पहाड़ की ऊंची चोटियां हल्की बर्फबारी (Snowfall) से भले ही कुछ सफेद हुई हों, लेकिन बारिश के इंतजार ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी है. आलम ये है कि पिछले साढ़े तीन महीनों से पहाड़ों पर एक बूंद पानी नहीं बरसा है. मौसम की इस बेरूखी से रबी की फसल (crop) चौपट होने की कगार पर है. सर्दियों का सबसे सर्द महीना गुजरने को है, फिर भी इन्द्रदेव की मेहरबानी से किसान महरूम हैं. इन्द्रदेवता की ये बेरूखी रबी की फसलों भारी पड़ती दिख रही है. हालात ये हैं कि गेहूं, मंसूर, सरसों, जौं, चना, मटर को जहां भारी नुकसान हो रहा है. वहीं, जाड़ों की सब्जियां उगने से पहले ही दम तोड़ने लगी हैं. गुजरा महीना इन फसलों के लिए काफी अहम था, लेकिन पहाड़ों पर पिछले साढ़े तीन महीने बिना बारिश (Rain) के ही गुजर गये हैं,
ये बात अलग है कि ऊंची चोटियों पर कई दफा जरूर बर्फबारी हो चुकी है. कृषि एवं भूमि संरक्षण अधिकारी पूजा पुनेठा का कहना है कि ऐसा कम ही देखने को मिला है कि लम्बे समय तक पहाड़ों में बारिश न हो. ऐसे में तय है कि अगर जल्द ही बारिश नहीं हुई तो खेती को बड़ा नुकसान होगा. हालात यूं ही बने रहे तो, रबी की फसलें बिना विकसित हुए ही पकने लगेंगीं. ऐसी में फसलों के चौपट होने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं. मौसम की बेरूखी के शिकार पर्वतीय इलाकों के किसान ज्यादा हो रहे हैं. पहाड़ों में आज भी 90 फीसदी खेती मौसम पर निर्भर है. यहां सिंचाई के साधन नहीं के बराबर हैं. ऐसे में किसानों की पूरी उम्मीद है कि बारिश पर ही टिकी रहती है.
मौसम की बेरूखी झेल रहे किसानों ने अब सरकार से मदद की फरियाद भी लगाई है. प्रगतिशील किसान कुंडल सिंह ने सरकार से प्रभावित किसानों को हुए नुकसान का आंकलन कर मुआवजा देने की मांग की है. कुंडल कहते हैं कि मुआवजा मिलने से निराश किसान को काफी मिलेगी और वे खेती से जुड़ा रहेगा. बीते सालों में पूरे देश में बुआई एरिया कम हुआ है, जो आने वाले दिनों में गंभीर खाद्य संकट की ओर इशारा कर रहा है. उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है. पहाड़ों में इन्द्रदेव रूठे हैं, फसलों के साथ ही किसानों की उम्मीदें भी सूखने लगी हैं.