नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में उत्तराखंड नर्सिंग एवं मिडवाइब्स काउंसिल को भारतीय नर्सिंग परिषद (आईएनसी) के मानकों के विपरीत बीएससी नर्सिंग पाठ्यक्रम पास छात्रा का पंजीकरण करने के आदेश जारी किये हैं।
संभवतः यह उत्तराखंड का ऐसा पहला मामला है, जिसमें वांछित योग्यता पूरी न करने के बावजूद अदालत ने उसका पंजीकरण करने के आदेश दिये हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी की पीठ ने विगत 01 अगस्त को जारी किये थे, लेकिन आदेश की प्रति आज उपलब्ध हुई।
दरअसल नैनीताल के ज्योलिकोट स्थित नैंसी कॉलेज ऑफ नर्सिंग से चार साल की बीएससी नर्सिंग की डिग्री हासिल करने वाली छात्रा पूनम अल्मिया ने अपनी याचिका में कहा कि उत्तराखंड नर्सिंग एंड मिडवाइब्स काउंसिल ने उसका पंजीकरण करने से इनकार कर दिया है, जबकि उसके पास हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तराखंड मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी का प्रमाण पत्र मौजूद है।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में दस्तावेज भी पेश किये गये। इस मामले में नैंसी कॉलेज और हेमवती नंदन बहुगुणा विवि के साथ ही उत्तराखंड नर्सिंग काउंसिल की ओर से भी अपना पक्ष रखा गया। उत्तराखंड नर्सिंग काउंसिल की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के पास भारतीय नर्सिंग परिषद की ओर से निर्धारित योग्यता नहीं है।
बीएससी नर्सिंग के चार साल के पाठ्यक्रम के लिये 12वीं कक्षा में 45 प्रतिशत अंक के साथ ही भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान विषय होने अनिवार्य हैं। याचिकाकर्ता 12वीं कक्षा में रसायन विज्ञान विषय में अनुत्तीर्ण है और निर्धारित 45 प्रतिशत अंकों की योग्यता भी नहीं हैं।
नैंसी कॉलेज की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता की ओर से प्रवेश के दौरान इस तथ्य को छिपाया गया कि वह रसायन विज्ञान विषय में अनुत्तीर्ण है। याचिकाकर्ता की ओर से काउंसिलिंग फार्म में पूरी जानकारी नहीं दी गयी। विवि की ओर से भी इसके लिये याचिकाकर्ता पर ऊंगली उठायी गयी।
वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उसने कोई तथ्य नहीं छिपाये हैं। आवेदन पत्र के साथ सभी दस्तावेज दिये। अधिवक्ता आदित्य प्रताप सिंह ने कहा कि पांच साल अध्ययन के बाद याचिकाकर्ता को पाठ्यक्रम से वंचित किया जाना गलत है। उन्होंने याचिकाकर्ता के भविष्य का भी हवाला दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से इस मामले में आभा गर्ग एवं अन्य बनाम अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) मामले का हवाला भी दिया गया। अंत में अदालत ने माना कि यह कॉलेज की गलती है। याचिकाकर्ता की ओर से सभी दस्तावेज जमा किये गये और अंकों का खुलासा भी किया गया। कोई जाली दस्तावेज भी नहीं दिये। अदालत ने इस तथ्य को भी खारिज कर दिया कि प्रवेश के दौरान काउंसिलिंग फार्म में पूरी जानकारी नहीं दी गयी। अदालत ने इसके लिये कॉलेज की गलती करार दी। अदालत ने कहा कि इस पाठ्यक्रम के लिये याचिकाकर्ता ने अपने जीवन के चार साल खपा दिये और याचिकाकर्ता का पंजीकरण नहीं होना उसके साथ गंभीर अन्याय के समान होगा। अंत में अदालत ने उत्तराखंड नर्सिंग काउंसिल को याचिकाकर्ता का पंजीकरण करने के निर्देश दे दिये।