उद्यान घोटाला:उत्तराखंड सरकार पर अभी लटकी है सीबीआई जांच की तलवार – Polkhol

उद्यान घोटाला:उत्तराखंड सरकार पर अभी लटकी है सीबीआई जांच की तलवार

नैनीताल। उद्यान विभाग में हुए करोड़ों रूपये के कथित घोटाले के मामले में उत्तराखंड सरकार पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच की तलवार अभी लटकी हुई है।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने विशेष अन्वेषण दल (एसआईटी) को जांच की प्रगति परखने के लिये दो सप्ताह की मोहलत दी है। पीठ ने जांच की प्रगति रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में दो सप्ताह के अदंर अदालत में सौंपने को कहा है।

साथ ही अदालत स्पष्ट रूप से कहा कि यदि अदालत एसआईटी की जांच से संतुष्ट नहीं हुई तो मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिये जा सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ में हल्द्वानी निवासी दीपक करगेती और अन्य की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई। मामले की सीबीआई जांच को लेकर दायर जनहित याचिका के खिलाफ में उच्च न्यायालय के नामी गिरामी अधिवक्ता पैरवी के लिये एकजुट नजर आये।

इससे अदांजा लगाया जा सकता है कि वित्तीय अनियमितता से जुड़ा यह मामला कितना अहम है। राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर की ओर से अदालत में पैरवी करते हुए कहा गया कि सरकार ने प्रकरण की जांच के लिये पुलिस महानिरीक्षक (सीआईडी) की अगुवाई में विगत 25 जुलाई को एक पांच सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया है।

कमेटी को 15 दिन में प्रगति आख्या सौंपने को कहा गया है।  बाबुलकर ने उच्चतम न्यायालय का हवाला देते हुए कहा कि सीबीआई जांच के आदेश दुर्लभतम मामलों में ही दी जा सकती है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है और इसलिये एसआईटी जांच पर प्रश्न चिन्ह लगाना उचित नहीं है।

दूसरी ओर उद्यान विभाग के निलंबित निदेशक हरमिंदर सिंह बवेजा की ओर से एसआईटी जांच की वकालत की गयी। अंत में अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एसआईटी जांच की प्रगति रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में अदालत में सौंपे और उसके पश्चात आगे की जांच पर निर्णय लिया जायेगा।

अदालत ने याचिकाकर्ता की मांग पर जांच से जुड़े सभी दस्तावेजों की हाईकोर्ट के महापंजीयक (रजिस्ट्रार) की ओर से गठित कमेटी की देखरेख में डिजिटलाइजेशन करने के भी निर्देश सरकार को दिये हैं।

गौरतलब है कि दायर अलग अलग याचिकाओं में नर्सरी और पौधा रोपण के नाम पर उद्यान विभाग में भारी गड़बड़ी के आरोप लगाये गये हैं। यह भी आरोप है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद निजी नर्सरियों को करोड़ों का भुगतान कर दिया गया।

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