वाह रे वाह! ऊर्जा विभाग वाह!
अयोग्य एमडी यूपीसीएल की पहले नियुक्त, बाद में छानबीन?
दोनों TSR के ठेंगे पर रहे धमकी बाज रुकूँ या जाँऊ बाले मंत्री के आगे घुटने टेकती यह भाजपा सरकार
ऊर्जा मंत्री की हनक या अपनी खामियों को ढकने के प्रयास में असहाय सचिव ऊर्जा?
दो एम्पायरों के बीच में फँसा ऊर्जा निगमों का भविष्य!
मनचाही अनुचित नियुक्तियों पर पर्दा डालने की एक और कोशिश!
एक्शनों में देरी या गड़बड़ झाले के दलदल में उलझती नियुक्तियाँ
उदासीनता और लापरवाही अपनी, थोप रहे एमडी पर?
कहीं ये आरटीआई शासन के गले की फाँस तो नहीं?
…तो फिर इनकी क्या खता जो नियुक्तियाँ नहीं?
…कहीं अब अयोग्य व विवादितों के लिए तैयारी तो नहीं?
चुनाव आचार संहिता से ठीक पहले होगा शेष अधर में लटके पदों पर, पूरा खेल!
बिना निदेशक परियोजना के, कैसे चल रहा पिटकुल?
क्या इसी छवि से ही चुनाव दोबारा वापसी कर पायेगी पुष्कर सरकार!
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता का एक विश्लेषण)
देहरादून। ज्यों ज्यों 2022 का विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे ही वैसे प्रदेश के मुख्यमंत्री शासन और राजकाज से विमुख होते जा रहे है और अपने आपको निरन्तर उत्तराखंड के विकास में काम करने वाला मुख्यमंत्री बताते हुए राम भरोसे प्रदेश को छोड़कर घोषणा मंत्री बने हुये घोषणाओं का अम्बार अवश्य लगाते जा रहे हैं, पता नहीं इन घोषणायें क्या रंग दिखायेगी। घोषणायें जब रंग दिखायेगी तब दिखायेंगी फिलहाल तो ऊर्जा मंत्री अवश्य तथाकथित रूप से अपने चहेतों को दमखम से फिट कने के लिए अवश्य रंग दिखाते नजर आ रहे जिससे धामी शासन का शासन अवश्य बदरंग होता जा रहा है। सीएम धामी की इसी विमुखता का परिणाम है कि प्रदेश को ऊर्जा देने वाला ऊर्जा विभाग के निगमों पिटकुल और यूपीसीएल के बचेखुचे निदेशकों और प्रबंध निदेशकों में रस्साकसी मची हुई है। अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग के चलते दोनों निगम भगवान भरोसे चल रहे हैं।
इन तीनों निगमों में कहीं जनधन की लूटखसोट तो कहीं बरवादी का तानाबाना तो फिर कहीं सियासतबाजी और एक दूसरे को ऊँचा नीचा दिखाने की होड़ तथा आपसी रस्साकसी में इनकी हालत बद से बद्तर होती जा रही है। इस कडी़ में धामी शासन भी पीछे नहीं है तथा शासन में बैठे आला अफसर अपनी जिम्मेदारियों से नजरें फेर तमाशा देखते नजर आ रहे हैं। यही नहीं ऐसालगने लगा है कि मानो ये विवेकाधीन हो गयें या फिर असहाय और अक्षम! शासन की इस दुर्दशा व अनदेखी के चलते ही कुछ ऐसी स्थिति हमारे विश्लेषण में सामने आई है हैरत अंगेज तो है ही साथ ही तरह तरह के सवालों को भी अपने में समेटे हुये है।
ज्ञात हो कि वमुश्किल तमाम 12 जून से प्रक्रियाधीन इन तीनों निगमों यूपीसीएल, पिटकुल और यूजेवीएनएल में क्रमशः बहुप्रतीक्षित प्रबंध निदेशकों और निदेशकों के पदों पर साक्षात्कार 5 अक्टूबर को होने का समय आया और साक्षात्कार चयन समिति द्वारा यूपीसीएल के लिए एमडी व निदेशक परिचालन व निदेशक मानव संसाधन सहित पिटकुल के एमडी एवं यूजेवीनएल के निदेशक मा.स. आदि महत्पूर्ण पदों पर नियुक्ति हेतु लगभग चालीस प्रतिभागियों के साक्षात्कार लिए गये, परंतु नियमानुसार इंटरब्यू के परिणाम एक उचित समय सीमा में निर्विवाद रूप से एक साथ घोषित न करके ऐसा खेल खेला गया जिसने किसी मैच फिक्सिंग की भाँति एक कहानी को तो जन्म दे ही दिया साथ ही भारी भरकम रकम के लेनदेन को भी हवा देदी। शायद यही कारण रहा होगा कि छः पदों में से एक ही अभ्यर्थी की जो अनेकों विवादों और भ्रष्टाचार के मामलों में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से संलिप्त एवं विवादित रहा, की एकमात्र नियुक्ति एमडीयूपीसीएल के पद पर पच्चीस दिनों बाद एकाएक सचिव ऊर्जा की अनुपस्थिति में करा दी गयी। यही नहीं आनन फानन में आतुर महाशय द्वारा पदभार भी ग्रहण कर लिया गया तथा 1 नवम्बर को ही बिना किसी आदेश के पिटकुल के निदेशक परियोजना का दायित्व मनमर्जी से लावारिस रूप में छोड़ दिया गया। महोदय की जल्दबाजी में कहा जाये या नियमों की अनदेखी करने के आदी अथवा तानाशाही कि अपने मूल पद मुख्य अभिंयता-1 से ली-एन कराना भी उचित न समझते हुये सेवा नियमावलियों का उल्लंघन व अनुशासन हीनता दंबगयी से कर डाला। बताया तो यहाँ यह भी जा रहा है कि ऊर्जा मंत्री से अभमदान का वरदान मिला हुआ तभी तो समरथ को नहीं दोष गुंसाईं की कहावत चरितार्थ हो रही है।
मजे की बात तो यहाँ यह भी है एमडी के दो पदों पर 7 अभ्यर्थी दौड़ में थे उनमें से एक उक्त महाबली दूसरे जो माननीय उच्चन्यायालय की शरणाधीन है तथा उनकी याचिका WPSB 454/2021 प्रकाश चन्द्र ध्यानी वनाम उत्तराखंड सरकार अभी भी विचाराधीन है। ऐसे में जबकि तब जब और शेष पदों पर नियुक्तियों के चयन के परिणाम लम्वित थे तो केवल इन्हीं का नियुक्ति पत्र जारी किया गया। यहाँ अगर नियमों का अनुपालन ऊर्जा विभाग करता तो साक्षात्कार हेतु काॅललेटर जारी करने से पहले वे सभी आवश्यक औपचारिकतायें व एसीआर और पिछले पाँच वर्षों की विजीलेंस रिपोर्ट आदि का परीक्षण कर लेता और पारदर्शिता के साथ केवल उन्हीं सुपात्र व योग्य अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में बुलाया जाता।
ज्हञात हो कि नकदार मंत्री के दबाव में या फिर चुनावी खर्च के कलक्शन की जुगत में सुधबुध खो बैठा धामी शासन अब यह पत्र करीब दो माह बाद पिटकुल व यूपीसीएल के एमडी को जारी कर अपना दामन बचाने का प्रयास कर रहा है जिसे अब किसी भी प्रकार उचित नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि नियुक्ति तो हो चुकी। ऐसे में यह यक्ष प्रश्न अवश्य उठता है कि सुपात्रों और योग्य अभ्यर्थियों की क्या खता थी जिन्हें वंचित कर दिया गया। और यदि वे सभी भी इसी सचिव ऊर्जा के पत्र की परिधी में आते थे तो उन्हें पत्र क्यों जारी नहीं किया गया, केवल 6 को ही क्यों? क्या अभी भी कुछ गड़बड़ झाला इस पत्र में इंगित लोंगों को पक्ष में चलाया जा रहा है। देखिए सचिव ऊर्जा द्वारा गत दिवस होश में आने पर जारी किया गया पत्र और चार्ज छोड़ने और ग्रहण करने के पत्र….
ये हैं चार्ज देने और लेने के पत्र…
उल्लेखनीय है कि ऊर्जा मंत्रालय अभी भी निगमों के अनेकों मामलों में चार्जशीटिड व दोषी तथाकथित रूप से संलिप्त रहे कुछ चाहगीरों को किसी न किसी पद पर एडजेस्ट करने की फिराक में दिखाई पड़ रहा है जिसकी यह कबायद है? एक ओर खाली पडे़ एमडी व निदेशकों के खाली पडे़ पद दूसरी ओर इनकी काली करतूतें निगमों का बेडा़ गर्क करने के लिए कुछ कम नहीं है यही कारण है कि ऊर्जा प्रदेश में उपभोक्ताओं को बजाये सस्ती बिजली की मँहगी दरों पर बिजली मुहैया हो रही है।
चर्चा तो यह भी गौरतलव है कि प्रदेश में चुनाव आचार संहिता शीघ्र ही लगने वाली है। दूसरी ओर शासन में इन नियुक्तियों की प्रक्रिया और कार्यकलापों को लेकर अनेकों आरटीआई भी लग चुकी हैं जो ऊर्जा विभाग और धामी शासन की गले की फाँस बन चुकी हैं।
क्या वास्तव में चुनावी रणनीति के तहत रुकूँ कि जाँऊ वाले मंत्री के आगे धामी सरकार घुटने टेक चुकी है या फिर कोई पैक्ट!
क्या ऐसे ही करेगी धामी सरकार प्रदेश का विकास और ऐसे ही चलेगा शासन? या फिर नियमों की अनदेखी करने वाले आलाअफसरों की कसी जायेगी नकेल और बिगडे़ल मंत्रियों के दुष्कृत्यों पर लगाम? क्या स्वच्छ और भयमुक्त शासन का नारा देने वाली भाजपा सरकार यह मैच फिक्सिंग के खेल की तरह उलझी साफ सुथरी नियुक्तियाँ कराकर करेगी इन निगमों का उद्धार या फिर करेगी बेडा़गर्क?