कब टूटेगी जिला प्रशासन और राजस्व विभाग की कुम्भकरणी नींद?
जमीन का स्वामित्व भी विवादित और खतौनी में स्थगन फिर भी भू-माफिया लगे हैं दबाव बनाने में!
…ताकि भोले-भाले पहाड़वासियों को गुमराह कर लूटा जा सके!
‘धामी सरकार से सेंटिंग हो गयी’ बताकर बदनाम कर रहा ये संगठित भूमाफियाओं का गैंग!
उ०प्र० जमींदारी विनाश और भूमि वयवस्था अधिनियम, 1950 की कार्यवाही में विलम्ब क्यों या फिर कोई सांठ-गांठ?
(तहलका ब्यूरो)
देहरादून। एक ओर सर्वोच्च न्यायालय और केन्द्र सरकार न्यायालयों में विवादों के लगे अम्बार को लेकर चिंतित हैं वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में शासन प्रशासन की अकर्मण्यता और उदासीनता से नये नये विवादों में अकारण ही जनता उलझती जा रही है और जमीनों से सम्बंधित मुकदमों की संख्या में निरन्तर इजाफा हो रहा है। क्या इन मामलों में सार्थक भूमिका निभा सकते वाले राजस्व विभाग और जिला प्रशासन को कुछ कारगर कदम नहीं उठाया जाना चाहिए? क्या इस तरह के अवैध कारोबार पर कार्यवाही करते हुए भू माफियाओं पर शिकंजा स्वसंज्ञान लेते हुए नहीं कसा जाना चाहिए? ऐसा ही कुम्भकरणी नींद और जनता लुटती है तो लुटने दो का मामला विगत काफी दिनों से चर्चा में है किन्तु विवादित जमीनों की अवैध बिक्री पर कोई भी एक्शन नजर नहीं आ रहा है परिणामस्वरूप अब इन अवैध व अनुचित बड़े-बड़े पंजीकृत बिक्रयपत्रों के उपरांत भू-माफिया अब इनके दाखिल खारिज कराने की फिराक में है ताकि भोले-भाले पहाड़वासियों को जो एक छोटे से आशियाने के लिए भूमि की तलाश में हों को गुमराह कर विवादित भूमि भिड़ाई जा सके!
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार तहसील सदर क्षेत्र अंतर्गत नवादा कूटला स्थित चर्चित व विवादित मित्तल भट्टे पर कुछ भू-माफिया अवैध प्लाटिंग करने से बाज नहीं आ रहे हैं और निरंतर भोले-भाले पहाड़वासियों को अपनी चतुराई व धूर्तता से बाज नहीं आ रहे हैं। यही नहीं एमडीडीए द्वारा भी इस अवैध प्लाटिंग के विरुद्ध मौके पर चेतावनी स्वरूप बोर्ड भी लगाया जा चुका है ताकि लोग इन भूमाफियाओं के झांसे में ना आयें। ज्ञात हो कि उक्त कृषि व शैक्षणिक भू-उपयोग वाली भूमि को आवासीय जमीन बताकर इन भूमाफियाओं के संगठित गिरोह के द्वारा गुमराह व भ्रमित कर अपने मायाजाल में फंसाने पर तुले हुए हैं।
ज्ञात हुआ है कि मित्तल भट्टे की विवादित स्वयं भू मालिकाना हक बताने वाले एक मित्तल बंधु द्वारा किसी शिवराज सिंह को खिलाफ कानून लगभग दस बीघा जमीन बिक्रय की गयी जिसके दाखिल खारिज हेतु मौजा नवादा सवालखानी संख्या 4347 एवं 1657/2023 की वाद पत्रावली तहसील (सदर) में विचाराधीन है। बताया जा रहा है कि जब उक्त भूमि का स्वामित्व ही अनेकों विवादों में विभिन्न न्यायालयों में विचाराधीन है तो किसी एक के द्वारा अपने आपको स्वामी बताकर बेची गयी जमीन का दाखिल खारिज करके भोले-भाले लोगों को गुमराह कर लूट-खसोट करने का अवसर तहसील कैसे प्रदान कर सकता है? यहां यह भी उल्लेख करना आवश्यक होगा कि स्वर्गीय मित्तल बंधु की तथाकथित इस 90-95 बीघा जमीन पर अनेकों वारिस अपने अपने हक की लड़ाई न्यायालयों में लड़ रहे हैं तथा जमीदारी विनाश अधिनियम 1950 की तलवार भी नियमानुसार कभी भी उसके अनुपालन में चल सकती है हालांकि राजस्व विभाग की उदासीनता भी इस आवश्यक कार्यवाही में अनुचित लाभ पहुंचाने की दिशा में उदासीन नजर आ रही है किन्तु यह गाज किसी समय कठोर और दबंग शासक और प्रशासक/अधिकारी के आते ही गिर सकती है और तब 65 बीघा से अधिक समस्त भूमि राज्य सरकार में स्वत: ही निहित हो जायेगी? क्या राजस्व विभाग और जिला प्रशासन किसी सांठ-गांठ के तहत स्वयं भू निष्पक्ष स्वामी को कानून से अधिक भूमि बेंच कर निकल लेने का दे रही है मौका और राज्य सरकार का कर रही भारी नुक्सान !
ज्ञात हो कि जिस जमीन को ये भू-माफिया पाक साफ बता रहे हैं वह जमीन स्वामित्व के झगड़ों को लेकर अनेकों वादों में राजस्व न्यायालयों से लेकर सिविल व आपराधिक न्यायालयों एवं उच्च न्यायालय में भी विचाराधीन है तथा खाता खतौनी में स्थगन आदेश भी स्पष्ट रूप से अंकित है। इस भूमि के स्वामित्व को लेकर अनेकों व्यक्ति अपने अपने आपको मालिक स्वामी होने का दम्भ भर रहे हैं किन्तु ये निर्णय तो न्यायालय पर ही निर्भर होगा कि असली और नकली मालिक कौन होगा? पुलिस या किसी व्यक्ति विशेष के कहने पर नहीं!
उल्लेखनीय तो यह है कि अब ये छोटे बड़े संगठित भू माफिया तहसील सदर से सांठ-गांठ करके ऐन केन प्रकरेण दाखिल खारिज कराने के प्रयास में हैं ताकि लोंगो का ब्रेनवाश करके गुमराह किया जा सके और “अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता” वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए बेच कर निकल लो, कोई फंसे तो फंसे इन्हें क्या? हांलाकि अब से पूर्व भी जमीनों के अनेकों धुरंधर कारोबारी जोर आजमाईश करके अपनी मोटी मोटी रकमें फंसाकर पछता रहें हैं।
चर्चाओं में तो यह भी है कि अब ये संगठित भू-माफिया गिरोह जिसका सरगना कभी केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र का हारा हुआ विधायक प्रत्याशी रहा, अपने आपको भ्रष्टाचार विरोधी धाकड़ धामी का साझीदार बनकर उन्हें भी बदनाम करने की फिराक में है और व्यर्थ की धौल धप्पा करता घूम रहा है। यही नहीं इसी जमीन से सम्बंधित कुछ नये सिविल एवं आपराधिक मामले हाल ही में स्वामित्व को लेकर सामने आये जो भी विचाराधीन है। वहीं एक पक्ष पुलिस कार्यवाही से ही अपने आपको एकमात्र स्वामी होने का दम भरने का ढोल पीटने की भूल कर रहा है क्योंकि फैसला न्यायालय ने करना है पुलिस ने नहीं!
देखना यहां गौर तलब होगा कि क्या जिला प्रशासन, राजस्व विभाग, तहसील सदर तथा लेखपाल इस अवैध खरीद फरोख्त की बिक्रयपत्रों पर गैर-कानूनी रूप से दाखिल खारिज पर रोक लगाती है या फिर नये विवादों को जन्म देती है?