्रकारिता का धर्म छोड़ पाठकों व दर्शकों को भी  सही समाचार परोसने में भी कतराते नजर आ रहे हैं!

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