दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नये संसद भवन के राष्ट्र को लोकार्पण के मौके पर आजादी के समय 14 अगस्त 1947 के दिन सत्ता के हस्तांतरण की परंपरा को दोहराते हुए पवित्र ‘सेंगोल’ को स्वीकार करेंगे जिसे बाद में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट स्थापित किया जायेगा।
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी अनेक लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के समय प्राचीन भारतीय परंपराओं का निर्वहन करते हुए ब्रिटिश साम्राज्य से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में पवित्र सेंगोल को स्वीकार किया गया था। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने इस विशेष अवसर और परंपरा के लिए वायसराय लार्ड माउंटबेटन को भारत भेजा था। उन्होंंने कहा कि पंडित नेहरू ने अपने आवास पर लार्ड माउंटबेटन की मौजूदगी में तमिलनाडु के अधिनम से आये धार्मिक शिष्टमंडल से सेंगोल को स्वीकार किया था।
शाह ने कहा कि सेंगोल भारत की प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा से जुड़ा है और इसका संबंध आठवीं सदी के चोल साम्राज्य से है। सेंगोल शब्द तमिल भाषा के सेमई शब्द से बना है जिसका अर्थ नीति परायणता है। उन्होंंने कहा कि सेंगोल न्याय और नीति पर आधारित शासन के भाव से जुड़ा है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि आगामी रविवार को जब प्रधानमंत्री नये संसद भवन का उद्घाटन करेंगे तो तमिलनाडु के 20 अधिनम के अध्यक्ष श्री मोदी को यह सेंगोल प्रदान करेंगे। बाद में पवित्र सेंगोल को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट स्थापित किया जायेगा। उन्होंने कहा कि यह पवित्र सेंगोल न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था का प्रतीक है इसलिए इसकी जगह संग्रहालय के बजाय संसद भवन होनी चाहिए।
विपक्ष के नेताओं के इस मौके पर उपस्थित नहीं रहने से संबंधित सवाल पर शाह ने कहा कि सरकार ने सबसे विनती की है और सभी नेता अपनी भावना तथा विवेक के आधार पर निर्णय लेंगे। उन्होंने कहा कि इस मौके को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, राजनीति की अपनी जगह है और इस मौके को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए।
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होने बताया कि यह वही सेंगोल है जिसे पंडित नेहरू को प्रदान किया गया था और यह अब तक इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था।
शाह ने 75 वर्ष पुरानी इस ऐतिहासिक घटना के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर नये संसद भवन के उद्घाटन के समय एक ऐतिहासिक घटना को दोहराया जायेगा जिससे नये भारत के निर्माण की आधुनिक सोच देश की प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ेगी। उन्होंंने कहा कि सत्ता हस्तांतरण से पहले लार्ड माउंटबेटन ने पंडित नेहरू से इस मौके पर किये जाने वाले विशेष समारोह के बारे में पूछा तो पंडित नेहरू ने इस बारे में
भारत रत्न और महान स्वतंत्रता सेनानी तथा विचारक सी राजगोपालाचारी के साथ सलाह की। राजगोपालाचारी ने पंडित नेहरू को सत्ता के हस्तांतरण से संबंधित भारत की प्राचीन परंपरा सेंगोल के बारे में बताया था।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए पंडित नेहरू को ब्रिटिश साम्राज्य से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर पूर्ण विधि विधान से यह सेंगोल प्रदान किया गया था। उन्होंने कहा कि उस समय अंतर्राष्ट्रीय मीडिया तथा देश के मीडिया ने सेंगोल के बारे में विस्तार से समाचार प्रकाशित किये थे।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1947 के बाद यह सेंगोल ओझल हो गया तथा 1978 में दक्षिण के परमाचार्य ने अपने एक अनुयायी को संगेाल के बारे में जानकारी दी थी। इसके बाद से यह इलाहाबाद के संग्रहालय में था। उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इन सब बातों के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने इस बारे में विस्तार से अध्ययन तथा जांच कराने के बाद इस परंपरा को दोबारा जीवंत करने का निर्णय लिया।
शाह ने इस मौके पर सेंगोल से संबंधित एक वेबसाइट भी शुरू की जिसपर सेंगोल से संबंधित सभी जानकारी विस्तार से उपलब्ध है।