उरेडा : नहीं खुलीं परतें अभी तक सैकड़ों करोड़ की सब्सीडी वाले महाघोटाले की – Polkhol

उरेडा : नहीं खुलीं परतें अभी तक सैकड़ों करोड़ की सब्सीडी वाले महाघोटाले की

वरदान साबित होने वाली सोलर पावर प्लांट योजना चढी़ भ्रष्टाचार की भेंट

काले कारनामों के कॉकस की दिखावटी जाँच की, जाँच करायेगी क्या धामी सरकार?

वर्तमान सीपीओ भी डाल रहे पुराने सीपीओ और प्रमुख सचिव ऊर्जा के भ्रष्टाचार पर पर्दा!

TSR-1 के राज में दबाई गयी फाईल TSR-2 ने खुलवाई और अब क्या दे दी जायेगी क्लीन चिट?

इन फर्जी व अनियमित रूफटाॅप ग्रिड कनैक्टिड सोलर पाॉवर प्लांटों और भ्रष्ट अधिकारियों पर क्या कसेगा शिकंजा?

फर्जी कमीशनिंग के इन सोलर प्लांटों में फर्जी बिलिंग के खेल भी बदस्तूरजारी?

यदि लूट के लिए दुरुपयोग न हुआ होता, तो आज नहीं होती ऊर्जा की किल्लत?

कहीं फिर आडे़ न आ जाये सीएम दरबार में जीजा साले का ये रिश्ता

(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)

देहरादून। भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस वाली भाजपा सरकार के जीरोपंथी का एक ऐसा मामला प्रकाश में आया है जिसमें नमो के नाम पर वोट वटोर कर उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने वाली भाजपा खुद ही नमो के नाम को बदनाम करती दिख रही है। यही नहीं पारदर्शिता का भी ढोंग इसी प्रदेश में किया जा रहा है।

इस प्रकरण की पृष्ठभूमि में विस्तार से न जाते हुये संक्षेप में ही यहाँ बताना उचित होगा जिसके अनुसार देवभूमि उत्तराखंड में कांग्रेस HSR सरकार के कार्यकाल में 2015 में भारत सरकार के एमएनआरई और सेकी की बहुआयामी महत्वपूर्ण योजना ग्रिड कनैक्टिड रूफटाॉप सोलर पाॅवर प्लांट योजना 28 मेगावाॅट की आई थी जिसके सफल संचालन किये जिम्मेदारी प्रदेश के ऊर्जा विभाग के आधीनस्थ वैकल्पिक ऊर्जा के उरेडा के दी गयी थी ताकि पर्वतीय प्रदेश में सुपात्र लाभान्वित हों और प्रदेश को सोलर एनर्जी मुहैया करा बिजली की किल्लत को दूर कराने में सार्थक बने। इस योजना का गला जन्म के साथ ही तत्कालीन प्रमुख सचिव ऊर्जा और उरेडा के ही अधिकारियों द्वारा घोंट दिया गया। पहले आओ पहले पाओ के तहत लाँच होने वाली इस योजना जिसमें 70 प्रतिशत अनुदान वाली इस योजना की सब्सीडी की रकम डकारने के लिए जमकर लूट का खेल खेला गया तथा “अन्धा बाँटे रेबडी़ अपने अपने को देय” की कहावत के अनुसार आनलाईन आवेदन करने की अन्तिम तिथी के दिन खोला गया और अपने अपने चहेतों के पंजीकरण के साथ ही बंद कर दिया गया था।

सूत्रों की अगर यहाँ माने तो इस योजना का अनुचित लाभ उठाने वालों में उरेडा के ही तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारियों सहित यूपीसीएल के कई चीफ इंजीनीयर व प्रमुख सचिव ऊर्जा भी संलिप्त बताये जा रहे हैं जिन्होंने अपने ही रिश्तेदारों और मित्रों के नाम से बेनामी सम्पत्ती की भाँति बड़े बड़े प्लांट ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार और रुड़की आदि जगहों पर लगवा डाले तथा आनन फानन में नियम विरुद्ध यूपीसीएल से पच्चीस सालों के लिए महँगी दरों पर पीपीए भी साईन करा लिए गये। यही नहीं उक्त योजना में मिलने वाले वे सभी लाभ फटाफट हड़पने की नियत से अधिकांश प्लांटों की कमीशनिंग इन शातिर अधिकारियों द्वारा जनरेटर से दिखवाकर औपचारिकतायें आँख बंद कर पूरी करा दी गयीं ताकि इनकी करोडों के सब्सीडी रिलीज हो जाये। यही नहीं इनमें ऐसे ऐसे प्लांट भी हैं जो एक ही प्लांट के चारों ओर की बाउंड्री पर चारों ओर से बोर्ड लगाकर चार प्लांट दिखा ऊधमसिंह नगर के इस प्लांट के पीछे इन्हीं प्रमुख सचिव ऊर्जा रहे पूर्व आईएएस के विशेष कृपा का रहना बताया जा रहा है। ये सोलर प्लांट एक ही प्लाॅट में 500-500 किलोवाट के तीन और 300 किलोवाट के एक प्लांट लगना था। इसी प्रकार उरेडा के ही अधिकारियों के खुद के प्लांट भी हरिद्वार, रुड़की, हल्द्वानी व सितारगंज क्षेत्र में अन्य नामों से लगाये गये हैं। यूपीसीएल व पिटकुल के भी दो तीन बड़े अधिकारियों द्वारा भी अपने ही करीबी रिश्तेदारों और कान्टरेक्टर्स के साथ साझेदारी के रूप में लगाये गये हैं। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि फर्जी कमीशनिंग के इन सोलर प्लांटों में फर्जी बिलिंग का खेल भी बदस्तूरजारी है जिससे लाखों की चूना निरंतर लग रहा है?

मजेदार बात तो यह भी उक्त सोलर प्लांटों में कुछ जेन्यून उद्यमियों के मामलों में सब्सीडी के षडयंत्र के तहत रिलीज न किये जाने को लेकर मामला उच्च न्यायलय तक पहुँच चुका था जिसमें भी न्यायलय के आदेशों का जमकर मनचाहा प्रयोग करें गुल खिलाये गये ताकि उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप और सम्मान में इन पर उँगली न उसे और ये अपना खेल वखूबी खेलते रहें।

ज्ञात हो कि इस योजना में पहले चरण में 17 और दूसरे चरण में लगभग एक सौ बीस उद्यमियों के चयन भ्रष्ट हाथों से किया गया था जिसका ही परिणाम रहा कि अठ्ठाईस मेगावाट सोलर इनर्जी पाने से प्रदेश वंचित रह गया और अब मात्र दो तीन मेगावाट ही सोलर इनर्जी ही प्रदेश को मिल पा रही है।

ज्ञात हो कि उक्त प्रकरण विगत पाँच छः वर्षो में अनेकों बार उजागर किया जा चुका है परंतु इस भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस के नीति का डंका पीटने वाली डबल इंजन की सरकार यहाँ स्वयं में ही जीरो नजर आ रही है। 2017 में TSR -1 के सरकार आई और उसने भी बड़े बड़े दावे किये कि भ्रष्टाचारी बख्शी नहीं जायेंगे और एक जाँच बिठा दी गयी, परंतु जाँच और फिर जाँच पर जाँच के इस खेल को सचिव ऊर्जा मैडम के द्वारा घोटाले में संलिप्त पूर्व आईएएस व प्रमुख सचिव से लेकर उरेडा के मुख्य परियोजना अधिकारी सहित दिग्गजों को लाभ पहुँचाने के लिए बड़े ही नाटकीय ढंग से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यहाँ यह भी उल्लेख करना उचित होगा कि इन प्रकरणों की जाँच में एमएनआरई के भी सदस्य जाँच कमेटी में थे जो पहले से ही स्पाॅट इंसपेक्शन से लेकर स्टेज इंसपेक्शन व कमीशनिंग तक संलिप्त रहे थे। इन्हें भी मैनेज कर लिया गया था और उक्त प्रकरण में हुये घोटालों पर लीपापोती कर सब्सीडी के रास्ता साफ करा दिया गया था। वैसे तो अपर सचिव ऊर्जा एवं निदेशक उरेडा रहे आईएएस कैप्टेन साहब भी उक्त प्रकरण पर क्लीन चिट देकर गुल खिलाकर जी चुके हैं और अब वर्तमान मुख्य परियोजना अधिकारी भी मामले में अनभिज्ञ व अनजान बन कर उक्त प्रकरण को स्थाई तौर पर ठण्डे बस्ते में डलवाने की फिराक में नजर आ रहे हैं। यहाँ तक कि सीएम के नवरत्नों में दरबार में मौजूद एक वरिष्ठ आईएएस और उरेडा के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी में विद्यमान जीजा व साले का रिश्ता भी घोटालेबाजों के समर्थन में कुछ रंग दिखा सकता है?

मेजेदार तथ्य तो ये भी इसी घोटालों के खेल में हैं कि पाॅवर प्लांट आज भी अधूरे और नियम विरुद्ध हैं किन्तु उनकी फर्जी बिलिंग और ओवर बिलिंग के खेल निरन्तर जारी है क्योंकि “चोर चोर मौसेरे भाई ” वाली कहावत यहाँ अक्षरसः साकार है।

TSR-1 के बाद TSR-2 के सामने जब उक्त पत्रावली क्लीन चिट पर मुहर लगवाने के लिए पहुँची तो उन्होंने इस लगभग 120 करोड़ की सिसकारी के महाघोटाले के भाँप लिया तथा तत्कालीन मुख्य सचिव को स्वयं परीक्षण के रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा। तत्पश्चात TSR-1के चहेते और खासमखास रहे मुख्य सचिव ने उक्त फाईल को दबाये रखा तथा फाईल गुम हो जाने का नाटक चलता रहा। सीएस बदलने के साथ ही उक्त जिन्न फिर बाहर निकला और अब फिर धामी सरकार में छिपे आस्तीन के साँप फिर उक्त महाघोटाले पर सीएम धामी से क्लीन चिट के मुहर लगवाने के फिराक में हैं ताकि करोंडों के सब्सीडी के बंदरबाँट हो सके?

इस हाईप्रोफाईल घोटाले में महत्वपूर्ण तथ्य यह भी रहा है कि जिन्होंने ये भ्रष्टाचार युक्त बाग लगाया और बुनियाद रखी थी वे उरेडा के ही अधिकारी इसकी जाँच में जाँच अधिकारी के रूप में जाँच करें रहे थे और अपने पावर प्लांटों को क्लीन चिट देते जा रहे थे।

देखना यहाँ गौर तलब होगा कि कांग्रेस सरकार के समय के इस महाघोटाले पर धामी सरकार और उनका शासन क्या रुख अपनाता है? या फिर TSR-1 के भ्रष्टाचार को संरक्षण की नीति पर चलता है…?

क्या गलत जाँच करने वाले इन संलिप्त अधिकारियों पर भी कोई कठोर कार्यवाही की जायेगी जी हाल ही में सेवानिवृत्त होकर घर बैठे तमाशा देख रहे हैं?

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