सभी राजनीतिक दलों का मकसद 2024 लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना – Polkhol

सभी राजनीतिक दलों का मकसद 2024 लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना

नई दिल्ली, दिल्ली और बेंगलुरु में आयोजित एनडीए व विपक्षी दलों की बैठकों के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि दोनों खेमों ने लोकसभा चुनावों को लेकर अपना दमखम नहीं दिखाया। विपक्षी दलों की दो दिनों की बैठक के बाद अब एनडीए ने भी अपना कुनबा बड़ा कर लिया है। इन सब में दोनों खेमों का मकसद स्पष्ट है। सभी राजनीतिक दलों का मकसद 2024 लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना है।

इसी को लेकर दिल्ली और बेंगलुरु में रणनीति तय की गई है। दोनों खेमों की तरफ से दिल्ली और बेंगलुरु में 60 से ज्यादा राजनीतिक दलों ने शिरकत की। लेकिन कुछ ऐसे राजनीतिक दल भी हैं, जो इन दोनों बैठकों में शामिल नहीं हुए। इनमें करीब 9 बड़े राजनीतिक दल हैं, जो 2024 की लड़ाई का रुख मोड़ सकते हैं

दोनों खेमों की बैठकों में ये 9 दल नहीं हुए शामिल

जनता दल (सेक्युलर) JD(s) – अनुमान है कि जेडी (एस) 2023 में हुए चुनाव में हारने के बाद आगे चलकर एनडीए में शामिल हो सकती है। 2006 में जेडीएस एनडीए सरकार में शामिल थी। हालांकि, मंगलवार को दिल्ली में हुई एनडीए की बैठक में ये शामिल नहीं हुए थी।

शिरोमणि अकाली दल (SAD) – मंगलवार को शिअद दोनों खेमों की बैठकों में शामिल नहीं हुई थी। माना जा रहा है कि शिअद एनडीए में ही शामिल हो सकती है। इसके पीछे बड़ी वजह पंजाब की राजनीति है।

बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) – मायावती की पार्टी बसपा को लेकर भी अनुमान है कि एनडीए में शामिल हो सकती है। क्योंकि, कुछ समय से बसपा लगातार कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों को घेर रही है। फिलहाल, औपचारिक रूप से अभी कोई संकेत नहीं मिला है। अभी हालिया स्थिति यही है कि मायावती की पार्टी दोनों खेमों की बैठकों का हिस्सा नहीं बनी है।

बीजू जनता दल (BJD) – ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजद को लेकर खबरें हैं कि नवीन पटनायक ने विपक्षी दलों की बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है। बीजद की तरफ से कहा गया है कि हम संसद और बाहर के मुद्दों पर समर्थन करते हैं।

भारत राष्ट्र समिति (BRS) – दक्षिण में तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव विपक्षी दलों की बैठकों में शामिल नहीं हुए। इसके पीछे वजह ये है कि बीजेपी लगातार दक्षिण की राजनीति में अपना दमखम दिखा रही है। जिसको बीआरएस भविष्य को लेकर विकल्प मान रही है। विपक्षी दलों की बैठक में शामिल नहीं होने के पीछे एक वजह और भी है। दरअसल, तेलंगाना में बीआरएस कांग्रेस की धुर विरोधी है।

YSRCP (वाईएसआरसीपी) – आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी की पार्टी ‘युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी’ भी दोनों खेमों की बठकों में शामिल नहीं हुई। पार्टी की तरफ से बताया जा रहा है कि उन्हें किसी भी ओर से बैठक में शामिल होने का न्योता नहीं मिला था।

इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) – आईएनएलडी हरियाणा से दो बार एनडीए सरकार की हिस्सा रह चुकी है। लेकिन, इस बार आईएनएलडी कांग्रेस-बीजेपी के खिलाफ तीसरा मोर्चा तैयार करने में जुटी है। इसलिए वो दोनों बैठकों में शामिल नहीं हुई।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) – असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम किसी भी बैठक का हिस्सा नहीं बनी। इस पार्टी से 7 विधायक और लोकसभा में 1 सांसद असदुद्दीन ओवैसी खुद हैं।

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIDUF) – एआईडीयूएफ हमेशा से बीजेपी की नीतियों की विरोधी रही है। ये पार्टी असम में बड़े स्तर पर मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन, ये पार्टी विपक्षी दलों की बैठक में भी शामिल नहीं हुई है।

बिहार से 4 सियासी बड़े दल NDA में शामिल

अगर हम दिल्ली की बैठक की बात करें तो एनडीए ने बिहार से चार सियासी दलों को आमंत्रित किया था। जिसमें लोजपा से चिराग पासवान, ‘हम’ पार्टी से जीतन राम मांझी, राष्ट्रीय लोक जनता दल से उपेंद्र कुशवाहा जैसे दल शामिल हैं। हालांकि, एनडीए में चिराग पासवान की पार्टी के शामिल होने के बाद उनके चाचा पशुपति कुमार पारस का अगला कदम क्या होगा? ये तो आने वाला समय ही तय करेगा। कुल मिलाकर इस बैठक को बिहार के सियासी नजरिए से भी काफी अहम माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो बिहार में जब से राजनीतिक समीकरण बदला है, एनडीए और विपक्ष दोनों खुद को मजबूत करने में जुटा है।

दक्षिण की राजनीति पर BJP की नजर

दिल्ली में एनडीए की हुई बैठक से एक बात और स्पष्ट हुई है। बीजेपी की नजर इस बार दक्षिण भारत पर टिकी है। लोकसभा चुनावों को लेकर बीजेपी किसी भी कीमत पर दक्षिण भारत की राजनीति में सेंधमारी करने की कोशिश में जुटी है। बीजेपी एआईएडीएमके, तमिल मनीला कांग्रेस, केरल कांग्रेस (थॉमस) और भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन से दक्षिण भारत में संभावनाएं तलाश रही है, जहां वो किसी भी राज्य की सत्ता में नहीं है।

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