दिल्ली। हरियाणा के मानेसर स्थित ‘डीएलएफ एक्सप्रेस ग्रीन्स’ सोसायटी को उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2018 में हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम (एचएसआईआईडीसी) को सौंप दिया था लेकिन करीब छह साल के बाद भी इस प्रोजेक्ट को कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं मिला है और एचएसआईआईडीसी के अधिकारी गैरकानूनी तरीके से खरीदारों से भारी ब्याज के रूप में पैसा वसूल करने की ‘जुगत’ में लगे हुए हैं।
डीएलएफ ग्रीन्स के मर्माहत खरीदारों ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से डीएलएफ के एमडी देवेन्द्र सिंह और चेयरमैन राजीव सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420,120बी और 384 के तहत प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करने और पैसा ‘वसूली’ के प्रयास तथा परियोजना को लेकर लापरवाही बरतने के आरोप में एचएसआईआईसीडी के संबद्ध अधिकारी के खिलाफ कानूनी नोटिस जारी करके पूछताछ करने का आग्रह किया है। उनका आरोप है कि वर्ष 2012 में फ्लैट मिलना था लेकिन आज तक रजिस्ट्री नहीं हुयी, सर्वाधिक लोगाें को पोजेशन नहीं मिला, करोड़ों रुपये के टाउन हाउस और इंडिपेंडेंट फ्लोर अधूरे हैं तथा वक्त के मार से जगह-जगह से दरक गये हैं जिससे भयावह दृश्य उपस्थित होता है। सोसायटी की चाहरदीवारी तक नहीं बनी।
‘एक्सप्रेस ग्रीन्स होम बायर्स एसोसिएशन’ की कोर कमेटी ने बुधवार को यहां जारी बयान में कहा कि एचएसआईआईडीसी के एस्टेट अधिकारी सुनिल पालिवाल का कहना है कि शीर्ष अदालत के आदेश के बाद यानी 2018 के बाद डीएलएफ ने बकाये की शेष राशि को लेकर जिन लोगों को भी फ्लैटों का पोजेशन दिया ,उसे वे नहीं मानेंगे और उस राशि के ऊपर छह साल का ब्याज लेंगे। यानी कि पोजेशन के समय जिन खरीदारों ने डीएलएफ को 5,78,196.87 दिये तो यह राशि ब्याज समेत 32,57,190 लाख बन रही है।
बयान में कहा गया,“ पालिवाल से यह पूछे जाने पर कि जब शीर्ष अदालत ने वर्ष 2018 में यह प्रोजेक्ट एचएसआईआईडीसी को दे दी थी , तब डीएलएफ ने खरीदारों को पोजेशन कैसे दिया? यह आपकी संपत्ति थी ,आपने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया? अब आप कह रहे हैं कि डीएलएफ ने गैरकानूनी रूप से यह काम किया है और आप खरीदारों द्वारा दी गयी राशि और उनके मकानों के पोजेशन को अवैध मानते हैं। इसका मतलब है कि डीएलएफ ने गैरकानूनी रुप से पोजेशन देने का कार्य किया जिसके बारे में आपको मामूल था। यह गंभीर मसला है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह संपत्ति आपको सौंपी थी और इसमें तीसरा व्यक्ति कैसे हस्तक्षेप कर सकता है? कोई आपकी संपत्ति पर अधिकार कर रहा है और आप मूकदर्शक बने बैठे हैं? क्या आपको तूरंत कानूनी कदम नहीं उठाना चाहिए था?”
कमेटी के सदस्यों ने कहा,“अगर डीएलएफ ने गैरकानूनी रूप से लोगों को पोजेशन दिया तो उसके डाइरेक्टर और चेयरमैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाना एचएसआईआईडीसी की जिम्मेदारी नहीं बनती है? इन सभी बातों का उनके पास बस एक ही जवाब था कि वे डीएलएफ के बीच में नहीं पड़ना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उनकी डीएफएफ से बात हुयी है और डीएलएफ वर्ष 2018 के बाद वाले पोजेशन की राशि लौटाने के लिए तैयार है और वह ग्राहकों को लौटा देगा।”
उन्होंने कहा,“ पालिवाल का यह जवाब स्वयं में विरोधाभाषी है। एक तरफ तो श्री पालिवाल ने कहा कि वह पैसे लौटाने के मामले में डीएलएफ से बात नहीं करेंगे क्योंकि उन पर आरोप लगेंगे कि उनकी सांठगांठ है उससे, और एक तरफ उन्होंने यह भी कहा कि उनकी उससे बातचीत हो गयी। वह खरीदारों को पैसा लैटा देगा। अब सवाल यहां पर यह आता है कि जब दोनों के बीच बात हो रही है तो यह ब्याज वाली बात कहां से आती है? यह मामला गड़बड़ है। इसकी उच्च स्तरीय जांच सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को आगे आना होगा। इस अधिकारी ने यह भी कहा कि इस राशि पर उनका कार्यालय 18 प्रतिशत के दर पर ब्याज लेगा और वे अपनी लीगल टीम से कुछ राशि वेवऑफ करने की दिशा में काम करवा रहे हैं। इसका मतलब सब काम यह कार्यालय अपनी शर्तों पर काम कर रहा है? उसके पास यह अधिकार कहां से आया?”
भारतीय सेना से अवकाश प्राप्त एवं इस सोसायटी में फ्लैट के मालिक एक कर्नल(अवकाश प्राप्त) ने कहा,“ वर्ष 2018 के बाद डीएलएफ ने जिन लोगों को बुला-बुलकार पोजेशन दिया था ,उस दौरान उसका यही कहना था कि उसके पास शीर्ष अदालत का स्पेशल ‘वींडे’ है जिसके तहत वह पोजेशन दे सकता है। उसने उस दौरान गैस पाइप लाइन के लिए 18 हजार रुपये और अन्य ब्याज भी लिये थे। अब हालत यह है कि उस गैस पाइप लाइन का अता-पता नहीं है। हमने डीएलएफ को अपने फ्लैट के पूरे पैसे दिये और डीएलएफ ने हमें चाबी सौंपी। लेकिन आज एचएसआईआईडीसी का कहना है कि वह हम से ब्याज के साथ पैसे लेगा। किस तरह का ब्याज ? यह सब काम ही उल्टा हो रहा है। वर्ष 2012 में फ्लैट मिलना था और आज तक रजिस्ट्री नहीं हुयी, कई लोगाें को पोजिशन नहीं मिला, सभी टाउन हाउस और इंडिपेंडेंट फ्लोर अधूरे हैं ,सोसायटी की चाहरदीवारी तक नहीं बनी। हमें ब्याज मिलना चाहिए अथवा एचएसआईआईडीसी को? जहां तक 2018 के बाद डीएलएफ की ओर से पोजेशन देने की बात गैरकानूनी है तो उचित और कठोर कार्रवाई अनिवार्य है। यह पूरा मामला अवैध वसूली और प्रोजेक्ट में लगातार विलंब भष्ट्राचार की पराकाष्ठा है।”
कर्नल ने कहा,“ खरीदारों का आरोप है कि इस मामले में डीएलएफ और एचएसआईआईडीसी की मिलीभगत है। पहली बात,अगर वर्ष 2018 के बाद खरीदारों से पैसा लेकर फ्लैटों का पोजेशन देना गलत और गैरकानूनी था तो डीएलएफ ने ऐसा काम क्यों किया? साथ ही , इसके बारे में एचएसआईआईडीसी ने पहले आवाज क्यों नहीं उठायी और क्यों नहीं कहा कि डीएलएफ उसकी सम्पत्ति में हाथ कैसे लगा सकता है? क्या इससे यह साबित नहीं हो रहा है दोनों की मिलीभगत है और पहले से परेशान खरीदारों को भारी स्तर पर लूटने और उन्हें आहत करने की चाल नहीं है?”
संयुक्त राष्ट्र में वरिष्ठ अधिकारी एवं फ्लैट मालिक उषा मिश्रा ने कहा,“देवाशीष सिन्हा बनाम आरएनआर एंटरप्राइजेज के मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार (2020 की सिविल अपील संख्या 3343) फ्लैट मालिक अपार्टमेंट का कब्जा लेकर डेवलपर द्वारा वादा की गई सुविधाओं का दावा करने का अधिकार नहीं खोते हैं। इसलिए एचएसआईआईडीसी को परियोजना के पूरा होने तक फ्लैट खरीदारों के हित में काम करना, मेंटेनेंस का काम देखना और उन्हें ब्याज देने की जरूरत है। डीएलएफ ग्रींस के खरीदार पिछले कई साल से परेशान हैं और उन्हें लूटने का नया तरीका अपनाया जा रहा है। अभी तक कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं मिला है और खरीदारों को कई तरह से परेशान किया जा रहा है। यह प्रोजेक्ट कई विवादों में रहा है और कई प्रकार से खरीदारों को परेशान किया जा रहा है।”
मिश्रा ने कहा,“पूरी प्रोजेक्ट की फोरेंसिक डिटेल ऑडिट और क्वालिटी ऑडिट की भी जरूरत है। जब तक प्रोजेक्ट का कंप्लीशन सर्टिफेट नहीं मिलता है तब तक सभी फ्लैट मालिकों को उनके द्वारा इन्वेस्ट किए गए पैसे पर ब्याज जिम्मेदार ऑफिसर की सैलरी/ पीएफ / पेंशन से काटकर दिया जाए।”
जानेमाने सामाजसेवी और इस प्रोजेक्ट में एक फ्लैट के मालिक संजय कुमार गोयल ने कहा,“ डीएलएफ ने 2008 में एक्सप्रेस ग्रींस के नाम से यह प्रोजेक्ट लॉन्च किया। पेपर पर 2014 में ओसी दिखा दिया और अपने कर्मचारियों (जिन्हें इस प्रोजेक्ट में फ्लैट दिये थे) के द्वारा रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) बना लिया। वर्ष 2015 में कुछ लोगो की रजिस्ट्री भी करवा दी गयी बिना प्रोजेक्ट पूरा हुए। वर्ष 2017 में आरडब्ल्यूए के चुनाव होने थे लेकिन बिना चुनाव के 2019 से जबरदस्ती मेंटेनेंस के नाम पर वसूली शुरू कर दी गयी जिसका विरोध करने पर लोगो को तंग किया गया यहां तक कि जिनको फ्लैट नही मिला उनसे भी मेंटेनेंस वसूल रहे हैं। वसूली की राशि 21 करोड़ उनसे वापस ली जानी चाहिए।”
गोयल ने कहा,“शीर्ष अदालत ने 2018 में इस प्रोजेक्ट को एचएसआईआईडीसी को हैंडओवर कर दिया लेकिन एचएसआईआईडीसी ने अभी तक प्रोजेक्ट पूरा नहीं किया।उन्होंने कहा,“सरकार से निवेदन है कि जब तक प्रोजेक्ट को कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं मिलता है, इस पीरियड में रिटायर होने वाले सभी कर्मचारी की पेंशन और पीएफ को रोक दिया जाए। ताकी यह एक मिसाल बने तथा सरकारी कर्मचारी को काम करने की आदत पड़े एवं खरीदारों के साथ किसी तरह की धोखाधड़ी नहीं हो व उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान नहीं किया जाये। प्रोजेक्ट एएसआईआईडीसी का है ,मेंटेनेंस का काम करना भी उसकी जिम्मेदारी है। वे अपनी जिम्मेदारी से हटकर आरडब्ल्यूए की मार्फत काम करवाकर पैसा कमा रहे हैं और कह रहे है कब्जा डीएलएफ ने दे दिया। अगर उसको इस प्रोजेक्ट पर कोई अधिकार नहीं है तो सारी जमीन और फ्लैट आरडब्ल्यूए को ट्रान्सफर करे।”
एक अन्य फ्लैट मालिक नरेन्द्र खंडेवाल ने कहा,“ एक्चुअल पोजेशन 2018 के बाद दिया, लेकिन कागजों में 2014 से दिखा रहे है।अगर किसी को सच में पोजेशन दिया हो तो इनसे बोला जाए की उस पीरियड के फ्लैटों के बिजली के बिल दिखाया जाये। वर्ष 2018 से 2022 तक डीएलएफ ने बिना अथॉरिटी के लोगो से पैसे लेकर आरडब्ल्यूए ने फ्लैट हैंडओवर किए और अब एचएसआईआईडीसी उनको मान्यता नहीं दे रहा है तथा छह गुना पैसा मांग रहा है।”
यतींद्र दहिया,आरती महाजन,तेजिंदर सिंह,गगन दीप भाटिया,बीना त्रेहन,संदीप डबास,मीनू माथुर,ज्योती शर्मा समेत सोसायटी के सैकड़ों फ्लैट मालिकों में डीएलएफ और एचएसआईआईडीसी के अधिकारियों के खिलाफ रोष व्यक्त करते हुए राज्य सरकार से राहत प्रदान करने के लिए तत्काल कदम उठाये जाने की गुहार लगायी है।