एसटीपी प्लांट-भूमि खरीद घोटाला प्रकरण- 4
सीवर से भी ज्यादा गंदा खेल, खेल रहे ये इंजीनियर और वैज्ञानिक पर होगा ऐक्शन या फिर होगी इन्हीं की हां?
आईएएस सचिव व डीएम से धोखा और काली कमाई का मौका पे चौका लगाने से नहीं चूकना चाहती अधिशासी अभियन्ता
नमामि गंगे की एप्रूब्ड प्रोजेक्ट से खिलवाड़ क्यों?
सरकारी अतिक्रमित उपलब्ध भूमि रास न आने के अनर्गल वहाने!
बिना स्थल पर गये एस ई साहब व भू-गर्भ वैज्ञानिक ने सौंपी मनमानी सर्वे रिपोर्ट?
न नाप सही, न स्टीमेट सही – सोलह दूनी आठ का पहाड़ा पढ़ाते ये कलयुगी अभियन्ता!
(पोलखोल तहलका की पड़ताल और आरटीआई में हुआ और खुलासा)
देहरादून। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अन्तर्गत नमामि गंगे परियोजना को साकार न करके उसमें किस तरह बट्टा लगाया जा रहा है इसका ज्वलंत उदाहरण सीवर ट्रीटमेंट प्लांट हेतु भूमि की खरीद में कार्यदाई संस्था उत्तराखंड पेयजल निगम के महान कलयुगी अभियताओं और खनिज, भू-गर्भ वैज्ञानिक के द्वारा खेले जा रहे काली कमाई के खेल का एक और हैरतअंगेज कारनामा प्रकाश में आया है जिसे देख कर आपको भी सोलह दूनी आठ का पहाड़ा पढ़ाने की चमत्कारी कला आ जायेगी!
आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार ज्ञात हुआ है कि उत्तराखंड शासन के द्वारा गठित भूमि चयन समिति की अध्यक्षा एवं जिलाधिकारी को पेयजल निगम के इंजीनियरों के द्वारा उस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करा लिए गये और शासन को एप्रूब्ड हेतु भेज दिया गया है जो तीन चार माह पहले बनाई गयी थी यही नहीं उक्त संयुक्त रिपोर्ट में भू-गर्भ वैज्ञानिक महोदया ने भी बिना वास्तविक स्थल पर जाए प्रस्तावित एवं चिन्हित जमीन की मनमानी रिपोर्ट भेज दी। यही नहीं इस रिपोर्ट में जिन ज्वांइट मजिस्ट्रेट/उपजिलाधिकारी के नेतृत्व में किए गये स्थलीय निरीक्षण को बलाए ताक रखते हुए उससे किनारा कर लिया गया और वह निरीक्षण रिपोर्ट उत्तराखंड शासन को वेखौफ होकर स्वीकृति हेतु भेजे जाने की बात सामने आ रही है।
बताया तो यह भी जा रहा है कि उक्त रिपोर्ट में उन अधिकारियों और अधीक्षण अभियन्ता महोदय के भी हस्ताक्षर करा लिए गये जो मौके पर स्थल निरीक्षण के समय उपस्थित ही नहीं थे।
ज्ञात हो कि राजधानी दून की सपेरा बस्ती, मोथरोवाला में लगने वाले 15 एमएलडी के इस सीवर ट्रीटमेंट प्लांट जिसके पूरे होने की समय सीमा खत्म होने को आ गयी है परन्तु जब राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली भूमि का ही चयन करने में लगभग दो वर्ष का समय ही इसकी कार्यदाई ऐजेन्सी पेयजल निगम के अधिकारियों ने अपनी काली कमाई को प्राथमिकता देते हुए व्यतीत कर दिए तो फिर ऐसे में यह महत्वाकांक्षी परियोजना साकार हो भी पायेगी या नहीं इस पर भी प्रश्नचिन्ह लगने लगा है। प्रोजेक्ट के लिए निर्धारित भूमि जो कम से कम 0.53 है. होनी चाहिए, को भी अपनी इच्छानुसार ये अधिकारी उससे भी खिलवाड़ कर रहे हैं जिंससे प्लांट को आने वाले समय में समस्या उत्पन्न होने की सम्भावना को भी नकारा नहीं जा सकता है।
बात यहां एक प्रश्न चिन्ह की नहीं है बल्कि इनके हैरतअंगेज कारनामों की बजह से अनेकों सवालिया निशानों के घेरे में वे अधिकारी और आईएएस भी आ गये हैं जो इन पर आंख बंद करके भरोसा करते आ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि शासन को अनुमति हेतु तैयार कर भेजी जाने वाली 2 दिसम्बर 2023 की रिपोर्ट जिसका गठन10 अक्टूबर 2023 को गठित भूमि चयन समिति के परिपेक्ष्य मे़ 18 अक्टूबर को ज्वांइट मजिस्ट्रेट एवं उपजिलाधिकारी (सदर) आईएएस अधिकारी के नेतृत्व में स्थलीय निरीक्षण में जिन जिन अधिकारियों की समिति के सदस्यों के रूप नियुक्ति हुई थी उनमें पेयजल निगम के अधीक्षण अभियन्ता सहित भू-गर्भ वैज्ञानिक को भी निरीक्षण के समय स्थल पर रहना था परन्तु ये तीनों ही अधिकारियों के वहां से उस समय नदारद रहने के प्रमाण मौके पर लिए गये फोटो से स्वत: ही स्पष्ट हो रहे हैं तो फिर इनके द्वारा हस्ताक्षरित रिपोर्ट और डीएम अर्थात समिति की अध्यक्षा के प्रति हस्ताक्षर के रूप में किये गये हस्ताक्षरों पर मात्र सवालिया निशान ही नहीं लगना बल्कि पूरी रिपोर्ट ही संदेह के घेरे में आ चुकी है? क्योंकि उक्त रिपोर्ट नयी रिपोर्ट न तैयार करके पुरानी 27-7-2023 की रिपोर्ट को ही आधार पर बनाकर प्रस्तुत की गई।
सूत्र बता रहे हैं कि स्थलीय निरीक्षण के समय मौके पर उपजिलाधिकारी (सदर), पेयजल निगम की अधिशासी अभियन्ता, सहायक अभियन्ता, अपर सहायक अभियन्ता और नमामि गंगे परियोजना के एक अधिकारी व क्षेत्र का उप राज्स्व निरीक्षक सहित भू-स्वामी के अतिरिक्त एक अन्य भूस्वामी का प्रतिनिधी एवं एक पत्रकार ही उपस्थित थे। जबकि जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट में उक्त नदारद रहे अधिकारियों के हस्ताक्षरों और उनके द्वारा दिये गये तथ्यों और आंकड़ों की कितनी अहमियत और विश्वसनीयता होनी चाहिए इस पर भी सवालिया निशान लगता है? तभी तो उक्त रिपोर्ट में प्रस्तावित और चिन्हित भूमि की नाप तोल व लम्बाई चौड़ाई बताई गयी हैं वे वास्तविकता से परे हैं तथा चहेते कोठारी की विवादित और अपर्याप्त, अनुपयुक्त भूमि ऐन-केन-प्रकरेण फिट और सरकारी उपलब्ध लगभग साढ़े चार बीघा अतिक्रमित भूमि व एक अन्य प्रस्तावित निजी भूमि अनफिट कैसे कैसे-कैसे ठहरायी गयी है का तरीका भी हैरत अंगेज है।
सहायक भू-वैज्ञानिक की दिनांक 25 अक्टूबर एवं 20 नवम्बर की रिपोर्ट भी अपने आप ही सवालों के घेरे में है।
रिपोर्ट में चहेते भू स्वामी के पक्ष में गलत तथ्यों को दर्शा कर भ्रमित करने का भी प्रयास बड़ी चतुराई से किया गया है और उसमें पानी की निकासी व आवासीय भवनों के होने को भी छिपाया गया है।
यही नहीं उक्त रिपोर्ट में दोनों निजी भू स्वामियों के द्वारा दी गयी दरों को भी मनमाने ढंग से प्रस्तुत किया गया और किसी की बढ़ी हुई दर के बाद प्राप्त दर को न दिखाकर दूसरे चहेते की कम दर को केवल बनावटी ढंग से ही दिखाया गया है? जो भी जांच का विषय है।
पेयजल निगम से ही आरटीआई में प्राप्त जानकारी में एक और मजेदार तथ्य उजागर हुआ है जिसके अनुसार जो रिपोर्ट शासन को डीएम महोदया के हस्ताक्षरों से भेजी गयी है उसमें यह भी साबित किया गया है कि यदि सरकारी भूमि ली जाती है तो उसके लिए तीस फुट चौड़ा रास्ता व सुरक्षा दीवार नदी से बनाये जाने पर लगभग 13 करोड़ 34 लाख का अनुमानित व्यय आयेगा जो परियोजना में लगने वाली राशि से अधिक व औचित्यहीन होगा इस लिए सरकारी भूमि का लिया जाना अनुचित होगा। जबकि रास्ते की लागत लाखों की जगह करोड़ों की महज इसलिए दिखाई जा रही है ताकि शासन में बैठे अधिकारी इनके उल्टे पहाड़े की गिरफ्त में आ जायें और ये अपने चहेते की भूमि खरीदने के षड्यंत्र में सफल हों जायें। शायद ये चालाक चतुर अधिकारी ये भूल रहे हैं कि यदि रास्ता की भूमि वहां उपस्थित निजी भूस्वामी से खरीदी जाये तो नदी का अतिक्रमण और दोहन भी नहीं होगा तथा लागत भी काफी कम आयेगी साथ ही सरकारी उपलब्ध भूमि का सदुपयोग भी होगा, परंतु इनका मकसद तो काली कमाई में बाधक भू स्वामी से खुंदक पूरी करना व अतिक्रमणकारी एक निजी स्कूल स्वामी की अतिक्रमित भूमि को बचाने की साज़िश का है! तभी तो सोलह दूनी आठ हो पायेंगे?
मजेदार बात यहां यह भी उजागर हुई है कि जो चिन्हित निजी भूमि विगत लगभग दो वर्षों से तमाम इंस्पेक्शन और सर्वे में उचित पाई गयी थी और छावनी परिषद क्लेमनटाउन से उसकी एनओसी भी प्रोजेक्ट अंतरण के समय ली जा चुकी थी, अब कैसे अनफिट हो गयी यह भी गम्भीर जांच का विषय है। वैसे इस भूमि के “अनफिट” और सरकारी उपलब्ध भूमि को भी अयोग्य घोषित किये जाने के पीछे काली कमाई और जेब भारी करने का ही खेल नजर आ रहा है तभी तो ये अधिकारी शासन में बैठे अनुभवी आला अफसरों और दिल्ली में बैठे महानिदेशक को निरंतर गुमराह व भ्रमित करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
“यहां उल्लेख करना आवश्यक होगा कि “पोलखोल” न्यूज पोर्टल कभी भी किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में या विरुद्ध अथवा शासन और प्रशासन के विरोध में ही समाचार प्रकाशित नहीं करता। हमारा मकसद जनधन के हित में और भ्रष्टाचार और घोटालेबाजों के कारनामों की पोल खोलना है और सरकार के संज्ञान में लाना मात्र है।”
देखना यहां गौर तलब होगा की धाकड़ धामी सरकार के शासन में बैठे आला अफसर इन कलियुगी अभियंताओं और गलत सलत मनमानी रिपोर्ट देने वाली भू-गर्भ वैज्ञानिक की शातिराना चाल में आते हैं या फिर इन पर नमक सरकार का और वफादारी किसी और की, पर कठोर कार्यवाही करते हुए जनधन का ध्यान रखते हुए परियोजना को समय पर धरातल में सफल हो पाते या फिर इन्हीं की ढपली और इन्हीं का राग गाने में लगे नजर आयेंगे…!?
देखिए कुछ प्रमाण…