दिल्ली। चीन के साथ उत्तरी सीमा पर सैन्य गतिरोध तथा भविष्य की चुनौतियों और लड़ाईयों को देखते हुए सेना ऐसा स्वदेशी बहुद्देशीय हल्का लेकिन बेहद मजबूत अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस टैंक ‘जोरावर’ खरीदने जा रही है जो हजारों किलोमीटर की ऊंचाई पर दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों सहित हर जगह और सभी मौसम में दुश्मन के दांत खट्टे कर सके।
दरअसल चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में दो वर्ष से भी अधिक समय से चले आ रहे सैन्य गतिरोध के दौरान सेना ने मौजूदा टैंकों और अपने जोश तथा जज्बे के साथ चीन को करारा जवाब दिया लेकिन उसे ऐसे हल्के लेकिन मजबूत और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस टैंक की कमी बहुत अधिक खली जिसे ऊंचाई वाले दुर्गम क्षेत्रों में आसानी से ले जाकर तुरंत तैनात किया जा सके। दूसरी ओर चीनी सेना इस तरह के हल्के टैंकों से लैस है जिन्हें पहाड़ों पर आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। इसे देखते हुए सेना भी इस कमी को दूर करने की योजना पर आगे बढ रही है।
चीन और पाकिस्तान के दो मोर्चों से एक साथ उत्पन्न होने वाली चुनौती , भविष्य के खतरों, दुनिया भर में अलग अलग जगहों पर चल रहे सैन्य संघर्षों तथा लड़ाईयों और अभियानों के खतरों का बारिकी से अध्ययन कर रही सेना इन से सीख तथा सबक भी ले रही है। इसी सीख के आधार पर सेना भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों तथा खतरों से निपटने के लिए दूरगामी रणनीति की तहत तैयारी करते हुए अपने आप को भविष्य की मजबूत सेना बनाने की दिशा में काम रही है। इसी कड़ी में वह ‘जोरावर’ टैंक के साथ साथ स्वार्म ड्रोन, टैंक रोधी निर्देशित मिसाइल, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से लैस फ्यूचर रेड़ी कॉम्बेट व्हीकल तथा मैकेनाइज्ड इंफेन्ट्री की क्षमता विकसित करने पर भी विशेष ध्यान दे रही है।
उच्च पदस्थ तथा विश्वसनीय रक्षा सूत्रों का कहना है कि सेना ने ‘जोरावर’ टैंक का डिजायन तैयार कर लिया है और उसे इसकी खरीद के लिए सरकार की ओर से सिद्धांतत हरी झंडी भी मिल गयी है। इन टैंकों की खरीद रक्षा खरीद प्रक्रिया 2020 की मेक इन इंडिया श्रेणी के तहत आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए की जायेगी। इस टैंक को बनाने के लिए घरेलू रक्षा उद्योग से संपर्क कर सेना द्वारा डिजायन टैंक बनाने को कहा गया है। यह टैंक भारतीय सेना की जरूरतों तथा भौगोलिक क्षेत्रों के अनुरूप तो होगा ही साथ ही में यह अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, ड्रोन, बचाव प्रणाली तथा खतरों को भांपने की प्रौद्योगिकी से भी लैस होगा।
सूत्रों का कहना है कि थल सेना के लिए टैंक सबसे प्रमुख हथियार है जिसके बल पर जंग का रूख बदला जा सकता है लेकिन अब बदली हुई परिस्थितियों में ऐसे टैंक की जरूरत है जिसे हमला करने के साथ साथ दुश्मन के टैंकों और अन्य हथियारों के साथ साथ अदृश्य हवाई खतरों जैसे ड्रोन आदि से भी सुरक्षा की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि जो दुश्मन और हथियार दिखाई देता है उससे बचा जा सकता है लेकिन अदृश्य और अचानक प्रकट होने वाले हवाई खतरों से बचने के लिए इन टैंकों को अत्याधुनिक संचार प्रणाली तथा ड्रोन रोधी और अन्य खतरों से बचाव का कवच पहनाना होगा। सेना चाहती है कि ‘जोरावर’ उसके पास मौजूद सभी टैंकों का मिश्रण हो जो हल्का भले ही हो लेकिन मजबूती में उसका कोई सानी न हो और उसकी मारक क्षमता के सामने दुश्मन घुटने टिका दे। स्वदेशी टैंक पर जोर देने का एक कारण यह भी है कि यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध से उत्पन्न हालातों में इन देशों से टैंकों के कलपुर्जों तथा उपकरण की आपूर्ति प्रभावित हो रही है तो यदि हमारे पास स्वदेशी टैंक होंगे तो हमें इस तरह की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
जोरावर का नाम भारत के प्राचीन समय के सेनानायक जोरावर सिंह कहलुरिया के नाम पर रखा गया है जिन्होंने लद्दाख, तिब्बत , बाल्टिस्तान और स्कर्दू आदि को जीता था।
इसके अलावा दुनिया भर में विभिन्न अभियानों और हमारे सीमावर्ती क्षेत्रों में ड्रोन के बढते इस्तेमाल को देखते हुए भारत भी अपनी सेना को अत्याधुनिक ड्रोन हथियार प्रणाली से लैस करने की दिशा में बढ रहा है। सेना स्वार्म ड्रोन प्रणाली के महत्व और इसके इस्तेमाल को समझते हुए स्वदेशी कंपनियों से ड्रोन खरीद रही है। सभी सेनाओं को इस बात का भलीभांति अंदाजा लग गया है कि आज के दौर में ड्रोन के कारण उनकी ताकत कई गुणा बढ जाती है। भारतीय सेना भी इसी को ध्यान में रखकर ड्रोन प्रणाली पर विशेष जाेर दे रही है।