बड़कोट (उत्तरकाशी) : यमुनोत्री धाम में मंदिर के साथ ही धर्मशाला और गर्मकुंड पर भी खतरा मंडराने लगा है। धाम में यमुना का जलस्तर बढ़ने से यमुनोत्री मंदिर समिति के साथ तीर्थ पुरोहित भी सहमे हुए हैं। हालांकि, अभी तक किसी प्रकार के नुकसान की कोई सूचना नहीं है।
दस वर्षों में तीन करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च
यमुनोत्री धाम की सुरक्षा के नाम पर बीते दस वर्षों में तीन करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च हो चुकी है। लेकिन, लीपापोती और निम्न गुणवत्ता के कार्यों के चलते स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। महत्वपूर्ण बात यह कि वर्ष 2013 की आपदा के बाद भी यमुनोत्री धाम की सुरक्षा को लेकर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
दरकते कालिंदी पर्वत के ठीक नीचे स्थित यमुनोत्री धाम में वर्ष 1982, वर्ष 1984, वर्ष 2002 व वर्ष 2004 में पत्थर गिरने और नदी का जलस्तर बढ़ने से गर्भगृह को नुकसान पहुंचने की घटनाएं हो चुकी हैं। वर्ष 2004 में तो पहाड़ी से पत्थर गिरने के कारण मंदिर परिसर में मौजूद छह व्यक्तियों की मौत हो गई थी।
वर्ष 2013 में मंदिर समिति की ओर से सुरक्षा की गुहार लगाए जाने पर सरकार ने सिंचाई विभाग को सुरक्षा कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी थी। साथ ही, जीएसआइ व इसरो से भी इसका अध्ययन कराया गया। जुलाई 2013 में तत्कालीन जिलाधिकारी के अनुरोध पर भूगर्भ एवं भूखनिक इकाई उत्तराखंड और इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग के पीके चंपतिरे व डा. एसएल चटर्जी ने कालिंदी पहाड़ी का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सौंपी।
धाम बाढ़, भूस्खलन और पत्थर गिरने को लेकर संवेदनशील
रिपोर्ट में उल्लेख है कि यमुनोत्री धाम बाढ़, भूस्खलन और पत्थर गिरने को लेकर काफी संवेदनशील है, जिसका समय रहते उपचार किया जाना जरूरी है। रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि जियोग्रिड वाल और अन्य माध्यमों से इसे उपचारित किया जा सकता है। उधर, यमुनोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश उनियाल का कहना है कि दो वर्ष से प्रसाद योजना के तहत सुरक्षा उपाय और धाम के कायाकल्प की बात हो रही है, लेकिन आज तक इस दिशा में सरकार और प्रशासन की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया।