चार माह से तहसील सदर में लटकता आईएएस ज्वांइट मजिस्ट्रेट का आदेश : भटक रही जनता! – Polkhol

चार माह से तहसील सदर में लटकता आईएएस ज्वांइट मजिस्ट्रेट का आदेश : भटक रही जनता!

वाह रे, वाह जनसुनवाई और आदेश, वाह!
… आखिर क्या है इन राजस्व उपनिरीक्षकों में?
जनसुनवाई के आदेश भी खटाई में डालते डीएम के सिपहसालार एडीएम!
जनसुनवाई में उजागर हुए करोड़ों की स्टाम्प चोरी के मामले भी साहब की कृपा पर ठण्डे बस्ते में क्यों?
अपने आदेशों की समीक्षा व मूल्यांकन क्यों नहीं?

(पोलखोल तहलका ब्यूरो)
देहरादून। उत्तराखंड की धामी सरकार का धाकडपन देखने के लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है केवल राजधानी दून के अधिकारियों पर नजर डालने की जरूरत है। किस तरह से जनता को भटकना पड़ता है और जब वह सीधे सम्बंधित अधिकारी से निराश हो सोमवार जिलाधिकारी के जनसुनवाई के दिन का इंतजार करते हुए इस आशा व विश्वास के साथ आता है कि अब शायद उसकी फरियाद सुन ली गयी है और उसकी समस्या का निराकरण हो जायेगा। परन्तु ऐसा होता कहां है। ये लोक सेवक प्रशासनिक अधिकारियों को भी तो‌ नेताओं की तरह खुद की पीठ थपथपाने और छपास की बीमारी‌ रास आती है।  शिकायतों और भटकती जनता का क्या वह तो है ही भटकने और धक्के खाने के‌ लिए! और तो और‌ यहां जनपद दून‌ में तो आईएएस ज्वांइट मजिस्ट्रेट/ उपजिलाधिकारियों के आदेश भी तहसीलदार व राजस्व उपनिरीक्षकों (लेखपाल) के यहां चार चार माह तक खटाई में ही पड़े दिखाई देते है‌ लागू होना तो बहुत दूर की बात है। ऐसा ही लापरवाही या दुस्साहस का एक और मामला प्रकाश में आया है जिसे देख कर लगता है कि अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलापने वाले ये अधिकारी और कर्मचारी कितने निरंकुश हो गये हैं कि इनमें कानून और कर्तब्य की लेसमात्र भी चिंता नहीं है। ये जानते हैं कि ऐसे आदेश अधिकारी तो करते ही रहते हैं…?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ज्ञात हुआ है कि देहरादून की तहसील (सदर) में  राजस्व उपनिरीक्षकों की रिक्तता व अभाव के कारण जनता की सहूलियत हेतु विगत चार माह पूर्व दिनांक 13 सितम्बर 2023 को तत्कालीन आईएएस उप जिलाधिकारी/संयुक्त मजिस्ट्रेट द्वारा जनहित में एक आदेश तत्काल प्रभाव से लागू करने के लिए पत्रांक संख्या 3043/र0का0/स्थाना0/2023 जारी किया गया था। जिसमें सात राजस्व उपनिरीक्षकों को कांवली, माजरा, बडासी ग्रांट, रायपुर, डांडा लखौण्ड, नकरौंदा और कण्डोली क्षेत्र का अतिरिक्त कार्यभार क्रमशः राजस्व उपनिरीक्षक सत्य प्रकाश, कुंवर सिंह सैनी, जगदीश राठौर, रमेश चन्द्र जोशी, प्रदीप सिंह, दिनेश चन्द्र एवं मेजर सिंह चौहान को तत्काल प्रभाव से दिया जाना था। उक्त आदेश का अनुपालन मात्र एक उपनिरीक्षक जगदीश राठौर पर तो लागू हो गया किन्तु शेष छः लेखपालों को अतिरिक्त कार्यभार न सौंपे जाने के पीछे की बजह इन उपनिरीक्षकों की तहसीलदार से खासी गेटिंग सेंटिंग का खेल खेले जाने की बजह बताई जा रही है? फिलहाल वज़ह कुछ भी रही हो लेकिन ऐसी गुस्ताखी समझ से परे है जो जनहित और अनुशासन के विरुद्ध हो, कितनी और कहां तक उचित है यह गुस्ताखी इसका फैसला तो शासन और प्रशासन ने करना है!
उल्लेखनीय यहां यह भी है कि जनसुनवाई के दौरान अक्सर सुनने में आता है की जिलाधिकारी ने फ्लां शिकायत पर तत्काल एक्शन करते हुए कार्यवाही की और फ्लां याची की समस्या का निराकरण मौके पर कर दिया गया यही नहीं सरकारी प्रेस नोट भी जारी हो गया और जनसुनवाई की खबर भी प्रकाशित हो गयी तथा जिलाधिकारी सहित सभी उपस्थित आधीनस्थ अधिकारियों ने एस मैन बन कर हामी भी भर दी परंतु अधिकांश शिकायतें उपरोक्त आदेश की तरह धूल खाती देखी जा सकती है औश्र बेचारी जनता बेचारी बनकर ही रह जाती है।
मजेदार बात तो यहा यह भी है कि जिलाधिकारी के सिपहसालार एडीएम (वित्त एवं राजस्व) भी “पिंक एंड चूज” के आधार पर मनमाना रवैया अपनाते हुए जिले में हो रही भारी भरकम स्टाम्प चोरी जो जमीनों की खरीद फरोख्त में क्रेताओं द्वारा करके राजस्व को चूना लगाया जा रहा है के जनसुनवाई में उजागर हुए मामलों पर भी विशेष सांठ-गांठ के चलते कई हफ्तों व महीनों तक कुडली मारे बैठे हैं जिनसे करोड़ों करोड़ों का राजस्व सरकार के खजाने में आ सकता है! यही नहीं अनेकों ऐसे मामले भी सुननें को मिल रहे हैं जिनमें “साहब मेहरबान तो गधा भी पहलवान” वाली कहावत साफ तौर पर काली कमाई और गेटिंग सेंटिंग के खेल में हावी दिखाईं पड़ रही है। क्या वर्तमान एडीएम महोदय के द्वारा विगत छः माह में पारित आदेशों की भी समीक्षा होगी?
वैसे तो बिक्रय पत्रों के पंजीकरण के समय ही उप निबंधको द्वारा ही पंजीकरण के समय स्टाम्प चोरी और अनियमितताओं को रोका जा सकता है परंतु वे बेचारे भी तो किसी बजह से ही मजबूर होंगे? यहां सब चलता है!
क्या अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व सहित तहसीलदार की कार्यप्रणाली की जिलाधिकारी महोदया को मूल्यांकन नहीं करना चाहिए और जनसुनवाई में सामने आए मामलों पर एक्शन की समीक्षा सख्ती के साथ नहीं की जानी चाहिए या फिर सुनवाई की अनसुनी को ही इतिश्री मान लेना उचित है?
ज्ञात तो यह भी हुआ है कि स्टाम्प और राजस्व चोरी के कुछ मामले तो एआईजी स्टाम्प और एसडीएम बिकास नगर के यहां भी ठण्डे बस्ते में सिफारिशों के चलते डाल दिए गये हैं!
देखना यहां गौरतलब होगा कि शासन और प्रशासन ऐसी जनसुनवाई और ना पालन होने वाले आदेशों पर कितनी संजीदगी दिखाता है और कैसा रवैया अपनाता है…?

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