दून के चालीस देहदानियों ने लिया संकल्प, संस्था ने किया सम्मान – Polkhol

दून के चालीस देहदानियों ने लिया संकल्प, संस्था ने किया सम्मान

देहदानी मनुष्य की आत्मा का परम लोक में देवता भी स्वागत करने को रहते हैं लालायित 

देहरादून। दधीच देहदान समिति देहरादून उत्तराखण्ड द्वारा ऑफिसर्स क्लब यमुना कॉलोनी में दधीचि यज्ञ कार्यक्रम के तहत देहरादून शहर के 40 संकल्पित देहदनियो को बाबा हठ योगी, मां चंडी देवी मंदिर के महंत श्री रोहित गिरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय सेवा प्रमुख श्री धनीराम जी एवं एनाटॉमी डिपार्टमेंट एम्स ऋषिकेश के एचओडी डॉ विजेंद्र द्वारा एवं एम्स ऋषिकेश की नेत्र सर्जन श्रीमती नीति गुप्ता जी एवं दून राजकीय मेडिकल कॉलेज के एनो टॉमी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर महेंद्र कुमार पंत जी द्वारा उनके देह दान के प्रमाण पत्र व अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया ।

इस अवसर पर अपने संबोधन में समिति के महासचिव नीरज पांडे एडवोकेट द्वारा बताया गया कि आज की यह सभा बड़ी ही अलौकिक और दिव्य है क्योंकि आज के समय में निस्वार्थ भाव के साथ परोपकार की भावना से मानवता हित में कार्य करने हेतु अपनी व्यस्त जिंदगी से समय निकालना और इसके लिए अपने वास्तविक जीवन साथी अपने अपने शरीर का दान कर देना वास्तव में एक ऐसा निर्णय है जिसके लिए ना केवल मनुष्य अब तो निश्चित रूप से देवता भी ऐसे देहदानी मनुष्य की आत्मा का अपने परम लोक में खड़े होकर स्वागत करने को लालायित होंगे। हमारे समाज में देहदान को लेकर फैली भ्रांति के दुष्परिणाम स्वरूप हमारे देश में हर साल अंगदान की कमी से लगभग पांच लाख लोगों की असमय मृत्यु हो जाती है हमारे देश में प्रति दस लाख लोगों में महज 0.2 6% लोग ही अंग दान करते हैं जबकि अंगदान से किसी की जिंदगी की टूटती सांसे फिर से अपनी रफ्तार पकड़ सकती हैं।

मृत्यु के बाद हमारी आत्मा का जीवन साथी जो यह नाशवान शरीर है इसको तो मिट्टी में मिल जाना है क्योंकि यह शरीर क्षणभंगुर है किंतु हमारी आत्मा अजर अमर है हमारे शास्त्रों में यह कहा गया कि मनुष्य का तन प्राप्त करना अति दुर्लभ है और पूर्व जन्म के अच्छे कार्यों के फल स्वरुप हमें यह शरीर प्राप्त होता है इसी आधार पर गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथ में कहा गया कि आपका अगला जन्म किस योनि में होगा यह आपके पूर्व जन्म के कर्मों पर निर्भर है किसी भी शास्त्र या पुराण में यह नहीं कहा गया कि शरीर के दाह संस्कार से ही अगला जन्म प्राप्त होगा इस आधार पर निश्चित रूप से हम यह कह सकते हैं कि मानवता हेतु देह दान जैसे पुण्य पद कर्म के द्वारा दुनिया के सभी देह नियों को अगले जन्म में अलौकिक मानव शरीर अवश्य प्राप्त होगा उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति अंगदान कर सकता है जिसको लेकर किसी भी तरह की उम्र की बाध्यता नहीं है।

उन्होंने कहा कि हमारे दून में स्थित लगभग 6-7 मेडिकल कॉलेज भी इस समय अध्ययन हेतु मृत शरीर की समस्या का सामना कर रहे हैं ऐसे में दधीचि देह दान समिति का गठन मानव कल्याण हेतु देहदान अंगदान नेत्रदान को समाज में स्वीकार्यता दिलाने हेतु 27 फरवरी 2022 को किया गया। पिछले लगभग छह महीने में हमारे शहर के लगभग 100 से अधिक व्यक्तियों ने देहदान में रुचि दिखाते हुए समिति से संपर्क किया जिनमें से 40 व्यक्तियों के फॉर्म में अभी भरे गए हैं बाकी अनेक व्यक्ति अभी भी देहदान करने को इच्छुक है।

श्रीलंका अपनी आबादी का 60% कॉर्निया बाहर के देशों में दान स्वरूप देता है : डा. नीती गुप्ता 

कार्यक्रम में उपस्थित एम्स रिषीकेश की नेत्र सर्जन डॉ नीति गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि हमारी आंख में एक पारदर्शी परत होती है नेत्रदान में केवल वही बदली जाती है समाज में यह भ्रांति है कि नेत्रदान में नेत्र निकाल ली जाती हैं इस भ्रांति के दुष्परिणाम स्वरूप हमारे देश में प्रतिवर्ष तीस लाख वह लोग जो नेत्रहीन हो जाते हैं उनको नेत्र नहीं मिल पाते हैं। इसके विपरीत श्रीलंका जैसा छोटे देश में जिस की आबादी दिल्ली जितनी है वहां पर नेत्रदान के प्रति इतनी जागरुकता है कि वहां पर एक भी व्यक्ति नेत्रहीन नहीं है  अपनी आबादी का 60% कॉर्निया बाहर के देशों में दान स्वरूप देता है। यह बहुत ही चिंताजनक बात है कि नेत्र दान के संकल्पित व्यक्तियो में से केवल एक पर्सेंट व्यक्तियों का ही नेत्रदान हो पाता है क्योंकि अंध विश्वास के कारण नेत्र दानी के परिवार विवश होकर इस दान को संकोच के कारण सम्पन्न नही होने देते। एम्स ऋषिकेश पिछले 3 साल में लगभग 360 लोगों की आंखों को रोशनी दे चुका है यह सब संभव उन नेत्र दानियो के कारण हुआ है जो अपनी मृत्यु के बाद भी इस दुनिया को अपनी आंखों से देख रहे हैं।

चिकित्सा शिक्षा के विद्यार्थी को पहली बार एक मृत शरीर यह सिखाता है कि जीवन को कैसे बचाया जाए : डा. बिजेंद्र सिंह

एम्स ऋषिकेष के ही एनोटॉमी विभाग के विभागाध्यक्ष डाक्टर विजेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में देह दानिया के देहदान का महत्व यह कहते हुए बताया कि सभी मेडिकल कॉलेजों में एनाटॉमी विभाग के अंतर्गत जहां पर चिकित्सा शिक्षा के विद्यार्थी पहली बार अपनी क्लास में शिक्षा ग्रहण करने हेतु आते हैं वहां पर देहदानी के शरीर के पास यह लिखा होता है कि डॉक्टर बनाने के लिए एक मृत शरीर यह सिखाता है कि जीवन को कैसे बचाया जाए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हम लोग कोई भी दान अच्छी वस्तु का करते हैं उसी प्रकार जब हम इस शरीर का दान करने का निर्णय लेते हैं तो यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने इस शरीर को निरोगी व स्वस्थ रखें देह दान का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि इसके पश्चात देह दानी को इस बात का एहसास हो जाता है कि अब यह शरीर उसका नहीं रहा वह पूरे समाज के लिए इस शरीर का ट्रस्टी बन चुका है अब यह उसकी जिम्मेदारी बन जाती है कि वह ट्रस्ट प्रॉपर्टी को सुरक्षित तरीके से रखे।

मुख्य वक्ता के रूप में श्री धनीराम ने अपने संबोधन में कहा कि दान के अपने अलग ही लाभ होते हैं इस देहदान से पूरे मानव समाज को अलौकिक लाभ प्राप्त होता है जो कि मानवता हित में अत्यंत आवश्यक है। कौन सा दान कब हमारे काम आ जाए यह कोई नहीं जानता है इसलिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समाज हित मे शरीर के द्वारा अपना सर्वस्व समर्पित कर देना चाहिए।

देहदानी के संकल्प को पूरा कराने के लिए परिजन पूरे मनोयोग से कार्य करें : डा एम सी पंत

कार्यक्रम में दून मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ महेंद्र कुमार पंत ने बताया कि यह हम सब का कर्तव्य होना चाहिए कि हम प्रत्येक देह दानी से प्रेरणा प्राप्त करें और उसके देहदान के संकल्प को पूरा कराने के लिए पूरे मनोयोग से कार्य करें देह दान से बड़ा कोई दान नहीं है। एक देह दानी के शरीर से 10 से अधिक डॉक्टर मेडिकल शिक्षा प्राप्त करते हैं और उसके पश्चात अपने पूरे प्रैक्टिस के दौरान लाखों लोगों का भला करते हैं इस प्रकार एक देहदान अपनी मृत्यु के बाद लाखों लोगों को जीवन देने में सहायता प्रदान करता है।

अंतिम समय में अपने देह दान के द्वारा ही अगले जन्म में मानव शरीर प्राप्त कर सकता है : हठयोगी बाबा

इस अवसर पर हरिद्वार से पधारे पूज्नीय संत बाबा हठयोगी जी महाराज ने अपने अद्भुत संबोधन में देह दान के बारे में समाज में फैली भ्रांतियों को मिथक बताते हुए कहा कि साधु समाज अपने जीवित रहते ही अपना पिंड दान करके जंगल में निकल जाया करता था वहां पर उसके शव को जंगली जानवर अपने भोजन के रूप में उपयोग में लाते थे इस प्रकार साधु संत समाज में यही शिक्षा देते हैं कि केवल दाह संस्कार से ही अगला शरीर प्राप्त नहीं होता इसके लिए पुण्य कर्म करने बहुत आवश्यक है कोई भी ऐसा पापी इंसान जिसने जीवन भर पाप किया हो केवल अपने अंतिम समय में अपने देह दान के द्वारा ही अगले जन्म में मानव शरीर प्राप्त कर सकता है अन्यथा उसका अगला जन्म क्या होगा यह ब्रह्मा भी नहीं जानते। उन्होंने स्वयं के देहदान की घोषणा मानवता हित में इस अवसर पर करी। इस अवसर पर हरिद्वार से मां चंडी देवी मंदिर परमार्थ ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी महंत श्री रोहित गिरी जी ने भी अपने विचार रखे और संस्था को ₹31000 की आर्थिक मदद भी मानवता हित में दी।

अंत में समिति के कोषाध्यक्ष श्री कृष्ण कुमार अरोड़ा जी ने सभी आए हुए अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया तथा यह भी कहा कि देहरादून जिले का कोई भी व्यक्ति जो देहदान को इच्छुक हो वह समिति के किसी भी पदाधिकारी के फोन नंबर पर संपर्क करें इस संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकता है।
इस अवसर पर समिती के गठन के प्रेरक श्री विजय जुनेजा जी महासचिव नीरज पांडे एडवोकेट श्री कृष्ण कुमार अरोड़ा जी सुमित अधलखा प्रोफेसर अतुल गुप्ता जी गोपाल गर्ग जी संदीप गुप्ता एडवोकेट लक्ष्मी प्रकाश बहुगुणा गोपाल गर्ग श्री चंद्र कांत पांडे संजय भार्गव जी विशेष रूप से उपस्थित थे। उक्त कार्यक्रम यमुनाकालोनी स्थित आफीसर्स क्लब में हुए।

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