नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने देश के प्रसिद्ध कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में टाइगर सफारी के नाम पर पेड़ों का पातन और अवैध निर्माण के पूरे प्रकरण में शुक्रवार को निर्णय सुरक्षित रख लिया है। अदालत को यह भी तय करना है कि इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के सुपुर्द की जाये या नहीं।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में देहरादून निवासी अनु पंत की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
सरकार की ओर से आज उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता अदालत में बहस के लिये वर्चुअल पेश हुए। उन्होंने कहा कि सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) की ओर से इस मामले की जांच की जा रही है। विजिलेंस जांच पूरी होने के बाद अदालत निर्णय ले सकती है।
दूसरी ओर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने अदालत को विभिन्न जांचों का हवाला देते हुए कहा कि पूरे प्रकरण में गड़बड़ी की आशंका जताई गयी है लेकिन सरकार की ओर से दोषियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा रही है।
याचिकाकर्ता की ओर से विजिलेंस जांच पर सवाल उठाये गये और कहा गया कि राजनीतिक प्रभाव के चलते विजिलेंस जांच प्रभावित हो सकती है। अंत में अदालत ने पूरे प्रकरण में निर्णय सुरक्षित रख लिया।
याचिकाकर्ता की ओर से वर्ष 2021 में याचिका दायर कर कहा गया कि सीटीआर में टाइगर सफारी के नाम पर बड़ी संख्या में अवैध निर्माण हुआ है। इसके लिये 6000 पेड़ों का अवैध रूप से पातन किया गया है। शासन और उच्चाधिकारियों की शह पर अवैध निर्माण किया गया है। टाइगर सफारी के लिये केन्द्र सरकार की अनुमति नहीं ली गयी है और नियमों को ताक पर रख कर निर्माण किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि केन्द्रीय अधिकार प्राप्त कमेटी (सेंट्रल एमपावर्ड कमेटी), राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और राज्य के आडिटर जनरल की रिपोर्ट में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत को भी दोषी माना गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया कि एक जनरेटर सेट तत्कालीन वन मंत्री के सुपुत्र के नाम से देहरादून में संचालित दून इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस में भी स्थापित किया गया है।
वन मंत्री के निजी स्टाफ को सीटीआर के मद से लगभग 16 लाख रुपये वेतन के रूप में भुगतान किया गया। यही नहीं कोटद्वार की एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) को भी दस लाख रुपये का अवैध रूप से भुगतान किया गया है।