सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, भूमि खरीद घोटाला प्रकरण-3 : वित्त एवं शहरी विकास मंत्री के निर्देशों को धत्ता बताते और ठेंगा दिखाते ये घोटालेबाज! – Polkhol

सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, भूमि खरीद घोटाला प्रकरण-3 : वित्त एवं शहरी विकास मंत्री के निर्देशों को धत्ता बताते और ठेंगा दिखाते ये घोटालेबाज!

तो फिर क्या रिषीकेश में गंगा किनारे और दौडवाला बड़कली में यूं ही लगा दिया एसटीपी?
नहीं बाज आ रहे नमामि गंगे की कार्यदायी एजेन्सी पेय जल निगम के ये ढीठ अधिकारी!
चार बीघा सरकारी जमीन को मुक्त करा एसटीपी को देने और जन-धन के करोड़ों की बचत से क्यों कतरा रही हैं कड़क जिला अधिकारी?
भूमि चयन समिति के अधिकारी बार-बार कर रहे गुमराह या फिर कोई गड़बड़झाला?
क्या डबल इंजन की धामी सरकार के पास कोई और निष्ठावान एजेन्सी नहीं है एसटीपी लगाने हेतु सक्षम?
देहारादून में ही आखिर ये दो-दो मापदंड क्यों?
पेयजल निगम में व्याप्त गंदगी दूर कौन करेगा?
इनकी छोड़ क्यों रहे और उनकी खरीद क्यों रहे..?
( पोलखोल तहलका ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता की पड़ताल हो रहे नित नए खुलासे)
देहरादून। भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज जिस तरह से लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी योजना को अपने निजी स्वार्थ और काली कमाई के चक्कर में पलीता लगाने में तन्मयता से लगे हुए ऐन-केन-प्रकरेण सोलह दूनी आठ का पहाड़ा डीएम को व शासन में बैठे उच्चाधिकारियों को पढ़ा कर गुमराह करने पर तुले हुए हैं काश उतनी ही मेहनत और लगन,  ईमानदारी और निष्ठा व दयानतदारी से यदि सपेरा बस्ती, मोथरोवाला में 15 एम.एल.डी. के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए कार्यदाई एजेन्सी उत्तराखंड पेयजल निगम दिखाती तो शायद अब तक उक्त ट्रीटमेंट प्लांट चालू होने वाला होता, परंतु यहां इन तथाकथित घोटालेबाजों और भ्रष्टाचार के गले गले तक डूब चुके अधिकारियों को इसकी परवाह कहां? इनके आगे डीएम का कड़कपन और कैबिनेट मंत्री प्रेम चन्द अग्रवाल के निर्देश ठेंगे पर तो हैं ही साथ ही महा निदेशक, राष्ट्रीय गंगा मिशन के आदेशों को भी धत्ता बताने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई पड़ रही है तभी तो ये प्लांट हेतु बनी योजना के विपरीत अपने चहेते और खासमखास किसी पूर्व दर्जाधारी किसी कोठारी की अनुपयुक्त व अनुचित एवं अपर्याप्त भूमि को योग्य बताकर पौ बारह करने पर तुले हुए उल्टा पहाड़ा पढ़ाने पर बार बार तुले हुए हैं।
     ज्ञात हो कि विगत 6 अक्टूबर और तत्पश्चात 27 अक्टूबर को जनहित में हमारे द्वारा 76 करोड़ की लागत से बनने वाले सपेरा बस्ती, मोथरोवाला सीवर ट्रीटमेंट प्लांट परियोजनामें उक्त घोटालेबाज और अपनाई जा रही कार्यप्रणाली का समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किया जा चुका है जिस पर केन्द्र सरकार के महानिदेशक, राष्ट्रीय गंगा मिशन जी अशोक कुमार एवं उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री प्रेम चन्द अग्रवाल के द्वारा संज्ञान लेते हुए डीएम देहरादून व पेयजल निगम के अधिकारियों को पारदर्शिता और ईमानदारी से समयबद्धता के साथ उचित कार्य करने के कड़े निर्देश भी दिए जा चुके हैं! परंतु ढाक के वहीं तीन पात! क्योंकि इन्हें न कानून का डर और ना ही चिन्ता जन-धन की बर्बादी की!
     मजेदार बात यहां यह भी है कि जो जिलाधिकारी जब-तब दम भरते हुए दावा करती है कि सरकारी जमीनें कब्जा मुक्त हर हाल में कराई जायेंगी, परंतु यहां तो एक पंथ दो काज वाली कहावत जो सही साबित हो सकती थी और एक प्राईवेट स्कूल के अवैध कब्जे में लगभग चार बीघा सरकारी जमीन भी निर्मुक्त होती और एसटीपी में भूमि की अनावश्यक खरीद में व्यय होने वाला चार पांच करोड़ का जन-धन बच जाता? और शेष वांछित भूमि वह क्रय कर ली जाती जो उपयुक्त होती किन्तु पेयजल निगम के इन स्वार्थी व पहले से ही हो चुकी सौदेबाजी व एडवांस के साथ कमेटमेट के आगे सारे नियम कानून इनके ठेंगे पर दिखाई पड़ रहे हैं।
      देखने लायक तथ्य यहां यह भी है कि जो जो कमियां और खामियां ये पेयजल निगम के तीतर अधिकारी इस मोथरोवाला प्लांट में ढींगा करके वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह कर, स्वार्थवश पलटवाना चाह रहे हैं और कह रहे हैं कि वह नदी के किनारे है और उसमें पानी का तल बहुत नजदीक है जबकि जो चहेते की भूमि है वह भी उसी के पास है तथा अपर्याप्त है और आवासीय मकानों से घिरी हुई व स्कूल के क्लासरूम से लगी हुई है और एक पार्ट में न होकर सड़क के इधर उधर स्थित है, प्रोजेक्ट को अनुसार काफी कम है। यही नहीं उस भूमि में आऊटफाल और इनफाल के लिए भी व्यवस्था नहीं है। जबकि पहले से चयनित की जा चुकी एक और निजी व्यक्ति जयसवाल की भूमि पर्याप्त और हर दृष्टिकोण से उपयुक्त थी अगर वहां कुछ उचित नहीं था तो वह बताया जा रहा है कि सौदेबाजी और काली कमाई के खेल का ना होना? निवर्तमान एसडीएम (सदर) व ज्वांइट मजिस्ट्रेट आईएएस नंदन कुमार ने स्थलीय निरीक्षण के समय पेयजल निगम की अधिशासी अभियंता मैडम और राजस्व उपनिरीक्षक को अवैध कब्जे को वाली सरकारी जमीन को चिन्हित कर एसटीपी हेतु उचित बता प्रस्ताव बनाने को कहा था? कहाँ खो गयी वोह रिपोर्ट या फिर इस भूमि चयन समिति जिसकी अध्यक्छा जिलाअधिकारी स्वयम, भी सवालिया निशानों में हैं?
    ज्ञात हो कि उक्त परियोजना 76 करोड़ की लागत से बनने वाले सपेरा बस्ती, मोथरोवाला सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की ताकि गन्दगी साफ हो किन्तु यहां तो शुरुआत में भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों ने इस परियोजना को जकड़ लिया है। नही तो वह कौन सी बजह हैं जो सरकारी धन को बचाने में और परियोजना को शीघ्र लगाने में आड़े आ रही हो? क्या भारत  सरकार के राष्ट्रीय गंगा मिशन की इस योजना में उत्तराखंड पेयजल निगम को यह अधिकार है कि वह 6000 बर्ग मीटर में लगने बाली परियोजना को 5300 बर्ग मीटर भूमि में अपनी मर्जी से स्वार्थ वश परिवर्तन और परिबर्धन कर दे?

बताना यहां यह भी उचित होगा कि…

इनकी छोड़ क्यों रहे और उनकी खरीद क्यों रहे..? 
इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि दर्जाधारी रहने का पुराना रुतबा और चांदी का जूता वाली कहावत भी तो यहां चरितार्थ हो रही तभी तो भूमि चयन समिति अनुपयुक्त एवं अपर्याप्त एवं अनुचित भूमि को क्रय करने के लिए ताना-बाना बार-बार बुनकर सभी को गुमराह कर रहैं और गलत जानकारी मुहैया कराकर सबसे पहले प्रस्तावित भूमि को ठुकरा रहे हैं जिसमें ऐसी ऐसी दलीलें दे रहे हैं जो किसी के भी गले उतरने वाली नहीं है!
       उल्लेखनीय है कि इस कार्यप्रणाली से जहां डबल इंजन वाली प्रदेश की धामी सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की परियोजना को समय पर गुणवत्ता के साथ पूरी होने में ग्रहण लग रहा हैं वहीं ये अधिकारी यह भूल रहे हैं कि गंगा मिशन के तहत रिषीकेश में लगाया गया गंगा किनारे सीवर ट्रीटमेंट प्लांट और देहरादून में इसी मोथरोवाला प्रस्तावित प्लांट के निकट दौडवाला बड़कली में लगाया गया प्लांट क्या ग़लत हैं उनमें क्या कोई अनदेखी व अनियमिततायें हुई हैं? क्या ये दोनों प्लांट इस प्रकार सरकार को कटघरे में अनावश्यक खड़ा करके विवाद उत्पन्न नहीं कर रहे हैं?
     यहां यह भी उल्लेख करना उचित होगा कि शासन में बैठे आला अधिकारियों ने भी इन घोटालेबाजों के आगे घुटने टेक रखें हैं और वे यह कह कर पल्ला झाड़ ईमानदार बने रहना चाहते हैं कि भूमि चयन और क्रय करके दिलाने का काम डीएम दून और कार्यदाई ऐजेन्सी पेयजल निगम का है उनका नहीं! अब यहां प्रशन यह नहीं उठता कि क्या माले मुफ्त दिले वेरहम बनने से परियोजना प्रभावित नहीं होगी? क्या इस जिले और प्रदेश में यही एक मात्र पेयजल निगम ही बचा है?
      देखने योग्य होगा कि क्या धामी सरकार का अवैध अतिक्रमण से जमीनें मुक्त कराने का अभियान यहां इस लगभग चार बीघा जमीन के सदुपयोग में  खरा उतरती है या नहीं?
यह भी देखने लायक होगा कि राष्ट्रीय गंगा मिशन में सफाई और स्वच्छता हेतु लगाया जाने वाले इस सीवर ट्रीटमेंट प्लांट परियोजना में भ्रष्टाचार और काली कमाई का गड़बड़झाले की भी सफाई होगी या फिर यूं ही…?

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