हल्द्वानी।उत्तराखंड में तराई पश्चिमी वन प्रभाग, रामनगर के बन्नाखेड़ा राजि (रेंज) अंतर्गत आरक्षित वन भूमि को कूटरचित दस्तावेजों से राजस्व भूमि में परिवर्तित किये जाने सम्बंधित प्रकरण में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में राज्य सरकार की ओर से अपील दायर करने में हुए विलम्ब के कारणों की जांच हेतु गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में नैनीताल व उधमसिंह नगर जिले के राजस्व विभाग को जिम्मेदार ठहराया है।
मुख्य वन संरक्षक (कार्ययोजना) संजीव चतुर्वेदी की अध्यक्षता में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में वर्ष 1995-1996 में यहां तैनात रहे तत्कालीन भूमि बंदोबस्त अधिकारी को अभिलेखों की कूट रचना कर नैनीताल जिले की कालाढूंगी तहसील के बंदरजूड़ा ग्राम स्थित आरक्षित वन भूमि को हरदेव सिंह व अन्य के नाम वर्ग 1 (क) श्रेणी की भूमिधरी घोषित करने का दोषी ठहराने के साथ ही उधमसिंह नगर व नैनीताल जिले के जिलाधिकारियों को बार-बार अनुरोध के बावजूद इस प्रकरण से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराने हेतु जिम्मेदार ठहराया है।
चतुर्वेदी ने सोमवार को यूनीवार्ता को बताया कि इस विषय में विभिन्न स्तरों पर वनाधिकारियों द्वारा आयुक्त कुमाऊँ मण्डल को विस्तृत पत्र लिखने व अनुस्मारक भेजने के पश्चात भी किसी प्रकार का कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ।
समिति का मानना है कि यह दस्तावेज इस मामले में प्रदेश सरकार के पक्ष को पुष्ट करने तथा सरकार के दावे को सिद्ध करने के लिए परम आवश्यक थे।
जांच रिपोर्ट के अनुसार,“उच्च न्यायालय में अपील दायर करने में हुए विलम्ब का सर्वप्रमुख कारण भी यही था।”
यही नहीं, समिति ने तत्कालीन बंदोबस्त अधिकारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 409, 467 व 471 सहित भारतीय वन अधिनियम 1927, वन संरक्षण अधिनियम 1980 तथा भ्रष्टाचार अधिनियम 1988 के तहत मामला दर्ज कराये जाने की भी संस्तुति की है। इसी प्रकार प्रश्नगत भूमि के एक भाग से उप खनिजों की निकासी एवं भण्डारण की अनुमति देने हेतु खनन विभाग तथा राजस्व विभाग के सम्बंधित अधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक षड्यंत्र तथा भारतीय वन अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम एवं भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराये जाने की भी संस्तुति की है।
समिति ने यह भी संस्तुति की है कि इस प्रकरण में बिना किसी विलम्ब के तत्काल आपराधिक/विभागिक कार्यवाही सुनिश्चित की जाये ताकि इस प्रकार के प्रकरणों की पुनरावृत्ति न हो सके तथा माननीय प्रधानमंत्री महोदय के भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टालरेंस तथा सुशासन के लक्ष्य को पूरा किया जा सके।
चतुर्वेदी ने बताया कि वर्ष दिसम्बर माह में गठित हुई जांच समिति में वन संरक्षक पश्चिमी वृत दीप चन्द्र आर्य व प्रभागीय वनाधिकारी तराई पश्चिमी वन प्रभाग प्रकाश चन्द्र आर्य भी शामिल थे।