देवभूमि उत्तराखंड को प्राचीन संस्कृति और ज्ञान परंपरा के केंद्र के रूप में विकसित करने की तैयारी – Polkhol

देवभूमि उत्तराखंड को प्राचीन संस्कृति और ज्ञान परंपरा के केंद्र के रूप में विकसित करने की तैयारी

देहरादून : प्राचीन भारतीय ग्रंथों और पुराणों में केदारखंड के रूप में वर्णित देवभूमि उत्तराखंड को प्राचीन संस्कृति और ज्ञान परंपरा के केंद्र के रूप में विकसित करने की तैयारी है। भाजपा की पुष्कर सिंह धामी सरकार प्रदेश की दूसरी राजकीय भाषा संस्कृत के गौरव को पुनर्स्थापित करने का बीड़ा उठाने जा रही है।

प्राचीन भारतीय संस्कृति के होंगे दर्शन

प्रत्येक जिले में एक-एक संस्कृत ग्राम घोषित किए जाएंगे। वेद, पुराण एवं उपनिषदों की ऋचाएं गांवों में गूंजेंगी। चयनित संस्कृत ग्रामों में प्राचीन भारतीय संस्कृति के दर्शन होंगे। संस्कृत भाषा के महापुरुषों एवं विद्वानों के जन्म दिवस पर संस्कृत महोत्सव आयोजित किए जाएंगे।

प्रदेश में अब तक की भाजपा सरकारें संस्कृत शिक्षा को प्रोत्साहन देने को सजग रही हैं। संस्कृत को प्रदेश की दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया जा चुका है। अब धामी सरकार संस्कृत के विकास की व्यापक रूपरेखा बना रही है। इसके माध्यम से संस्कृत के गौरव को पुन: प्राप्त किया जाएगा।

संस्कृत शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत ने बताया कि संस्कृत भारतीय दर्शन और ज्ञान परंपरा का आधार रहा है। इसे महत्व नहीं मिलने से नई पीढ़ी को प्राचीन ज्ञान परंपरा से जुड़ नहीं सकी है। उत्तराखंड में संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए प्रत्येक जिले में एक-एक संस्कृत ग्राम घोषित किए जाएंगे।

पर्यटक करेंगे भारतीय संस्कृति का दर्शन

उन्होंने बताया कि चयनित संस्कृत ग्रामों में संस्कृत भाषा के संवर्द्धन, वेद, पुराणों, उपनिषदों के रूप में भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रतिष्ठित किया जाएगा। इससे देश-विदेश से आने वाले पर्यटक इन ग्रामों में भारतीय संस्कृति के दर्शन कर सकेंगे। अभी चमोली के किमोठा और अल्मोड़ा के भंतोला संस्कृत ग्राम घोषित हैं।

इसके साथ ही संस्कृत शिक्षकों और महाविद्यालयों की दशा सुधारी जाएगी। संस्कृत शिक्षा अधिकारियों को इस संबंध में निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि आगामी आठ अगस्त से प्रदेशभर में संस्कृत सप्ताह मनाया जाएगा। राजभवन से इसे प्रारंभ किया जाएगा। संस्कृत शिक्षा विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है।

संस्कृत शिक्षा विनियम बनते ही होगी सीधी भर्ती

उन्होंने बताया कि अब प्रदेश में प्रबंधकीय व्यवस्था और राजकीय संस्कृत विद्यालयों में प्रधानाचार्य, प्रधानाध्यापक, प्रवक्ता और सहायक अध्यापकों के 250 से अधिक पद रिक्त हैं। इन पदों को भरने के लिए उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा विनियम को अंतिम रूप दिया जा चुका है।

मंत्रिमंडल की स्वीकृति के बाद विनियम लागू किए जाएंगे, ताकि रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया शीघ्र शुरू हो सके। नियमित नियुक्ति होने तक प्रतिनियुक्ति और आउटसोर्सिंग से पदों को भरने को कहा गया है, ताकि पठन-पाठन प्रभावित न हो।

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